प्रभु की कृपा और सच्चाई का मिलन (Note: The original title provided was already concise and within the 100-character limit. I’ve simply removed the asterisks and quotes as requested while keeping the essence intact.)
**भजन संहिता 85 पर आधारित एक विस्तृत कहानी**
**शीर्षक: “प्रभु की कृपा और सच्चाई का मिलन”**
प्राचीन समय में, इस्राएल के लोगों ने एक कठिन दौर देखा था। वे अपने पापों के कारण परमेश्वर के कोप के अधीन हो गए थे। उनके शत्रुओं ने उन्हें घेर लिया था, और उनकी भूमि उजाड़ हो गई थी। लोगों के हृदय भय और निराशा से भरे हुए थे। परन्तु फिर भी, उनमें से कुछ विश्वासी ऐसे थे जो प्रभु की दया की गुहार लगाते रहते थे।
एक दिन, एक बूढ़ा भजन गायक, एलियाकीम, जो यरूशलेम के मंदिर में सेवा करता था, प्रभु के सामने गहरी प्रार्थना में लीन हो गया। उसने भजन संहिता 85 के शब्दों को गुनगुनाया:
**”हे प्रभु, तू ने अपनी भूमि पर अनुग्रह किया है, तू ने याकूब के बंधुओं को छुड़ाया है। तू ने अपनी प्रजा के अधर्म को क्षमा किया है, तू ने उनके सारे पाप ढांप दिए हैं।”**
एलियाकीम का हृदय इन वचनों से भर उठा। वह जानता था कि प्रभु ने अतीत में उनके पूर्वजों पर बहुत अनुग्रह किया था। उसने सोचा, “क्या प्रभु फिर से हम पर दया करेगा? क्या वह हमारे पापों को क्षमा करके हमें नया जीवन देगा?”
उसी रात, एलियाकीम को एक स्वप्न आया। उसने देखा कि स्वर्ग से एक प्रकाश उतर रहा है, और उसमें से दो दिव्य आकृतियाँ प्रकट हुईं—एक **कृपा** की प्रतिमूर्ति और दूसरी **सच्चाई** की। वे एक-दूसरे से गले मिल रही थीं, और उनके मिलन से पृथ्वी पर शांति और आनन्द फैल रहा था। एक मधुर स्वर गूँजा:
**”कृपा और सच्चाई मिलेंगी, धर्म और शांति एक-दूसरे को चूमेंगे।”**
जब एलियाकीम ने आँखें खोलीं, तो उसका हृदय आशा से भर गया। वह समझ गया कि प्रभु ने उसे एक संदेश दिया है। अगले दिन, उसने लोगों को इकट्ठा किया और उनसे कहा:
“हे भाइयो, प्रभु हमसे प्रेम करता है! वह हमारे पापों को क्षमा करने के लिए तैयार है। यदि हम अपने मन से पश्चाताप करें और उसकी ओर लौटें, तो वह हम पर फिर से अनुग्रह करेगा। उसकी कृपा और सच्चाई हमें नया जीवन देगी!”
लोगों ने उसकी बातों पर विश्वास किया। उन्होंने अपने पापों का अंगीकार किया और प्रभु से क्षमा माँगी। धीरे-धीरे, परिवर्तन होने लगा। शत्रुओं ने उन पर आक्रमण करना बंद कर दिया, भूमि फिर से उपजाऊ हो गई, और लोगों के हृदयों में शांति छा गई।
एलियाकीम ने फिर से भजन गाया:
**”प्रभु हमें अपनी शांति देगा, और हमारी भूमि फिर से उसकी महिमा से भर जाएगी। उसकी कृपा हम पर बरसेगी, और हम उसकी सच्चाई के मार्ग पर चलेंगे!”**
और ऐसा ही हुआ। इस्राएल के लोगों ने देखा कि प्रभु ने उनकी प्रार्थनाएँ सुन ली थीं। उनकी आशा फलवंत हुई, और वे जान गए कि प्रभु की कृपा कभी समाप्त नहीं होती।
**समापन:**
इस कहानी से हम सीखते हैं कि प्रभु हमेशा हमारे पश्चाताप को स्वीकार करने के लिए तैयार है। यदि हम उसकी ओर मुड़ें, तो वह हमारे जीवन में कृपा और सच्चाई का मिलन कराएगा, जिससे हमारे हृदयों में शांति और आनन्द भर जाएगा। जैसे भजन 85:8 में लिखा है:
**”मैं प्रभु की शांति की सुनूँगा, कि वह अपने लोगों और अपने भक्तों के लिए शांति की बात कहे।”**
प्रभु हमेशा हमारे साथ है!