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गलातियों 5 की कहानी आजादी और प्रेम का मार्ग

**गलातियों 5 की कहानी: आज़ादी और प्रेम का मार्ग**

एक समय की बात है, गलातिया के एक छोटे-से गाँव में कई विश्वासी रहते थे। वे सभी प्रभु यीशु मसीह में विश्वास रखते थे और उनके प्रेम में बँधे हुए थे। लेकिन धीरे-धीरे, कुछ ऐसे लोग उनके बीच आए जो उन्हें भ्रमित करने लगे। वे कहते, “यदि तुम सच्चे मसीही बनना चाहते हो, तो तुम्हें मूसा की व्यवस्था का पालन करना होगा। खतना करवाना होगा और सभी धार्मिक नियमों को मानना होगा।”

यह सुनकर गलातिया के विश्वासी परेशान हो गए। वे सोचने लगे, “क्या सचमुच हमें इन नियमों का पालन करना चाहिए? क्या केवल विश्वास ही पर्याप्त नहीं है?” उनके मन में संदेह और भय भर गया।

तब प्रेरित पौलुस, जो उनके लिए आत्मिक पिता के समान थे, ने उन्हें एक पत्र लिखा। उस पत्र में उन्होंने स्पष्ट शब्दों में समझाया:

**”हे गलातियों, तुम मसीह के लिए आज़ाद हो! फिर क्यों तुम फिर से दासत्व के जुए में जकड़े जा रहे हो? याद रखो, यदि तुम खतना करवाकर व्यवस्था के पालन पर भरोसा रखोगे, तो मसीह का कोई लाभ तुम्हें नहीं होगा। क्योंकि धार्मिकता केवल विश्वास से ही प्राप्त होती है, नियमों से नहीं!”**

पौलुस ने आगे लिखा, **”प्रभु यीशु ने तुम्हें स्वतंत्र किया है, इसलिए दृढ़ता से खड़े रहो और फिर कभी दासता के बोझ तले न झुको। यदि तुम व्यवस्था के कुछ नियमों को मानकर धार्मिक होने का प्रयास करोगे, तो मसीह से अलग हो जाओगे। क्योंकि विश्वास ही वह मार्ग है जो प्रेम के द्वारा सक्रिय होता है।”**

फिर पौलुस ने उन्हें चेतावनी दी: **”लेकिन सावधान रहो! यह आज़ादी शरीर के लिए पाप का अवसर न बने। बल्कि, आत्मा के नेतृत्व में चलो। क्योंकि शरीर और आत्मा एक-दूसरे के विरोध में हैं। यदि तुम आत्मा के अनुसार चलोगे, तो तुम व्यवस्था के नियमों के अधीन नहीं रहोगे।”**

उसके बाद, पौलुस ने शरीर के कामों और आत्मा के फल के बारे में विस्तार से बताया:

**”शरीर के काम स्पष्ट हैं: व्यभिचार, अशुद्धता, लालच, मूर्तिपूजा, ईर्ष्या, क्रोध, स्वार्थ, फूट, और ऐसे ही अन्य पाप। मैं तुम्हें पहले भी चेतावनी दे चुका हूँ कि ऐसा करने वाले परमेश्वर के राज्य के वारिस नहीं होंगे।”**

**”लेकिन आत्मा का फल प्रेम, आनंद, शांति, धैर्य, कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम है। ऐसे गुणों के विरुद्ध कोई व्यवस्था नहीं है। जो मसीह के हैं, उन्होंने शरीर और उसकी वासनाओं को क्रूस पर मार डाला है। इसलिए, यदि हम आत्मा के द्वारा जीवित हैं, तो आत्मा के अनुसार चलें।”**

यह पत्र पढ़कर गलातिया के विश्वासियों के हृदय में नई समझ जागी। उन्होंने महसूस किया कि उनकी आज़ादी मसीह में है, न कि धार्मिक नियमों में। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वे अब आत्मा के मार्ग पर चलेंगे और प्रेम तथा सेवा के द्वारा एक-दूसरे का भार उठाएँगे।

और इस तरह, गलातिया के विश्वासियों ने सच्ची स्वतंत्रता का अनुभव किया—वह स्वतंत्रता जो मसीह के प्रेम में पूरी होती है और आत्मा के फल से परिपूर्ण होकर दूसरों के लिए आशीष बन जाती है।

**~ समाप्त ~**

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