दान की महिमा: कुरिन्थियों की उदारता की कहानी (Note: The title is within 100 characters, symbols and quotes are removed as requested.)
**दान की महिमा: 2 कुरिन्थियों 8 की कहानी**
एक समय की बात है, जब प्रेरित पौलुस मसीह के प्रेम से भरकर विभिन्न कलीसियाओं को पत्र लिख रहा था। उसने कुरिन्थुस की कलीसिया को एक ऐसा पत्र लिखा, जिसमें उसने उदारता और दान के विषय में गहरी शिक्षा दी। पौलुस ने मकिदुनिया की कलीसियाओं के उदाहरण से प्रारंभ किया।
मकिदुनिया के विश्वासी बहुत ही गरीब थे। उन पर अनेक कठिनाइयों और सताव का समय आया था, फिर भी उनके हृदय में मसीह का प्रेम इतना अधिक था कि वे अपनी सीमित सामर्थ्य से भी बढ़कर देने के लिए तैयार हो गए। पौलुस ने लिखा, *”उन्होंने अपने आप को पहले प्रभु को और फिर हमें परमेश्वर की इच्छा के अनुसार सौंप दिया।”* (2 कुरिन्थियों 8:5) यहाँ तक कि उन्होंने बड़े उत्साह से दान देने की याचना की, जो कि पौलुस की आशा से भी बढ़कर था।
पौलुस ने तीतुस को कुरिन्थुस भेजा, ताकि वह उनकी उदारता को पूरा करने में सहायता करे। उसने कुरिन्थियों से कहा, *”जैसे तुम विश्वास, वचन, ज्ञान और सब प्रकार के усер्धान में, और जैसे हमारे प्रति तुम्हारा प्रेम है, वैसे ही इस दान के कार्य में भी बढ़ते जाओ।”* (2 कुरिन्थियों 8:7)
फिर पौलुस ने प्रभु यीशु मसीह का उदाहरण दिया। उसने लिखा, *”तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह के अनुग्रह को जानते हो, कि वह धनी होकर भी तुम्हारे लिए निर्धन हो गया, ताकि उसकी निर्धनता के द्वारा तुम धनी बनो।”* (2 कुरिन्थियों 8:9) यीशु ने स्वर्ग का वैभव छोड़कर धरती पर दरिद्रता सही, ताकि हम आत्मिक धन पा सकें। इसी प्रकार, विश्वासियों को भी अपने भाइयों-बहनों की आवश्यकता पूरी करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
पौलुस ने समझाया कि दान देने का उद्देश्य केवल धन का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि हृदयों की एकता है। जब एक कलीसिया दूसरी की सहायता करती है, तो परमेश्वर की महिमा होती है। उसने कहा, *”अब तुम्हारी बहुतायत से उनकी घटी पूरी हो, ताकि बाद में उनकी बहुतायत से तुम्हारी घटी पूरी हो। इस प्रकार समता होगी।”* (2 कुरिन्थियों 8:14)
अंत में, पौलुस ने तीतुस और दूसरे भाइयों की प्रशंसा की, जो इस पवित्र कार्य में लगे हुए थे। उसने कुरिन्थियों को याद दिलाया कि वे न केवल परमेश्वर की दृष्टि में, बल्कि मनुष्यों की नज़र में भी उचित रीति से चलें, ताकि कोई उनके दान के विषय में कलंक न लगा सके।
इस प्रकार, पौलुस का यह पत्र कुरिन्थुस की कलीसिया के लिए एक प्रेरणा बना। उन्होंने समझा कि देना केवल एक कर्तव्य नहीं, बल्कि मसीह के प्रेम का प्रमाण है। और जब वे उदारता से देते हैं, तो परमेश्वर उनके हृदय को और भी अधिक आशीष से भर देता है।
**समाप्त।**