पवित्र बाइबल

सुलैमान द्वारा यरूशलेम में मंदिर निर्माण की शुरुआत

# **सुलैमान का मंदिर निर्माण का प्रारंभ**
**(1 राजाओं 5 का विस्तृत वर्णन)**

## **प्रस्तावना**
समय था जब राजा सुलैमान, दाऊद के पुत्र, ने इस्राएल पर शासन किया। परमेश्वर ने उसे असीम बुद्धि और समृद्धि प्रदान की थी, और अब सुलैमान अपने पिता दाऊद के मन में उठी उस इच्छा को पूरा करने के लिए तैयार था—यरूशलेम में परमेश्वर के नाम का एक भव्य मंदिर बनाने की। यह मंदिर न केवल इस्राएल की महानता का प्रतीक होगा, बल्कि यहोवा की उपासना का केंद्र भी बनेगा।

## **सुलैमान और हीराम की मित्रता**
सुलैमान जानता था कि इस महान कार्य के लिए उसे उत्तम सामग्री और कुशल कारीगरों की आवश्यकता होगी। उसके पिता दाऊद ने पहले ही तय कर लिया था कि मंदिर के निर्माण के लिए लेबनान के देवदार के वृक्षों का उपयोग किया जाएगा, क्योंकि वे मजबूत और सुंदर थे। लेबनान के राजा हीराम, जो दाऊद का मित्र रहा था, अब भी इस्राएल के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध रखता था।

सुलैमान ने हीराम के पास अपने दूत भेजे और उसे संदेश दिया:

*”तू जानता है कि मेरे पिता दाऊद चारों ओर के युद्धों के कारण यहोवा के नाम के लिए एक मंदिर नहीं बना सके। परन्तु अब यहोवा ने मुझे चारों ओर शांति प्रदान की है, और मैं उसके नाम का एक भवन बनाना चाहता हूँ, जैसा कि यहोवा ने मेरे पिता से कहा था। इसलिए मैं तुझसे निवेदन करता हूँ कि तू लेबनान से मेरे लिए देवदार के काटने की आज्ञा दे। मेरे सेवक तेरे सेवकों के साथ मिलकर काम करेंगे, और मैं तेरे सेवकों को तू जो मजदूरी ठहराए, वह दूँगा।”*

## **हीराम की प्रतिक्रिया**
हीराम ने सुलैमान का संदेश सुनकर बहुत प्रसन्नता व्यक्त की। वह दाऊद का प्रिय मित्र था और अब सुलैमान के प्रति भी उसके मन में सम्मान था। उसने उत्तर भेजा:

*”यहोवा ने इस्राएल से प्रेम किया है, इसीलिए उसने तुझे उन पर राजा बनाया है। धन्य है यहोवा, जिसने तेरे पिता दाऊद को तेरे जैसा बुद्धिमान और समझदार पुत्र दिया। मैं तेरी सारी माँग पूरी करूँगा। मेरे सेवक देवदार और सनोबर के वृक्ष लेबनान से समुद्र के रास्ते ले जाएँगे। तू अपने सेवकों को मेरे सेवकों के साथ मिलाकर काम करने दे, और मंदिर के निर्माण के लिए जितनी लकड़ी चाहिए, मैं तुझे दूँगा। बदले में, तू मेरे घराने के लिए भोजन की आपूर्ति करना।”*

## **लकड़ी की तैयारी और श्रमिकों का संगठन**
सुलैमान ने हीराम के प्रस्ताव को स्वीकार किया। उसने इस्राएल के सारे देश से तीस हज़ार कारीगर इकट्ठे किए। उनमें से प्रति महीने दस हज़ार को लेबनान भेजा जाता था। वे एक महीना लेबनान में काम करते और फिर दो महीने अपने घर रहते। इस तरह उन पर अत्यधिक बोझ नहीं पड़ता था।

इसके अलावा, सुलैमान ने अस्सी हज़ार पत्थर काटने वाले और सत्तर हज़ार बोझा ढोने वाले नियुक्त किए। इन सभी श्रमिकों का काम पहाड़ों से उत्तम पत्थर काटकर लाना था, जिन्हें मंदिर की नींव और दीवारों के लिए तराशा जाना था।

लेबनान से देवदार और सनोबर के वृक्ष समुद्र के रास्ते इस्राएल पहुँचाए जाते थे। वे लकड़ियाँ याफा के बंदरगाह पर उतारी जातीं, जहाँ से उन्हें यरूशलेम ले जाया जाता। यह एक विशाल और सुव्यवस्थित प्रक्रिया थी, जिसमें हजारों लोग लगे हुए थे।

## **परमेश्वर की प्रतिज्ञा की पूर्ति**
यह सब इसलिए संभव हुआ क्योंकि यहोवा ने सुलैमान से वादा किया था कि उसके शासनकाल में शांति रहेगी। दाऊद के समय में लड़ाइयाँ लड़ी गई थीं, परन्तु अब सुलैमान के दिनों में इस्राएल सुरक्षित था। इस शांति के कारण ही वह परमेश्वर के मंदिर के निर्माण जैसे महान कार्य में लग सका।

सुलैमान और हीराम के बीच की यह साझेदारी न केवल राजनीतिक थी, बल्कि यह परमेश्वर की योजना का हिस्सा थी। हीराम ने कहा, *”यहोवा ने इस्राएल से प्रेम किया है,”* और इस प्रकार उसने स्वीकार किया कि सुलैमान का राज्य परमेश्वर की कृपा से ही समृद्ध हुआ था।

## **निष्कर्ष**
इस प्रकार, सुलैमान ने मंदिर निर्माण की तैयारियाँ पूरी कीं। लेबनान की देवदार लकड़ी, इस्राएल के कुशल कारीगर, और हजारों श्रमिकों के परिश्रम से यह महान कार्य आरंभ हुआ। यह न केवल एक भवन का निर्माण था, बल्कि इस्राएल के इतिहास में एक पवित्र अध्याय की शुरुआत थी—एक ऐसा स्थान जहाँ यहोवा की महिमा प्रकट होगी और जहाँ लोग उसकी आराधना करने आएँगे।

सुलैमान की बुद्धि, हीराम की उदारता, और परमेश्वर की प्रतिज्ञा ने मिलकर इस पवित्र कार्य को संभव बनाया। और इस तरह, इस्राएल में यहोवा के नाम का गौरवशाली मंदिर बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ।

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