**भजन संहिता 42 पर आधारित एक विस्तृत कहानी**
**प्यासी हिरणी की तरह**
एक समय की बात है, हिमालय की ऊँची पहाड़ियों के बीच एक छोटा-सा गाँव बसा हुआ था। वहाँ रहने वाले लोग प्रकृति और परमेश्वर के निकट थे, परंतु उनमें से एक युवक, नाम था एलियाह, जो विशेष रूप से परमेश्वर की उपस्थिति के लिए तरसता था। वह अक्सर गाँव के बाहर एक ऊँची चट्टान पर बैठकर प्रार्थना करता और परमेश्वर से बातें करता।
एक दिन, जब वह जंगल में भटक रहा था, उसने देखा कि एक हिरणी तेजी से दौड़ती हुई नदी की ओर जा रही थी। हिरणी के मुँह से लार टपक रही थी, और उसकी आँखों में पानी की तीव्र प्यास झलक रही थी। एलियाह ने सोचा, “कितनी बेचैनी से यह हिरणी पानी की तलाश में भाग रही है!” तभी उसके मन में भजन संहिता 42 की पंक्तियाँ गूँज उठीं—**”जैसे हिरणी पानी की धाराओं के लिए तरसती है, वैसे ही हे परमेश्वर, मेरी आत्मा तेरे लिए तरसती है।”**
एलियाह का हृदय भारी हो गया। उसे लगा जैसे वह स्वयं उस हिरणी की तरह है—परमेश्वर के जल के लिए तड़पता हुआ। कुछ दिनों से वह अपने जीवन में परेशानियों से घिरा हुआ था। उसके परिवार पर संकट आया था, फसलें नष्ट हो गई थीं, और लोग उसे ताने देते थे कि “तुम्हारा परमेश्वर कहाँ है?” ये शब्द उसके दिल में छुरे की तरह घोंपते थे।
वह चट्टान पर बैठकर रोने लगा और परमेश्वर से पुकार करने लगा—**”हे मेरे परमेश्वर, मेरी आत्मा व्याकुल है! मैं तेरे सामने आँसू बहाता हूँ। क्यों मैं दुखी रहूँ? क्यों शत्रु मुझ पर हँसते हैं?”**
तभी हवा के झोंके के साथ एक मधुर आवाज़ उसके कानों में पड़ी, जैसे कोई धीरे से गा रहा हो—
**”अपनी आशा परमेश्वर में रख, क्योंकि मैं अभी भी उसका धन्यवाद करूँगा, जो मेरे चेहरे का और मेरे परमेश्वर का उद्धारकर्ता है।”**
एलियाह ने आँखें खोलीं और देखा कि सूरज की किरणें बादलों को चीरकर जमीन पर गिर रही थीं। उसे लगा जैसे परमेश्वर उससे कह रहा है—**”मैं तेरे साथ हूँ। तू अकेला नहीं है। तेरी प्यास मैं जानता हूँ, और मैं तुझे शांति दूँगा।”**
धीरे-धीरे, एलियाह का दिल हल्का होने लगा। उसने महसूस किया कि परमेश्वर की उपस्थिति उसके आँसुओं को पोंछ रही है। वह उठा और नदी के किनारे गया, जहाँ वह हिरणी पानी पीकर तृप्त हो चुकी थी। उसने भी अपने हाथों से जल लेकर पिया और परमेश्वर का धन्यवाद किया।
उस दिन के बाद, एलियाह ने सीखा कि चाहे जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएँ, परमेश्वर की ओर देखना ही सच्ची शांति का मार्ग है। उसने अपने गाँव वालों को भी यही सिखाया—**”हमारी आत्मा की प्यास केवल परमेश्वर ही बुझा सकता है। उसके प्रेम के जल में डूबो, और तुम्हें नई शक्ति मिलेगी।”**
और इस तरह, भजन संहिता 42 का सन्देश उस गाँव में फैल गया—**”हे मेरे परमेश्वर, मेरी आत्मा तेरे लिए तरसती है!”**