पवित्र बाइबल

वचन की पवित्रता: न्यायियों की पुस्तक से प्रेरित कहानी

**एक वचन की पवित्रता: न्यायियों की पुस्तक से एक कहानी**

बहुत पहले की बात है, जब इस्राएल के लोग मोआब के मैदान में डेरे डाले हुए थे। मूसा, परमेश्वर के सेवक, ने उन सभी को एकत्रित किया और यहोवा की ओर से आज्ञाएँ सुनाईं। उन्हीं आज्ञाओं में से एक थी—**वचनों की पवित्रता**।

### **एक पिता और उसकी पुत्री**

उन दिनों में रूबेन नाम का एक व्यक्ति था, जो यहूदा के गोत्र से था। उसकी एक पुत्री थी, जिसका नाम तामार था। तामार बहुत ही धर्मपरायण और सज्जन स्वभाव की थी। एक दिन, जब वह यहोवा के सामने प्रार्थना कर रही थी, तो उसने मन में एक प्रतिज्ञा की: *”हे यहोवा, यदि तू मेरे पिता की फसल को इस साल बढ़ा दे, तो मैं एक महीने तक कोई मीठी वस्तु नहीं खाऊँगी और न ही दाखमधु पियूँगी।”*

कुछ ही दिनों बाद, रूबेन की फसल अत्यधिक बढ़ गई, जैसे कि यहोवा ने उसकी प्रार्थना सुन ली हो। तामार ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का निश्चय किया। लेकिन जब उसने अपने पिता को यह बताया, तो रूबेन चिंतित हो गया। उसने कहा, *”बेटी, तू अभी युवा है। इतना कठोर व्रत रखने से तेरा स्वास्थ्य बिगड़ सकता है।”*

रूबेन ने अपनी पुत्री की प्रतिज्ञा को रद्द कर दिया। परन्तु तामार ने पिता की आज्ञा मान ली और उसने अपना व्रत तोड़ दिया। यह देखकर, गाँव के कुछ लोगों ने कहा, *”क्या यह ठीक हुआ? क्या प्रतिज्ञा तोड़ना उचित है?”*

### **एक पति और उसकी पत्नी**

उसी शिविर में शिमोन नाम का एक और व्यक्ति रहता था। उसकी पत्नी, लीया, ने एक दिन क्रोध में आकर प्रतिज्ञा की: *”यदि मेरे पति का भाई एक बार फिर हमारे घर का अन्न चुराएगा, तो मैं एक साल तक यहोवा के मन्दिर में नहीं जाऊँगी!”*

शिमोन ने जब यह सुना, तो वह चुप रहा। लेकिन जब उसका भाई फिर से अन्न ले गया, तो लीया ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का निश्चय किया। शिमोन ने उस दिन अपनी पत्नी से कहा, *”तुम्हारा क्रोध तुम्हें गलत प्रतिज्ञा करने पर मजबूर करता है। मैं तुम्हारी इस प्रतिज्ञा को मान्य नहीं करता।”*

लीया ने पति की बात मान ली और मन्दिर जाना जारी रखा। लोगों ने फुसफुसाते हुए कहा, *”क्या पति का अधिकार पत्नी की प्रतिज्ञा से ऊपर है?”*

### **एक विधवा और उसकी प्रतिज्ञा**

उसी समुदाय में एक विधवा स्त्री रहती थी, जिसका नाम हन्ना था। उसका पति युद्ध में मारा गया था, और वह अकेली ही अपने दो बच्चों का पालन-पोषण कर रही थी। एक दिन, जब उसके बेटे बीमार पड़ गए, तो हन्ना ने यहोवा के सामने प्रतिज्ञा की: *”हे प्रभु, यदि तू मेरे पुत्रों को स्वस्थ कर दे, तो मैं अपनी सम्पत्ति का दसवाँ भाग तेरे मन्दिर को अर्पित करूँगी!”*

यहोवा ने उसकी प्रार्थना सुनी, और उसके पुत्र ठीक हो गए। हन्ना ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की, क्योंकि उस पर किसी पति या पिता का अधिकार नहीं था। उसने वह सब कुछ मन्दिर को दिया, जैसा उसने वचन दिया था।

### **मूसा का निर्णय**

जब ये सभी घटनाएँ मूसा तक पहुँचीं, तो उसने यहोवा से पूछा। परमेश्वर ने उसे समझाया:

*”यदि कोई पुरुष—पिता या पति—अपनी पुत्री या पत्नी की प्रतिज्ञा सुनकर चुप रह जाए, तो वह प्रतिज्ञा मान्य होगी। लेकिन यदि वह उसे रद्द कर दे, तो यहोवा उसे क्षमा करेगा, क्योंकि पुरुष को उस पर अधिकार दिया गया है। परन्तु विधवा या तलाकशुदा स्त्री की प्रतिज्ञा पूर्णतः उसी पर है।”*

मूसा ने ये बातें सब इस्राएलियों को सुनाईं, और लोगों ने परमेश्वर की बुद्धि की प्रशंसा की।

### **सबक**

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि **वचन की पवित्रता** परमेश्वर के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमें बिना सोचे-समझे प्रतिज्ञाएँ नहीं करनी चाहिए, लेकिन यदि करें, तो उन्हें पूरा करने का प्रयास करना चाहिए—जब तक कि हमारे ऊपर अधिकार रखने वाले उन्हें रद्द न कर दें।

*”मनुष्य का वचन परमेश्वर के सामने पवित्र है।”* — और यही सच्चाई है।

**आमीन।**

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