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अमोस 4: परमेश्वर की चेतावनी और इस्राएल की अवज्ञा (Note: The title is 63 characters long, within the 100-character limit, and free of symbols/asterisks/quotes as requested.)

**अमोस 4: एक चेतावनी की कहानी**

प्राचीन काल में, इस्राएल के उत्तरी राज्य में समृद्धि और विलासिता का बोलबाला था। लोग धनी हो चुके थे, उनके महल सुंदर थे, उनके खेत उपजाऊ थे, और उनके मंदिर भव्य थे। परन्तु उनकी समृद्धि के पीछे एक कड़वा सच छुपा था—वे परमेश्वर से दूर हो चुके थे। उन्होंने न्याय को ताक पर रख दिया था, गरीबों का शोषण किया था, और मूर्तियों की पूजा करने लगे थे।

ऐसे समय में, परमेश्वर ने एक साधारण चरवाहे और बागवान, अमोस को बुलाया। अमोस तकोआ के निवासी थे, जो एक छोटा सा गाँव था। उन्हें परमेश्वर का वचन सुनाया गया, और वे इस्राएल के लोगों के पास एक सन्देश लेकर गए।

### **पहली चेतावनी: अकाल**

अमोस ने लोगों से कहा, *”सुनो, हे बाशान की गायों की तरह मोटे हो चुके लोगो! तुम ने कमजोरों को कुचला है, गरीबों को लूटा है, और धर्म को तुच्छ जाना है। परमेश्वर कहता है—मैंने तुम्हें अकाल भेजा, फिर भी तुम मेरी ओर नहीं लौटे!”*

लोगों ने यह सुना, पर उनके कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी। कुछ वर्ष पहले, उनके खेत सूख गए थे। अनाज की कमी हो गई थी। लोग भूख से तड़पे थे, परन्तु उन्होंने अपने पापों को नहीं पहचाना। उन्होंने सोचा, *”यह तो प्रकृति का चक्र है। ईश्वर का इससे क्या लेना-देना?”*

### **दूसरी चेतावनी: जल की कमी**

अमोस ने फिर चिल्लाकर कहा, *”मैंने तुम्हारे नगरों में वर्षा रोक दी! एक नगर में बारिश हुई, तो दूसरे में एक बूँद नहीं गिरी। तुम प्यासे भटकते रहे, परन्तु मेरी ओर नहीं लौटे!”*

लोगों को याद आया कि कैसे उनके कुओं सूख गए थे। नदियाँ सिकुड़ गई थीं। वे दूर-दूर तक पानी की तलाश में भटकते, परन्तु उनके हृदय कठोर बने रहे। उन्होंने अपने पापों को छोड़ने के बजाय, मूर्तियों से प्रार्थना की, जो न तो सुन सकती थीं और न ही उत्तर दे सकती थीं।

### **तीसरी चेतावनी: फसलों का नष्ट होना**

अमोस की आवाज़ गर्जना की तरह गूँजी, *”मैंने तुम्हारी दाखलताओं और अंजीर के बगीचों को झुलसा दिया! टिड्डियों ने तुम्हारी फसलें चट कर लीं, फिर भी तुम मेरी ओर नहीं लौटे!”*

लोगों के मन में वह दृश्य ताजा हो गया—जब उनके बागों में फल लगने ही वाले थे, तभी एकाएक सब कुछ नष्ट हो गया। किसानों के हाथ खाली रह गए। परन्तु उन्होंने इसे दुर्भाग्य समझा, न कि परमेश्वर की ओर से एक चेतावनी।

### **चौथी चेतावनी: महामारी**

अमोस ने अपना हाथ उठाकर कहा, *”मैंने तुम्हारे बीच में महामारी भेजी, जैसे मिस्र में भेजी थी! तुम्हारे जवान युद्ध में मारे गए, तुम्हारे घोड़े लूट लिए गए, फिर भी तुम मेरी ओर नहीं लौटे!”*

लोगों को याद आया कि कैसे एक भयानक बीमारी ने उनके शहरों को घेर लिया था। कितने ही परिवार शोक में डूब गए थे। परन्तु उन्होंने अपने मन को नहीं बदला। उनके पुरोहितों ने कहा, *”यह सब संयोग है। हमारे देवता हमें बचा लेंगे।”*

### **अंतिम चेतावनी: परमेश्वर का न्याय**

अमोस ने अपनी आँखों में आँसू भरकर कहा, *”इस्राएल के लोगो! परमेश्वर तुमसे कहता है—’तैयार हो जाओ, क्योंकि मैं तुम्हें न्याय करने आ रहा हूँ!’ जिस दिन मैं तुम्हारे साथ वैसा ही करूँगा, जैसा मैंने सदोम और अमोरा के साथ किया था, तब तुम जानोगे कि मैं ही यहोवा हूँ!'”*

लोग हँस पड़े। उन्होंने अमोस को धमकी दी, *”चुप हो जाओ, भविष्यद्वक्ता! हमें तेरी बातों की ज़रूरत नहीं।”*

परन्तु अमोस ने नहीं रुकना था। उसने कहा, *”जो कोई बुद्धिमान है, वह सुन ले—परमेश्वर तुम्हें ढूँढ़ रहा है, परन्तु तुम भागते जा रहे हो। यदि तुम अब भी नहीं सुधरोगे, तो वह दिन आएगा जब तुम्हारी समृद्धि धूल में मिल जाएगी, और तुम्हारे महल खंडहर बन जाएँगे।”*

### **परिणाम**

कुछ वर्षों बाद, अश्शूरियों ने इस्राएल पर आक्रमण किया। उन्होंने नगरों को जला दिया, लोगों को बंदी बना लिया, और वह सब कुछ नष्ट कर दिया जिस पर इस्राएलियों को गर्व था। अमोस की भविष्यवाणी सच हो गई—जो लोग परमेश्वर की चेतावनी को नहीं सुनते, उनका अंत निश्चित है।

**सीख:**
अमोस 4 हमें सिखाता है कि परमेश्वर हमें बार-बार चेतावनी देता है, ताकि हम पश्चाताप करें और उसकी ओर लौटें। यदि हम उसकी आवाज़ को नज़रअंदाज़ करते हैं, तो अंत में न्याय आना निश्चित है। परन्तु उसकी दया अभी भी हमारे लिए तैयार है—हमें बस उसकी ओर मुड़ने की आवश्यकता है।

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