पवित्र बाइबल

यशायाह 1: पाप से पश्चाताप तक की दिव्य यात्रा

**यशायाह 1: पाप और पश्चाताप की कहानी**

यहूदा के दिनों में, जब राजा उज्जिय्याह, योताम, आहाज और हिजकिय्याह के शासनकाल में यरूशलेम नगर अपनी भव्यता के शिखर पर था, परमेश्वर ने यशायाह नामक एक नबी को बुलाया। यशायाह अमोस का पुत्र था और उसका हृदय परमेश्वर के वचनों से जलता था। एक दिन, जब वह मंदिर के आँगन में प्रार्थना कर रहा था, तब उसने स्वर्ग की एक दर्शन देखी।

आकाश खुल गया, और यहोवा की महिमा उसके सामने प्रकट हुई। सिंहासन पर विराजमान परमेश्वर के वस्त्र धधकते अंगारों की तरह चमक रहे थे, और सेराफ़ों के दल उसकी स्तुति करते हुए गा रहे थे, *”पवित्र, पवित्र, पवित्र है सेनाओं का यहोवा; समस्त पृथ्वी उसकी महिमा से भरपूर है!”* यशायाह काँप उठा और चिल्लाया, *”हाय मुझ पर! मैं नष्ट हो गया! क्योंकि मैं अशुद्ध होंठों वाला मनुष्य हूँ, और मैंने एक पवित्र परमेश्वर को देख लिया है!”*

तब एक सेराफ़ ने उसके पास उड़कर एक जलते हुए अंगारे से उसके मुँह को छुआ और कहा, *”देख, यह तेरे अधर्म को दूर कर देगा और तेरे पापों को शुद्ध करेगा।”* और यहोवा की वाणी गूँजी, *”मैं किसको भेजूँ? और हमारे लिए कौन जाएगा?”* यशायाह ने नम्रता से उत्तर दिया, *”मैं यहाँ हूँ, मुझे भेज!”*

और इस प्रकार, यशायाह को यहूदा और यरूशलेम के लोगों के पास भेजा गया। परमेश्वर का संदेश कठोर था, पर सत्य से भरपूर।

### **यहूदा का पाप और परमेश्वर का दुःख**

यरूशलेम, जो कभी धार्मिकता का नगर कहलाता था, अब पाप के कीचड़ में धँस चुका था। लोग बाहर से तो यहोवा की उपासना करते थे, पर उनके हृदय उससे बहुत दूर थे। मंदिर में बलिदानों की भरमार थी, पर उनकी प्रार्थनाएँ केवल ऊपरी दिखावा थीं। अनाथों और विधवाओं का शोषण हो रहा था, न्याय बेचा जा रहा था, और धनी लोग गरीबों का खून चूस रहे थे।

यशायाह ने परमेश्वर के वचनों को सुनाया:

*”सुनो, हे आकाश! और हे पृथ्वी, कान लगा! क्योंकि यहोवा यह कहता है: ‘मैंने इन पुत्रों को पाल-पोसकर बड़ा किया, परन्तु उन्होंने मेरा विरोध किया है। एक बैल अपने मालिक को पहचानता है, और गधा अपने स्वामी की नाँद को, पर मेरी प्रजा मुझे नहीं समझती!'”*

परमेश्वर का हृदय दुःख से भर गया था। उसके लोगों ने उसे त्याग दिया था, और अब उनके पाप आकाश तक पहुँच चुके थे। यहोवा ने कहा, *”तुम्हारे बलिदानों से मेरा मन भर गया है! मैं नरबलियों और मेढ़ों की चर्बी से तृप्त हो चुका हूँ। तुम्हारे हाथ खून से रंगे हैं। अपने आप को शुद्ध करो, बुराई को छोड़ दो, अनाथों का न्याय करो, विधवा की लड़ाई लड़ो!”*

### **पश्चाताप का आह्वान और आशीष का वादा**

लेकिन परमेश्वर की दया अभी भी बाकी थी। वह चाहता था कि उसके लोग पश्चाताप करें और उसकी ओर लौट आएँ। यशायाह ने घोषणा की:

*”आओ, हम आपस में विवाद करें। यदि तुम्हारे पाप लाल रंग के समान हों, तो भी वे हिम के समान श्वेत हो जाएँगे। यदि तुम आज्ञा मानोगे, तो देश की उत्तम वस्तुएँ भोगोगे। परन्तु यदि तुम मना करोगे और विद्रोह करोगे, तो तलवार तुम्हें निगल जाएगी।”*

यहूदा के लोगों के सामने एक विकल्प था—विनाश या पुनर्स्थापना। परमेश्वर ने उन्हें चेतावनी दी कि यदि वे नहीं सुधरेंगे, तो शत्रु उनके नगरों को जला देंगे, और यरूशलेम खंडहर बन जाएगा। लेकिन यदि वे विनम्र होकर पश्चाताप करें, तो यहोवा उन्हें फिर से सिय्योन में धार्मिकता स्थापित करने देगा।

### **न्याय और छुटकारे की आशा**

अंत में, यशायाह ने एक भविष्यवाणी की जो दूर के दिनों की ओर इशारा करती थी:

*”सिय्योन न्याय के द्वारा छुड़ाया जाएगा, और उसके पश्चाताप करने वाले धार्मिकता के द्वारा। परन्तु अपराधी और पापी एक साथ नष्ट होंगे, और यहोवा को त्यागने वाले समाप्त हो जाएँगे।”*

यशायाह के शब्दों ने कुछ लोगों के हृदयों को छुआ, और वे अपने पापों पर रोए। परन्तु अधिकांश ने उसकी चेतावनी को अनसुना कर दिया। क्या यहूदा सुधरेगा, या विनाश को चुनेगा? समय ही बताएगा…

**इस प्रकार, यशायाह अध्याय 1 की कहानी समाप्त होती है, जो पाप के भयानक परिणामों और परमेश्वर की अद्भुत क्षमा की गवाही देती है।**

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