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प्रभु यीशु का उपदेश और चमत्कार: लूका 6 की प्रेरणादायक घटना

**लूका 6: प्रभु यीशु का उपदेश और चमत्कार**

उस समय, यीशु गलील की झील के किनारे चले गए। वहाँ उनके चारों ओर बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गई, जो उनके मुख से परमेश्वर का वचन सुनने के लिए लालायित थी। झील का पानी धीरे-धीरे लहरों से खेल रहा था, और हवा में ताजगी थी। यीशु ने देखा कि लोगों के हृदय भूखे हैं, इसलिए वे एक ऊँचे स्थान पर चढ़े, जहाँ से सभी उन्हें देख और सुन सकें।

उनके शिष्य भी उनके पास आकर खड़े हो गए। यीशु ने अपनी दया भरी दृष्टि उन पर डाली और उपदेश देना शुरू किया:

**”धन्य हैं वे जो गरीब हैं, क्योंकि परमेश्वर का राज्य तुम्हारा है।
धन्य हैं वे जो अभी भूखे हैं, क्योंकि तुम तृप्त किए जाओगे।
धन्य हैं वे जो अभी रोते हैं, क्योंकि तुम हँसोगे।
धन्य हो तुम जब मनुष्य मेरे कारण तुम से घृणा करेंगे और तुम्हारा तिरस्कार करेंगे। उस दिन आनन्दित होकर उछलना, क्योंकि स्वर्ग में तुम्हारे लिए बड़ा प्रतिफल है।”**

भीड़ में बैठे लोग चुपचाप सुन रहे थे। कुछ के चेहरे पर आशा की चमक थी, तो कुछ सोच में डूबे हुए थे। यीशु ने फिर कहा:

**”परन्तु हाय तुम पर जो धनी हो, क्योंकि तुम अपना सांत्वना पा चुके हो।
हाय तुम पर जो अभी तृप्त हो, क्योंकि तुम भूखे रहोगे।
हाय तुम पर जो अभी हँसते हो, क्योंकि तुम शोक करोगे और रोओगे।”**

यीशु के शब्दों में गहरी सच्चाई थी। वे न केवल भविष्य की बात कर रहे थे, बल्कि लोगों के हृदय को झकझोर रहे थे। फिर उन्होंने प्रेम और क्षमा के बारे में शिक्षा दी:

**”जो तुम्हारे साथ बुरा करे, उसके साथ भला करो। जो तुमसे घृणा करे, उससे प्रेम करो। जो तुम्हारी निन्दा करे, उसके लिए प्रार्थना करो। यदि कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे, तो दूसरा भी उसकी ओर कर दो।”**

भीड़ में कुछ लोग आपस में फुसफुसाने लगे। यह शिक्षा उनके लिए नई थी, क्योंकि संसार तो बदले की शिक्षा देता था। परन्तु यीशु का मार्ग प्रेम और दया का था।

तभी एक आदमी, जिसका दाहिना हाथ सूख गया था, भीड़ में से आगे आया। फरीसी और शास्त्री यीशु को परखने के लिए देख रहे थे कि क्या वह सब्त के दिन चंगा करेगा। यीशु ने उनके मन की बात जान ली और उस व्यक्ति से कहा, **”उठो और बीच में आओ।”**

वह व्यक्ति काँपता हुआ आगे आया। यीशु ने सबकी ओर देखकर पूछा, **”मैं तुमसे पूछता हूँ, सब्त के दिन भलाई करना उचित है या बुराई? प्राण बचाना उचित है या नष्ट करना?”**

सब चुप रहे। यीशु ने उस आदमी से कहा, **”अपना हाथ बढ़ाओ।”** उसने ऐसा ही किया, और तुरंत उसका हाथ स्वस्थ हो गया! लोग आश्चर्यचकित रह गए, परन्तु फरीसी क्रोध से भर गए और यीशु के विरुद्ध साजिश रचने लगे।

इसके बाद, यीशु ने एक पहाड़ी पर जाकर रात भर परमेश्वर से प्रार्थना की। प्रातःकाल उन्होंने अपने बारह शिष्यों को चुना, जिन्हें उन्होंने प्रेरित नाम दिया: पतरस, अन्द्रियास, याकूब, यूहन्ना, फिलिप्पुस, बरतुलमै, मत्ती, थोमा, हलफई का पुत्र याकूब, शमौन जिसे ज़ीलोत कहते हैं, याकूब का पुत्र यहूदा, और यहूदा इस्करियोती जो बाद में विश्वासघाती बना।

यीशु ने उन्हें आशीष दी और सिखाया कि कैसे वे लोगों के बीच परमेश्वर के राज्य का प्रचार करें। फिर वे नीचे उतरे, जहाँ एक बड़ी भीड़ उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। यहूदिया, यरूशलेम और तूर और सीदून के तटीय क्षेत्रों से लोग उनके पास आए थे। सभी चाहते थे कि यीशु उन्हें चंगा करें और उनमें से अशुद्ध आत्माएँ भी चिल्ला उठीं, **”तू परमेश्वर का पुत्र है!”**

यीशु ने उन सबको चंगा किया और कहा, **”धन्य हैं वे जो सुनकर मेरी बातों पर विश्वास करते हैं, क्योंकि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे लिए तैयार है।”**

इस प्रकार, यीशु ने न केवल लोगों के शरीर को स्वस्थ किया, बल्कि उनके हृदय को भी परमेश्वर के प्रेम से भर दिया। उनका उपदेश और चमत्कार लोगों के लिए एक नई आशा बन गया।

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