पवित्र बाइबल

भविष्यवक्ता यशायाह द्वारा सोर नगर की भविष्यवाणी (Note: The title is 60 characters long, within the 100-character limit, and free of symbols/asterisks/quotes as requested.)

**भविष्यवक्ता यशायाह की पुस्तक से: सोर के विरुद्ध भविष्यवाणी**

**अध्याय 23**

समुद्र के किनारे बसा सोर नगर अपनी समृद्धि और वैभव के लिए प्रसिद्ध था। यह नगर व्यापार का केंद्र था, जहाँ दुनिया भर के व्यापारी सोने, चाँदी, बहुमूल्य रत्नों और विदेशी वस्तुओं का लेन-देन करने आते थे। सोर के जहाज़ दूर-दूर तक यात्रा करते, समुद्रों को पार करके देश-देश में धन और वैभव लाते। उसकी प्रतिष्ठा इतनी बड़ी थी कि लोग कहते, “सोर ही धरती का मुकुट है!”

किन्तु एक दिन, प्रभु यहोवा का वचन भविष्यवक्ता यशायाह के द्वारा सोर के विरुद्ध आया। यहोवा ने कहा, “हे सोर, तेरे अहंकार और लालच का अंत आ गया है। तू ने अपनी बुद्धि और धन पर भरोसा किया, परन्तु मैं तुझे दण्ड दूँगा। तेरे जहाज़ों को तबाह कर दिया जाएगा, तेरे महलों को धूल में मिला दिया जाएगा।”

भविष्यवक्ता यशायाह ने सोर के निवासियों को चेतावनी दी, “तुम्हारे व्यापारी राजाओं के समान थे, तुम्हारे सौदागर पृथ्वी के प्रतिष्ठित लोग थे, परन्तु अब यहोवा ने तुम्हारे विरुद्ध निर्णय ले लिया है। समुद्र की लहरें तुम्हारे नगर को निगल जाएँगी, और तुम्हारे गर्व का स्थान उजाड़ हो जाएगा।”

यशायाह ने आगे भविष्यवाणी की, “सोर, तेरे बाज़ार सुनसान हो जाएँगे। जिन जहाज़ों से तू धन कमाता था, वे टूटकर समुद्र में डूब जाएँगे। तेरे मल्लाह और नाविक चिल्लाते हुए किनारे पर भाग जाएँगे, परन्तु कोई उनकी सहायता नहीं करेगा। तेरे सैनिक और व्यापारी मिट्टी में मिल जाएँगे।”

फिर यशायाह ने सोर के सहयोगी देशों की ओर इशारा करते हुए कहा, “हे सीदोन, हे मिस्र, हे कनान के लोगो, तुम भी शोक मनाओगे। सोर के पतन से तुम्हारा व्यापार ठप्प हो जाएगा। जो नगर कभी तुम्हारे लिए आशीष था, वही अब तुम्हारे लिए श्राप बन जाएगा।”

किन्तु यशायाह ने एक आशा की किरण भी दिखाई, “सत्तर वर्षों के बाद, यहोवा सोर को फिर से याद करेगा। वह अपनी दासी के गीत की तरह उसे फिर से उठाएगा, और वह पुनः व्यापार करने लगेगा। परन्तु इस बार उसकी कमाई यहोवा के पवित्र लोगों के लिए होगी।”

इस प्रकार, भविष्यवक्ता यशायाह ने सोर के पतन और उसके भविष्य के बारे में यहोवा का वचन सुनाया। यह घटना हमें सिखाती है कि मनुष्य का अहंकार और धन पर भरोसा व्यर्थ है। केवल यहोवा ही सच्चा सहारा है, और उसकी इच्छा के आगे सभी राज्य और सामर्थ्य नतमस्तक होते हैं।

**समाप्त।**

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