**भजन और आनन्द का दिन: व्यवस्थाविवरण 26 की कहानी**
सूरज की पहली किरणें जब गिलाद की पहाड़ियों को सुनहरी चादर से ढक रही थीं, तब इस्राएल के लोग यरीहो के मैदान में एकत्र हुए। मूसा, परमेश्वर के सेवक, ने लम्बी यात्रा के बाद उन्हें आश्वासन दिया था कि वे जल्द ही वादा किए हुए देश में प्रवेश करेंगे। आज का दिन विशेष था—परमेश्वर ने उन्हें एक आज्ञा दी थी जो उनके हृदयों में कृतज्ञता भर देने वाली थी।
### **पहली उपज का उत्सव**
मूसा ने लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा, “जब तुम उस देश में प्रवेश करोगे जो यहोवा तुम्हारे परमेश्वर ने तुम्हें विरासत में देने का वचन दिया है, और तुम उसमें बस जाओगे, तब तुम्हें भूमि की पहली उपज लेकर परमेश्वर के सामने प्रस्तुत करनी होगी।”
लोगों ने ध्यान से सुना। उनकी आँखों में चमक थी—कितने वर्षों तक वे मिस्र की दासता में रहे, फिर जंगल में भटकते रहे, और अब वे एक ऐसे देश के द्वार पर खड़े थे जहाँ दूध और मधु की धाराएँ बहती थीं।
मूसा ने आगे समझाया, “तुम्हें एक टोकरी लेनी होगी और उसमें उस भूमि की पहली उपज भरनी होगी—गेहूँ, अंगूर, अनार, जैतून, जो कुछ भी तुम्हारी भूमि उत्पन्न करे। फिर तुम उस टोकरी को लेकर यहोवा के चुने हुए स्थान पर जाओगे, जहाँ उसका निवास होगा, और उसे याजक के सामने रखोगे।”
### **कृतज्ञता का स्मरण**
याजक टोकरी को स्वीकार करेगा और उसे वेदी के सामने रख देगा। तब व्यक्ति को परमेश्वर के सामने यह वचन बोलना होगा:
“मैं आज यहोवा तुम्हारे परमेश्वर के सामने यह घोषणा करता हूँ कि मैं उस देश में आ बसा हूँ जिसके देने की यहोवा ने हमारे पूर्वजों से शपथ खाई थी।”
लोगों के मन में भावनाएँ उमड़ रही थीं। वे अपने इतिहास को याद कर रहे थे—कैसे उनके पूर्वज याकूब एक छोटे से परिवार के साथ मिस्र गए थे, कैसे वे वहाँ दास बन गए, और कैसे परमेश्वर ने उन्हें बड़ी सामर्थ्य से छुड़ाया।
मूसा ने उन्हें याद दिलाया, “तुम्हें यह भी कहना होगा: ‘मेरे पूर्वज भटकने वाला अरामी था। वह थोड़े से लोगों के साथ मिस्र में जा बसा और वहाँ एक बड़ी जाति बन गया। मिस्रियों ने हम पर अत्याचार किया और हमें कठोर परिश्रम कराया। तब हमने यहोवा, अपने पूर्वजों के परमेश्वर की दोहाई दी, और यहोवा ने हमारी पुकार सुनी। उसने हमें मिस्र से बाहर निकाला और हमें यह देश दिया, जहाँ दूध और मधु की धाराएँ बहती हैं।'”
### **आनन्द और उत्सव**
मूसा ने आगे कहा, “अब देखो, मैं भूमि की पहली उपज लाया हूँ, जो यहोवा ने मुझे दी है।” यह कहकर, व्यक्ति को टोकरी को यहोवा के सामने रख देना था और परमेश्वर के सामने झुक जाना था।
“फिर तुम अपने परिवार, लेवियों और देश के विदेशियों के साथ मिलकर आनन्द मनाओगे,” मूसा ने घोषणा की। “यह स्मरण का दिन होगा—तुम्हारी मेहनत का फल नहीं, बल्कि परमेश्वर की दया का उत्सव।”
लोगों ने एक-दूसरे की ओर देखा। वे समझ रहे थे कि यह केवल एक रस्म नहीं थी, बल्कि उनके विश्वास की जीवंत अभिव्यक्ति थी। उनकी समृद्धि उनकी अपनी योग्यता से नहीं, बल्कि परमेश्वर के प्रेम से थी।
### **आज्ञाकारिता का वचन**
मूसा ने अपनी बात समाप्त करते हुए कहा, “आज यहोवा ने तुमसे यह आज्ञा दी है। इसलिए इन नियमों को पूरे मन से मानो और उन पर चलो। आज यहोवा ने तुम्हें अपनी प्रजा घोषित किया है, जैसा उसने वचन दिया था। तुम्हें उसकी सभी आज्ञाओं का पालन करना है। और वह तुम्हें सभी जातियों में महान बनाएगा, अपनी स्तुति, प्रतिष्ठा और गौरव के लिए, जैसा उसने वादा किया है।”
लोगों ने एक स्वर में उत्तर दिया, “आमीन!” उनके हृदय आनन्द और आशीष से भर गए। वे जानते थे कि यह केवल एक कर्मकाण्ड नहीं था—यह उनकी विरासत, उनकी पहचान और उनके परमेश्वर के प्रति उनकी निष्ठा का प्रतीक था।
और इस प्रकार, इस्राएल के लोगों ने अपनी पहली उपज को परमेश्वर के सामने समर्पित करने की तैयारी की, यह जानते हुए कि उनका जीवन, उनकी समृद्धि और उनका भविष्य—सब कुछ यहोवा के हाथ में है।