पवित्र बाइबल

यिर्मयाह 31: परमेश्वर की नई आशा और प्रतिज्ञा

**यिर्मयाह 31: एक नई आशा की प्रतिज्ञा**

भूमिका:
यिर्मयाह नबी के समय में इस्राएल का हृदय टूटा हुआ था। उन्होंने परमेश्वर की आज्ञाओं को तोड़ा था और उसके न्याय के कारण बाबुल की बंधुआई में जी रहे थे। परन्तु यिर्मयाह के माध्यम से, परमेश्वर ने उन्हें एक अद्भुत वादा दिया—एक नई आशा, एक नई शुरुआत।

### **परमेश्वर की करुणामय प्रतिज्ञा**

यिर्मयाह ने अपनी कुटिया में बैठकर आकाश की ओर देखा। उसका मन भारी था, क्योंकि वह जानता था कि उसके लोगों ने परमेश्वर के विरुद्ध पाप किया था। परन्तु तभी यहोवा का वचन उसके हृदय में आया:

*”उन दिनों में, मैं इस्राएल और यहूदा के सभी कुलों का परमेश्वर होऊँगा, और वे मेरी प्रजा बनेंगे।”* (यिर्मयाह 31:1)

यिर्मयाह ने अपनी आँखें बंद कर लीं और उसने एक दर्शन देखा—एक विशाल मरुभूमि में भटकते हुए लोग, जो थके हुए और निराश थे। परन्तु तभी एक कोमल आवाज़ उनके कानों में गूँजी:

*”मैं तुम्हें विश्राम दूँगा। मैं तुम्हें फिर से अपने पास ले आऊँगा।”*

यह परमेश्वर की आवाज़ थी। वह उन्हें छोड़ना नहीं चाहता था।

### **आनन्द और नृत्य का समय**

यिर्मयाह ने अपनी पट्टिका पर लिखा:

*”यहोवा यों कहता है: रामा में शोक सुनाई देता है, रोने और कराहने की आवाज़। राहेल अपने बच्चों के लिए रो रही है, क्योंकि वे अब नहीं हैं। परन्तु यहोवा कहता है: अपने शोक को रोको, क्योंकि तेरे परिश्रम का फल मिलेगा। तेरे बच्चे अपनी भूमि पर लौट आएँगे!”* (यिर्मयाह 31:15-17)

यिर्मयाह ने देखा कि भविष्य में, इस्राएल के बच्चे फिर से एकत्र होंगे। युवक और युवतियाँ आनन्द से नाचेंगी, बूढ़े आशीष देंगे, और सब मिलकर यहोवा की स्तुति करेंगे। वह दिन आएगा जब उनका दुःख आनन्द में बदल जाएगा।

### **एक नई वाचा**

परन्तु परमेश्वर की सबसे बड़ी प्रतिज्ञा अभी आनी थी। यिर्मयाह ने सुना:

*”देखो, वे दिन आते हैं जब मैं इस्राएल और यहूदा के घराने के साथ एक नई वाचा बाँधूँगा। यह उस वाचा के समान नहीं होगी जो मैंने उनके पूर्वजों से की थी, जिसे उन्होंने तोड़ दिया। अब मैं अपनी व्यवस्था उनके हृदयों पर लिखूँगा, और मैं उनका परमेश्वर बनूँगा, और वे मेरी प्रजा बनेंगे।”* (यिर्मयाह 31:31-33)

यिर्मयाह की आँखों में आँसू आ गए। यह एक नया आश्चर्य था! परमेश्वर उनके पापों को क्षमा करेगा और उनके हृदयों को नया बनाएगा। वह उन्हें फिर से अपना बनाएगा।

### **परमेश्वर की अटल प्रेम-कथा**

यिर्मयाह ने अपनी पुस्तक को समाप्त करते हुए लिखा:

*”यहोवा यों कहता है: यदि आकाश और पृथ्वी का अन्त हो सकता है, तब भी मेरी प्रतिज्ञाएँ टल नहीं सकतीं। मैं इस्राएल से सदैव प्रेम करता रहूँगा।”*

और इस प्रकार, यिर्मयाह ने देखा कि परमेश्वर की योजना सदैव पूर्ण होती है। वह दण्ड देता है, परन्तु वही सच्चा पुनर्स्थापन भी लाता है।

**समापन:**
यिर्मयाह 31 की यह कहानी हमें सिखाती है कि परमेश्वर की करुणा कभी समाप्त नहीं होती। वह हमें दण्ड दे सकता है, परन्तु वह हमें फिर से उठाता भी है। उसकी प्रतिज्ञाएँ सदैव सच होती हैं, और उसका प्रेम अनन्त है।

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