**एक विवेकी राजा और विदुषी रानी की कथा**
प्राचीन काल में इज़राइल देश में एक बुद्धिमान राजा राज्य करता था। उसका नाम राजा लेवी था। वह परमेश्वर का भक्त था और हमेशा न्याय और धर्म के मार्ग पर चलता था। एक दिन, जब वह अपने महल के बगीचे में टहल रहा था, तो उसके मन में एक विचार आया—”क्या मेरे राज्य में कोई ऐसी स्त्री है जो सच्ची विवेकशीलता और परिश्रम की मिसाल हो? जैसा कि नीतिवचन ३१ में लिखा है, ‘एक सुयोग्य स्त्री कौन ढूंढ़ेगा? क्योंकि उसकी कीमति मूंगों से भी अधिक है।'”
राजा ने अपने दरबारियों को आज्ञा दी कि वे पूरे राज्य में ऐसी स्त्री की खोज करें जो न केवल बुद्धिमान हो, बल्कि दयालु, परिश्रमी और परमेश्वर का भय मानने वाली हो। कई दिनों की खोज के बाद, उन्हें एक छोटे से गाँव में रहने वाली एक स्त्री के बारे में पता चला, जिसका नाम रूत था।
रूत एक विधवा थी, परन्तु उसने कभी भी अपने संघर्षों से हार नहीं मानी। वह प्रतिदिन सुबह जल्दी उठकर अपने खेतों में काम करती, अपने हाथों से कपड़े बुनती, और गरीबों को भोजन देती। उसकी बुद्धिमत्ता और करुणा के कारण पूरा गाँव उसका सम्मान करता था। जब राजा के दूत उसके घर पहुँचे, तो वह अपने आँगन में गेहूँ की बालियाँ सुखा रही थी।
“महाराज आपको अपने दरबार में बुलाते हैं,” एक दूत ने कहा।
रूत ने विनम्रता से सिर झुकाया और उत्तर दिया, “मैं एक साधारण स्त्री हूँ, परन्तु यदि राजा की आज्ञा है, तो मैं अवश्य चलूँगी।”
जब रूत राजा के सामने पहुँची, तो राजा ने उसकी विनम्रता और तेजस्वी चेहरे को देखकर प्रभावित हुआ। उसने उससे कई प्रश्न पूछे—”तुम गरीबों की सहायता क्यों करती हो? तुम इतनी मेहनत कैसे कर लेती हो?”
रूत ने धीरे से उत्तर दिया, “महाराज, परमेश्वर ने मुझे यह हृदय दिया है कि मैं दूसरों की सेवा करूँ। नीतिवचन कहता है कि ‘वह अपना हाथ चरखे पर रखती है, और उसकी उँगलियाँ तकुआ पकड़ती हैं। वह दीन-दुखियों के लिए अपना हाथ फैलाती है।’ मैं केवल उसी के मार्ग पर चलने का प्रयास करती हूँ।”
राजा उसके उत्तरों से अत्यंत प्रसन्न हुआ। उसने कहा, “तुम सच में नीतिवचन ३१ की स्त्री हो। तुम्हारे जैसी विवेकशील और परिश्रमी स्त्री ही राज्य की सच्ची धरोहर है।”
राजा ने उसे अपने दरबार में सम्मानित किया और उसकी बुद्धिमत्ता से पूरा राज्य लाभान्वित हुआ। रूत ने अपने जीवन से यह सिद्ध किया कि सच्ची स्त्री वह है जो परमेश्वर का भय मानती है, मेहनती है, और दूसरों की सेवा में अपना जीवन समर्पित करती है।
और इस प्रकार, राजा लेवी के राज्य में नीतिवचन की शिक्षा जीवंत हो उठी—”क्याती स्त्रियाँ बहुत हैं, परन्तु तू उन सब में मुख्य है।”