**2 इतिहास 4 – सुलैमान का मन्दिर: पवित्र वस्तुओं का विस्तृत वर्णन**
राजा सुलैमान ने यहोवा के मन्दिर के निर्माण का कार्य पूरा कर लिया था। अब समय आया था मन्दिर के भीतर पवित्र वस्तुओं को स्थापित करने का, जिन्हें परमेश्वर की महिमा के लिए बनाया गया था। सुलैमान ने कुशल कारीगरों को बुलवाया, जिन्हें उसके पिता दाऊद ने पहले ही चुन लिया था। ये कारीगर ताँबे, सोने और अन्य बहुमूल्य धातुओं पर काम करने में निपुण थे।
### **काँसे का बड़ा हौद**
सबसे पहले, कारीगरों ने एक विशाल काँसे का हौद ढाला, जिसे “समुद्र” कहा जाता था। यह हौद गोलाकार था और इसका व्यास दस हाथ (लगभग 4.5 मीटर) था। इसकी ऊँचाई पाँच हाथ (लगभग 2.25 मीटर) थी, और इसकी परिधि तीस हाथ (लगभग 13.5 मीटर) थी। हौद के किनारे पर कमल के फूलों की आकृतियाँ बनी हुई थीं, जो सुन्दरता से उकेरी गई थीं। यह हौद बारह बैलों की मूर्तियों पर टिका हुआ था—तीन बैल उत्तर की ओर, तीन पश्चिम की ओर, तीन दक्षिण की ओर और तीन पूर्व की ओर मुँह किए हुए थे। इन बैलों के पीछे ही हौद रखा गया था।
इस हौद का उपयोग याजकों के शुद्धिकरण के लिए किया जाता था। वे इसमें हाथ-पाँव धोते थे, ताकि वे पवित्र होकर परमेश्वर की सेवा कर सकें। हौद इतना बड़ा था कि इसमें लगभग तीन हज़ार बाथ (लगभग 66,000 लीटर) पानी समा सकता था।
### **दस काँसे की धोने की चौकियाँ**
इसके अलावा, सुलैमान ने दस काँसे की धोने की चौकियाँ बनवाईं। ये चौकियाँ मन्दिर के दक्षिण और उत्तर दिशा में रखी गईं—प्रत्येक ओर पाँच-पाँच। इन चौकियों का उपयोग होमबलि की वेदी पर चढ़ाए जाने वाले पशुओं के अंगों को धोने के लिए किया जाता था। प्रत्येक चौकी चार हाथ लम्बी, चार हाथ चौड़ी और तीन हाथ ऊँची थी।
चौकियों के ऊपर बने हुए आधारों पर कलात्मक नक्काशी थी, जिसमें सिंह, बैल और करूबों की आकृतियाँ उभरी हुई थीं। प्रत्येक चौकी के नीचे पहिये लगे हुए थे, जिससे उन्हें स्थानांतरित करना आसान था। चौकियों के ऊपर गोलाकार धोने के पात्र रखे गए थे, जिनमें पानी भरा जाता था।
### **सोने के अन्य पात्र**
सुलैमान ने सोने के अनेक पात्र भी बनवाए:
– **दस दीपवृक्ष:** ये सोने के बने हुए थे और मन्दिर के अंदर रखे गए थे। इन पर दीपक जलाए जाते थे, जो परमेश्वर के प्रकाश का प्रतीक थे।
– **दस मेजें:** ये भी सोने की बनी थीं और इन पर प्रत्येक सब्त के दिन रोटी रखी जाती थी, जिसे “पवित्र रोटी” कहा जाता था।
– **एक सौ सोने के कटोरे:** इनका उपयोग बलिदानों के लिए किया जाता था।
### **आँगन और अन्य वस्तुएँ**
मन्दिर के आँगन को तीन भागों में बाँटा गया था:
1. **याजकों का आँगन:** जहाँ केवल याजक ही प्रवेश कर सकते थे।
2. **बाहरी आँगन:** जहाँ इज़राइल के लोग इकट्ठा होते थे।
3. **महान आँगन:** जिसमें बड़ी वेदी स्थित थी।
इसके अलावा, मन्दिर के द्वारों, काँसे के खम्भों (याकीन और बोअज), और अन्य सभी उपकरणों को बनाने में कुशलता से काम किया गया था। सुलैमान ने हुसैद नामक एक कुशल कारीगर को यह सब बनाने की जिम्मेदारी दी थी, जो तूर के राजा हीराम के यहाँ से आया था।
### **परमेश्वर की महिमा के लिए सब कुछ**
सुलैमान ने इन सभी वस्तुओं को इसलिए बनवाया था ताकि परमेश्वर की सेवा पूरी श्रद्धा और भव्यता के साथ की जा सके। हर वस्तु, हर नक्काशी, हर माप—सब कुछ परमेश्वर के निर्देशानुसार बनाया गया था। जब सब कुछ तैयार हो गया, तो मन्दिर की छवि अद्भुत थी—सोने की चमक, काँसे की ठोसता, और पवित्रता की गंभीरता हर ओर व्याप्त थी।
इस प्रकार, सुलैमान ने परमेश्वर के मन्दिर को सजाया और सुसज्जित किया, ताकि इस्राएल का परमेश्वर, यहोवा, अपने लोगों के बीच निवास कर सके।