**2 इतिहास 15 की कहानी: राजा आसा और अजर्याह की भविष्यवाणी**
उस समय यहूदा का राजा आसा था, जो अपने पितामह दाऊद के मार्ग पर चलने का प्रयास करता था। उसने यहूदा से मूर्तिपूजा और उच्च स्थानों को दूर करने का प्रयत्न किया था, परन्तु फिर भी देश में अशांति और संघर्ष था। एक दिन, जब आसा अपने महल में बैठा हुआ था, तो उसके मन में यहोवा की सेवा को और अधिक गंभीरता से लेने की इच्छा जागी। वह जानता था कि यद्यपि उसने कुछ सुधार किए हैं, फिर भी यहूदा के लोगों का हृदय पूरी तरह से परमेश्वर की ओर नहीं लौटा था।
तब परमेश्वर ने एक भविष्यद्वक्ता अजर्याह को आसा के पास भेजा। अजर्याह ओबेद का पुत्र था, और उसके हृदय में यहोवा का आत्मा बोल रहा था। वह राजा के सामने आकर बोला, **”हे राजा आसा, और हे सब यहूदा और बिन्यामीन के लोगो, मेरी सुनो! यहोवा तुम्हारे साथ है जब तक तुम उसके साथ हो। यदि तुम उसे ढूंढोगे, तो वह तुम्हें मिलेगा; परन्तु यदि तुम उसे छोड़ दोगे, तो वह भी तुम्हें छोड़ देगा।”**
आसा ने भविष्यद्वक्ता की बातों को गंभीरता से सुना। अजर्याह ने आगे कहा, **”बीते समय में इस्राएल बिना सच्चे परमेश्वर, बिना शिक्षक के और बिना व्यवस्था के था। परन्तु जब उन्होंने संकट में यहोवा को पुकारा, तो उसने उन्हें उबारा। हे राजा, तुम्हें दृढ़ रहना चाहिए और हाथ ढीले न करने चाहिए, क्योंकि तुम्हारे कामों का प्रतिफल मिलेगा!”**
ये वचन सुनकर आसा का हृदय जाग उठा। उसने निश्चय किया कि वह और भी अधिक उत्साह से यहोवा की आराधना को बढ़ावा देगा। उसने यहूदा और बिन्यामीन के सभी नगरों से मूर्तियों और घृणित वस्तुओं को हटवा दिया। उसने यरूशलेम में यहोवा के मंदिर के वेदी को फिर से स्थापित किया और लोगों को इकट्ठा किया।
फिर पंद्रहवें वर्ष में, आसा ने एक महान उत्सव मनाया। यहूदा और बिन्यामीन के लोग, साथ ही एप्रैम, मनश्शे और शिमोन के कई लोग जो उनके बीच रहते थे, वे सब यरूशलेम में एकत्र हुए। उन्होंने बड़ी संख्या में बलिदान चढ़ाए और यहोवा के सामने शपथ खाई कि वे अपने पूरे मन से परमेश्वर की खोज करेंगे। सारे यहूदा ने आनन्दित होकर यह प्रतिज्ञा की, क्योंकि उन्होंने सच्चे मन से यहोवा को ढूंढ़ा था, और उसने उन्हें चारों ओर से शांति दी।
राजा आसा ने अपनी माता माका को, जिसने अशेरा की घृणित मूर्ति बनवाई थी, रानी के पद से हटा दिया और उसकी मूर्ति को तोड़कर जला डाला। उसने यहोवा की व्यवस्था का पालन करने के लिए दृढ़ संकल्प लिया, और उसके दिनों में यहूदा में शांति रही।
इस प्रकार, जब आसा और यहूदा के लोगों ने परमेश्वर के वचन को माना और उसकी ओर लौटे, तो यहोवा ने उन्हें आशीष दी। उन्होंने अनुभव किया कि सच्ची शांति और सफलता केवल परमेश्वर के साथ चलने में ही है।
**सीख:**
इस कहानी से हम सीखते हैं कि परमेश्वर हमेशा उनके साथ रहता है जो उसके साथ रहते हैं। यदि हम उसे ढूंढ़ेंगे, तो वह हमें मिलेगा, और हमारे जीवन में उसकी शांति और आशीष बनी रहेगी।