# **बाढ़ का अंत और नूह का बलिदान**
_(उत्पत्ति 8)_
जब पृथ्वी पर चालीस दिन तक लगातार जल बरसता रहा, तो परमेश्वर ने नूह और उसके परिवार की सुरक्षा की। वह विशाल जहाज़, जिसे नूह ने परमेश्वर के निर्देशानुसार बनाया था, ऊंची लहरों पर तैरता रहा। पृथ्वी का हर जीव, हर पहाड़, हर वृक्ष जल में डूब चुका था, परन्तु जहाज़ में सुरक्षित नूह, उसका परिवार और सभी जीव-जन्तु बचे रहे।
## **जल का घटना**
परमेश्वर ने नूह को स्मरण किया और उस पर दया की। उसने पृथ्वी पर से जल को घटाना आरम्भ किया। तेज़ हवाएँ चलीं, और धीरे-धीरे जल कम होने लगा। जहाज़ अरारत के पहाड़ों पर जाकर टिक गया। यह सातवें महीने का सत्रहवाँ दिन था।
धीरे-धीरे पहाड़ों की चोटियाँ दिखाई देने लगीं। नूह ने जहाज़ की खिड़की खोली और एक कौआ बाहर भेजा। कौआ इधर-उधर उड़ता रहा, जब तक कि पृथ्वी सूख नहीं गई। परन्तु नूह को पता चला कि अभी पृथ्वी पूरी तरह से जलमुक्त नहीं हुई है।
फिर उसने एक कबूतर को बाहर भेजा, ताकि देखे कि क्या जल कम हो गया है। कबूतर को जहाँ कहीं भी पैर रखने के लिए सूखी जगह नहीं मिली, इसलिए वह वापस जहाज़ में आ गया। नूह ने अपना हाथ बाहर निकाला, कबूतर को पकड़ा और उसे फिर से जहाज़ के भीतर रख लिया।
सात दिन और बीतने के बाद, नूह ने फिर से कबूतर को बाहर भेजा। इस बार कबूतर शाम को लौटा, और उसकी चोंच में जैतून की एक ताज़ा पत्ती थी! नूह समझ गया कि पृथ्वी से जल कम हो रहा है। उसने सात दिन और प्रतीक्षा की, और फिर कबूतर को तीसरी बार भेजा। इस बार कबूतर वापस नहीं आया, क्योंकि अब धरती पर सूखी जगह मिल गई थी।
## **जहाज़ से बाहर आना**
जब नूह ने देखा कि पृथ्वी सूख चुकी है, तो परमेश्वर ने उससे कहा, **”अब तू अपने सारे परिवार के साथ जहाज़ से बाहर आ जा। सभी जीव-जन्तुओं को भी बाहर निकाल, ताकि वे पृथ्वी पर फैल सकें और उत्पन्न हो सकें।”**
नूह ने ऐसा ही किया। उसने अपनी पत्नी, अपने तीनों बेटों—शेम, हाम और येपेत—और उनकी पत्नियों को जहाज़ से बाहर आने दिया। फिर एक-एक करके सभी पशु, पक्षी और रेंगने वाले जीव बाहर निकले। वे सभी जहाज़ से बाहर आकर फिर से पृथ्वी पर फैल गए।
## **नूह का बलिदान**
नूह ने परमेश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए एक वेदी बनाई। उसने शुद्ध पशुओं और पक्षियों में से कुछ को लेकर परमेश्वर के लिए होमबलि चढ़ाया। बलि की सुगन्ध परमेश्वर तक पहुँची, और वह प्रसन्न हुआ।
परमेश्वर ने मन में कहा, **”मैं फिर कभी मनुष्य के कारण पृथ्वी को श्रापित नहीं करूँगा, भले ही मनुष्य का हृदय बचपन से ही बुराई की ओर झुका हुआ है। मैं फिर कभी सारे प्राणियों को नष्ट नहीं करूँगा, जैसा कि मैंने अभी किया है।”**
फिर परमेश्वर ने नूह और उसके पुत्रों को आशीर्वाद दिया और कहा, **”फलो-फूलो, पृथ्वी में भर जाओ। सभी जीव तुम्हारे अधीन रहेंगे। मैं तुम्हारे साथ एक वाचा बाँधता हूँ—अब कभी सारे प्राणी जलप्रलय से नष्ट नहीं होंगे। मेरी वाचा का चिह्न यह होगा कि मैं बादलों में अपना धनुष (इन्द्रधनुष) रखूँगा। जब कभी वह दिखाई देगा, तो मैं उसे देखकर स्मरण करूँगा कि मैंने पृथ्वी के सभी प्राणियों के साथ शाश्वत वाचा बाँधी है।”**
इस प्रकार, नूह और उसका परिवार नई पृथ्वी पर बस गया। परमेश्वर की दया और प्रतिज्ञा ने मानवजाति को एक नया अवसर दिया। जब भी आकाश में इन्द्रधनुष दिखाई देता है, तो वह परमेश्वर की विश्वासयोग्यता और प्रेम की याद दिलाता है।