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**प्रकाशितवाक्य 4: स्वर्गीय सिंहासन का दर्शन**
यूहन्ना ने अपनी आँखें बंद कीं और प्रार्थना में ध्यान लगाया। वह पतमुस द्वीप पर था, जहाँ परमेश्वर ने उसे भविष्य की अद्भुत बातें दिखाने का वचन दिया था। तभी अचानक, आकाश खुल गया, और एक शक्तिशाली आवाज़ ने उसे पुकारा, “यहाँ ऊपर आ, और मैं तुझे वे बातें दिखाऊँगा जो इन बातों के बाद होनी चाहिए।” यूहन्ना का आत्मा तुरंत आत्मिक रूप से उठा लिया गया, और वह स्वर्ग के द्वार पर पहुँच गया।
जैसे ही वह अंदर गया, उसकी आँखों के सामने एक अद्भुत दृश्य प्रकट हुआ—एक महिमामय सिंहासन, जो स्वर्ग के मध्य स्थापित था। सिंहासन पर एक महान व्यक्ति विराजमान थे, जिनका रूप माणिक और सूर्यमणि जैसा चमकीला था। उनके चारों ओर एक इंद्रधनुष था, जो पन्ने की तरह हरा चमक रहा था, जैसे कि परमेश्वर की प्रतिज्ञा और अनुग्रह की याद दिला रहा हो।
सिंहासन के चारों ओर चौबीस छोटे सिंहासन थे, जिन पर चौबीस प्राचीन सफेद वस्त्र पहने बैठे थे। उनके सिर पर सोने के मुकुट सुशोभित थे, जो उनकी विजय और सेवकाई का प्रतीक थे। ये प्राचीन परमेश्वर के सामने गहरी श्रद्धा से झुके हुए थे, और जब भी वे सिंहासन पर बैठे हुए प्रभु की स्तुति करते, तो अपने मुकुट उतारकर उसके सामने रख देते थे।
तभी यूहन्ना ने बिजली की चमक और गर्जन सुनी। सिंहासन से आग की लपटें निकल रही थीं, और सात जलते हुए दीपक उसके सामने प्रज्वलित थे। ये परमेश्वर की सात आत्माएँ थीं, जो सारी पृथ्वी पर उसकी इच्छा को पूरा करती थीं। सिंहासन के सामने एक शीशे जैसा स्वच्छ जल सा समुद्र फैला हुआ था, जो परमेश्वर की पवित्रता और शांति को दर्शाता था।
फिर यूहन्ना ने चार अद्भुत जीवों को देखा, जो सिंहासन के चारों ओर खड़े थे। वे आँखों से भरे हुए थे—आगे और पीछे—जो यह दिखाता था कि वे सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हैं। पहला जीव सिंह के समान था, दूसरा बछड़े के समान, तीसरे का मुख मनुष्य का था, और चौथा उड़ते हुए उकाब के समान था। ये चारों जीव दिन-रात बिना रुके यह कहते हुए परमेश्वर की महिमा कर रहे थे:
**”पवित्र, पवित्र, पवित्र है प्रभु परमेश्वर, सर्वशक्तिमान, जो था, और जो है, और जो आनेवाला है!”**
जब भी ये जीव सिंहासन पर बैठे हुए जीवते परमेश्वर की महिमा और आदर करते, तो चौबीस प्राचीन सिंहासन से उठकर उनके सामने गिर पड़ते और उसकी आराधना करते। वे अपने मुकुट सिंहासन के सामने डालकर कहते:
**”हे प्रभु, तू ही महिमा और आदर और सामर्थ्य के योग्य है; क्योंकि तू ने सब वस्तुओं की सृष्टि की, और तेरी ही इच्छा से वे अस्तित्व में आईं और सृजी गईं!”**
यूहन्ना इस दर्शन से अभिभूत हो गया। स्वर्ग की यह महिमा, परमेश्वर की पवित्रता, और सृष्टि की आराधना उसे गहराई से छू गई। उसने समझ लिया कि सारी सृष्टि का अंतिम लक्ष्य परमेश्वर की महिमा करना है, और वह दिन आएगा जब हर घुटना उसके सामने झुकेगा, और हर जीभ यह स्वीकार करेगी कि यीशु मसीह ही प्रभु है।
और इस प्रकार, स्वर्ग के सिंहासन का यह दर्शन यूहन्ना के हृदय में एक गहरी आशा भर गया—कि चाहे पृथ्वी पर कितनी भी उथल-पुथल हो, परमेश्वर का सिंहासन सदैव स्थिर है, और उसकी सार्वभौमिक योजना अटल है।