**यहोशू 24: एक नई प्रतिज्ञा की कहानी**
उस दिन, सूरज की सुनहरी किरणें शकेम के विशाल मैदान में फैली हुई थीं। यहोशू, इस्राएल का बूढ़ा और बुद्धिमान नेता, अपने लोगों को इकट्ठा करने के लिए आगे बढ़ा। वह जानता था कि उसके जीवन के दिन पूरे होने वाले हैं, और उसे परमेश्वर की ओर से एक अंतिम संदेश देना था। सभी गोत्रों के प्रधान, बुजुर्ग, न्यायी, और सामान्य लोग—सभी वहाँ एकत्र हुए। यहोशू का चेहरा गंभीर था, परन्तु उसकी आँखों में एक दिव्य चमक थी।
वह परमेश्वर के सामने खड़ा हुआ और उसके वचनों ने हवा को गूँज दिया। “इस्राएल के लोगो, यहोवा परमेश्वर यह कहता है: ‘तुम्हारे पूर्वज, अब्राहम और नाहोर, प्राचीन काल में फरात नदी के पार रहते थे और दूसरे देवताओं की उपासना करते थे। परन्तु मैंने तुम्हारे पिता अब्राहम को उस देश से निकालकर कनान की भूमि में ले आया और उसके वंश को बढ़ाया।'”
यहोशू ने विस्तार से बताया कि कैसे परमेश्वर ने इस्राएल को मिस्र की दासता से छुड़ाया, कैसे उसने मूसा और हारून को भेजकर बड़े-बड़े चमत्कार दिखाए—लाल सागर का फटना, मन्ना और बटेरों का अद्भुत भोजन, और अमालेकियों पर विजय। उसने याद दिलाया कि कैसे बालाक और बिलाम ने इस्राएल को श्राप देने की कोशिश की, परन्तु परमेश्वर ने उन श्रापों को आशीष में बदल दिया।
“तुमने यह सब देखा है!” यहोशू ने जोर देकर कहा। “यहोवा ने तुम्हारे लिए युद्ध किया, तुम्हें यरदन पार कराया, और इस धरती के बड़े-बड़े राजाओं को तुम्हारे सामने पराजित किया। यह भूमि जिसमें तुम आज रहते हो, तुम्हारी नहीं थी—परन्तु परमेश्वर ने इसे तुम्हें दिया!”
फिर यहोशू ने एक गंभीर चुनौती दी। “अब यहोवा का भय मानकर उसकी सेवा ईमानदारी और सच्चाई से करो। यदि तुम्हें यहोवा की उपासना करनी अच्छी न लगे, तो आज ही निश्चय कर लो कि तुम किसकी उपासना करोगे—चाहे वे देवता हों जिनकी पूजा तुम्हारे पूर्वज फरात नदी के पार करते थे, या फिर अमोरियों के देवता जिनकी उपासना इस देश के लोग करते हैं। परन्तु मैं और मेरा घराना—हम यहोवा की ही सेवा करेंगे!”
लोगों ने एक स्वर में उत्तर दिया, “हम यहोवा को छोड़कर और देवताओं की सेवा कभी नहीं करेंगे! क्योंकि वही हमारा परमेश्वर है जिसने हमें और हमारे पूर्वजों को मिस्र के दासत्व से छुड़ाया, जिसने हमारे सामने बड़े-बड़े चमत्कार किए, और जिसने हमें इस उपजाऊ भूमि में बसाया!”
यहोशू ने उनकी बात सुनी, परन्तु वह जानता था कि मनुष्य का हृदय कितना चंचल होता है। उसने कड़े शब्दों में कहा, “तुम यहोवा के लिए अपने आप को पवित्र नहीं कर सकते! वह पवित्र और जलन रखने वाला परमेश्वर है। यदि तुम उसे छोड़कर अन्य देवताओं की उपासना करोगे, तो वह तुम्हारा सुख-चैन छीन लेगा और तुम्हें दण्ड देगा!”
फिर भी लोग दृढ़ता से बोले, “नहीं! हम यहोवा की ही सेवा करेंगे!”
तब यहोशू ने एक बड़ा पत्थर उठाया और उसे वहाँ खड़ा कर दिया, जहाँ सभी इकट्ठे हुए थे। “यह पत्थर हमारे बीच गवाह रहेगा,” उसने कहा। “इसने यहोवा के सभी वचन सुने हैं जो हमने आज कहे हैं। यह तुम्हें याद दिलाता रहेगा कि तुमने परमेश्वर के प्रति अपनी निष्ठा की प्रतिज्ञा की है।”
इसके बाद, यहोशू ने लोगों को विदा किया, और हर एक व्यक्ति अपने-अपने नगर को लौट गया। यहोशू ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में इस्राएल को एकता और विश्वास की महत्वपूर्ण शिक्षा दी। उसकी मृत्यु के बाद, लोगों ने यहोवा की सेवा की, जब तक कि उस पीढ़ी के बुजुर्ग जीवित रहे जिन्होंने यहोशू के साथ परमेश्वर के महान काम देखे थे।
परन्तु समय बीतने के साथ, नई पीढ़ी उठी जिसने यहोवा को नहीं जाना। और इस्राएल फिर से अपने पुराने रास्तों पर लौट आया… परन्तु यह एक और कहानी है।
**शिक्षा:** यहोशू 24 हमें याद दिलाता है कि परमेश्वर के प्रति हमारी निष्ठा एक दैनिक चुनाव है। हमें अपने जीवन में उसकी महान कार्यों को याद रखना चाहिए और हमेशा उसकी सेवा करने का दृढ़ निश्चय करना चाहिए।