पवित्र बाइबल

विश्वास की दृढ़ता इब्रानियों 6 की प्रेरणा

**विश्वास की दृढ़ता: इब्रानियों 6 की कहानी**

एक समय की बात है, यरूशलेम से कुछ दूर एक छोटे से गाँव में एक मसीही समुदाय बसा हुआ था। ये लोग प्रभु यीशु में गहरा विश्वास रखते थे, लेकिन समय के साथ उनके उत्साह में कमी आने लगी। कुछ लोगों के मन में संदेह पैदा हो गया था, और वे फिर से यहूदी धर्म की ओर मुड़ने लगे थे। उनके मन में सवाल उठने लगे थे: “क्या हम सही मार्ग पर हैं? क्या यीशु ही सच्चे मसीह हैं?”

उसी गाँव में एक बुजुर्ग विश्वासी रहते थे, जिनका नाम एलीआजर था। वह प्रारंभिक चर्च के समय से ही यीशु के शिष्य रहे थे और उन्होंने प्रेरितों के उपदेशों को सुना था। एक दिन, जब वह देख रहे थे कि उनके भाई-बहन विश्वास से डगमगा रहे हैं, तो उन्होंने सभा बुलाई और इब्रानियों 6 के वचनों को साझा करने का निश्चय किया।

सूर्यास्त का समय था जब गाँव के लोग एक बड़े जैतून के पेड़ के नीचे इकट्ठा हुए। एलीआजर ने शांत स्वर में कहा, “प्रिय भाइयो और बहनों, हमारा विश्वास एक बीज की तरह है। यदि उसे पानी दिया जाए, तो वह बढ़ता है, लेकिन यदि उसे उपेक्षित छोड़ दिया जाए, तो वह सूख जाता है। परमेश्वर ने हम पर बहुत से आशीषें उंडेली हैं—उन्होंने हमें अपने वचन का ज्ञान दिया, हमें पवित्र आत्मा का अनुभव कराया, और अनन्त जीवन की आशा दी। लेकिन यदि हम इन आशीषों को ठुकराकर पीछे हट जाएँ, तो हमारे लिए फिर से नया करना असंभव हो जाता है।”

उनकी बात सुनकर कुछ लोगों के चेहरे पर चिंता के भाव उभर आए। एक युवक ने पूछा, “लेकिन गुरुजी, क्या इसका मतलब यह है कि यदि हम पाप में लौट जाएँ, तो हमारा उद्धार नहीं हो सकता?”

एलीआजर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “नहीं, बेटे। परमेश्वर की कृपा असीम है, लेकिन वचन हमें चेतावनी देता है कि जो लोग एक बार सत्य को जानकर भी जानबूझकर पाप में लौटते हैं, उनके लिए पश्चाताप का मार्ग कठिन हो जाता है। जैसे भूमि जो अच्छी वर्षा पाकर भी केवल काँटे उत्पन्न करती है, वह परमेश्वर के कोप के योग्य ठहरती है। लेकिन हम, प्रियों, हम उस भूमि की तरह बनें जो अच्छा फल लाती है—प्रेम, सेवा, और धैर्य के कार्यों से परमेश्वर की महिमा करती है।”

उस रात, गाँव के लोगों ने गहराई से सोचा। कुछ ने अपने हृदयों में छिपे संदेहों को दूर किया और फिर से प्रभु के सामने समर्पण किया। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वे अपने विश्वास को दृढ़ता से थामें रखेंगे, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।

एलीआजर ने अंत में प्रार्थना करते हुए कहा, “हे स्वर्गिक पिता, हमें अपनी प्रतिज्ञाओं में स्थिर रख। हमारे विश्वास को और भी दृढ़ कर, ताकि हम तेरे राज्य के अद्भुत वरदानों को प्राप्त कर सकें।”

और इस तरह, इब्रानियों 6 का सन्देश उस छोटे से गाँव में एक नई आशा और दृढ़ता लेकर आया, जिससे उनका विश्वास फिर से मजबूत हुआ, जैसे ज़मीन जो अच्छी फसल देने के लिए तैयार होती है।

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