**प्रेरितों के काम 25: पौलुस और राजा फेस्तुस**
यह घटना उस समय की है जब पौलुस को दो वर्ष से अधिक समय तक कैसरिया के कारागार में रखा गया था। फेलिक्स, जो यहूदिया का राज्यपाल था, उसे वहाँ छोड़कर चला गया था, और उसका स्थान पोर्शियुस फेस्तुस ने लिया था। फेस्तुस ने अपने पद को संभालते ही यहूदिया की राजधानी यरूशलेम का दौरा किया। वहाँ यहूदियों के प्रधान याजकों और प्रमुख लोगों ने उसके सामने पौलुस के विरुद्ध अनेक आरोप लगाए और उन्होंने उससे विनती की कि वह पौलुस को यरूशलेम ले आए, क्योंकि वे उसके मार्ग में घात लगाकर उसे मार डालना चाहते थे।
किंतु फेस्तुस ने उत्तर दिया, “पौलुस को कैसरिया में ही रखा जाएगा, और मैं स्वयं शीघ्र ही वहाँ जा रहा हूँ। यदि तुम्हारे पास उसके विरुद्ध कोई सच्चा आरोप है, तो तुम में से कुछ प्रमुख लोग मेरे साथ चलें और उस पर दोष लगाएँ।”
फेस्तुस ने उनके बीच आठ या दस दिन बिताए और फिर कैसरिया लौट आया। अगले ही दिन उसने न्याय की कुर्सी पर बैठकर पौलुस को लाने का आदेश दिया। जब पौलुस अदालत में लाया गया, तो यरूशलेम से आए यहूदी उसके चारों ओर खड़े हो गए और उस पर गंभीर आरोप लगाए, जिन्हें वे सिद्ध नहीं कर सके।
पौलुस ने अपना बचाव करते हुए कहा, “मैंने न तो यहूदियों के विरुद्ध कोई अपराध किया है, न ही मन्दिर के विरुद्ध, और न ही कैसर के विरुद्ध।”
फेस्तुस, जो यहूदियों को प्रसन्न करना चाहता था, ने पौलुस से पूछा, “क्या तू यरूशलेम जाना चाहता है, ताकि वहाँ इन आरोपों पर मेरे सामने तेरा न्याय किया जाए?”
पौलुस ने उत्तर दिया, “मैं कैसर के न्यायालय के सामने खड़ा हूँ, और यहीं मेरा न्याय होना चाहिए। मैंने यहूदियों का कोई अहित नहीं किया, जैसा कि आप स्वयं अच्छी तरह जानते हैं। यदि मैंने कोई अपराध किया हो या किसी मृत्यु के योग्य काम किया हो, तो मैं मरने से इनकार नहीं करता। किंतु यदि इनके आरोप झूठे हैं, तो कोई भी उन्हें मेरी मृत्यु के लिए सौंप नहीं सकता। मैं कैसर के पास अपील करता हूँ!”
फेस्तुस ने अपने सलाहकारों के साथ विचार-विमर्श किया और फिर कहा, “तूने कैसर के पास अपील की है, तो तू कैसर के पास जाएगा।”
कुछ दिनों बाद, राजा अग्रिप्पा और उसकी बहन बेरिनीके कैसरिया आए और फेस्तुस का अभिवादन किया। वे वहाँ कई दिनों तक ठहरे। फेस्तुस ने उन्हें पौलुस के मामले के बारे में बताया, “फेलिक्स ने एक बंदी को यहाँ छोड़ दिया था। जब मैं यरूशलेम गया, तो यहूदियों के प्रधान याजकों और पुरनियों ने उसके विरुद्ध न्याय की माँग की और उसकी सजा माँगी। मैंने उन्हें बताया कि रोमियों की रीति के अनुसार किसी व्यक्ति को उसके विरोधियों के हाथ में तब तक नहीं सौंपा जाता, जब तक कि उस पर आरोप लगाने वाले उसके सामने खड़े होकर उसे दोषी न ठहराएँ। इसलिए जब वे यहाँ इकट्ठे हुए, तो मैंने बिना देर किए अगले ही दिन न्याय की कुर्सी पर बैठकर उस व्यक्ति को लाने का आदेश दिया। परंतु जब उसके विरोधी खड़े हुए, तो उन्होंने उस पर ऐसे आरोप नहीं लगाए, जिनकी मैंने कल्पना की थी। उनके झगड़े उसके अपने धर्म और एक यीशु नामक मृतक के विषय में थे, जिसके बारे में पौलुस कहता है कि वह जीवित है। मैं इन धार्मिक विवादों में उलझना नहीं चाहता था, इसलिए मैंने उससे पूछा कि क्या वह यरूशलेम जाकर वहाँ इन मामलों पर न्याय चाहता है। किंतु पौलुस ने अपील की कि उसे कैसर के न्याय के लिए रखा जाए। इसलिए मैंने आदेश दिया कि जब तक मैं उसे कैसर के पास न भेज दूँ, तब तक उसे हिरासत में रखा जाए।”
राजा अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, “मैं भी इस व्यक्ति की बात सुनना चाहता हूँ।”
फेस्तुस ने कहा, “कल तुम उसे सुनोगे।”
अगले दिन, अग्रिप्पा और बेरिनीके बड़े ठाठ-बाट के साथ आए और फौजदारी अधिकारियों और नगर के प्रमुख लोगों के साथ सभागार में प्रवेश किया। फेस्तुस के आदेश पर पौलुस को लाया गया। फेस्तुस ने कहा, “हे राजा अग्रिप्पा और सब जो यहाँ उपस्थित हैं, आप इस व्यक्ति को देख रहे हैं। यरूशलेम और यहाँ के सभी यहूदियों ने मुझसे इसके विरुद्ध चिल्लाकर कहा कि यह जीवित नहीं रहना चाहिए। परंतु मैंने पाया कि इसने कोई ऐसा काम नहीं किया, जो मृत्यु के योग्य हो। फिर भी, क्योंकि इसने स्वयं कैसर के पास अपील की है, तो मैंने इसे भेजने का निश्चय किया है। पर मेरे पास इसके विरुद्ध लिखित कोई आरोप नहीं है। इसलिए मैंने इसे आपके सामने लाने का विचार किया, विशेषकर तुम्हारे सामने, हे राजा अग्रिप्पा, ताकि जाँच-पड़ताल के बाद मुझे लिखने को कुछ मिले। क्योंकि मुझे यह बेतुका लगता है कि मैं कैसर के पास एक बंदी भेजूँ और उसके विरुद्ध कोई आरोप न लगाऊँ।”
इस प्रकार, पौलुस को राजा अग्रिप्पा और सभी उपस्थित लोगों के सामने खड़ा किया गया, ताकि उसका मामला सुना जा सके और सत्य की जाँच हो सके।