**वाचा का पालन और न्याय की आज्ञा**
मिस्र की दासता से मुक्त होकर इस्राएली जंगल में यात्रा कर रहे थे। परमेश्वर ने मूसा को सीनै पर्वत पर बुलाया और उन्हें अनेक आज्ञाएँ दीं, जिनमें से एक थी न्याय और सच्चाई की आज्ञा। परमेश्वर ने मूसा से कहा, **”तू झूठी अफवाह न फैलाना, और दुष्टों के साथ मिलकर अन्याय का साक्षी न बनना। बहुतों के साथ मिलकर कुकर्म करने को तैयार न होना, और न ही झगड़े में बहुतों के पक्ष में होकर न्याय को मोड़ना।”**
मूसा ने इस्राएलियों को ये वचन सुनाए, और लोगों ने ध्यान से सुना। परमेश्वर ने आगे कहा, **”यदि तू किसी दरिद्र या शक्तिहीन व्यक्ति का मुकदमा देखे, तो उसके विरोध में न झुकना। यदि तू किसी के बैल या गधे को भटकते हुए देखे, तो उसे उसके मालिक के पास लौटा देना। यदि वह तेरा शत्रु हो, तो भी तू उसकी सहायता करेगा। यदि तू किसी दुःखी का बोझ देखे, तो उसे उठाने में सहायता करना।”**
लोगों ने ये बातें सुनीं और समझा कि परमेश्वर उनसे न्याय और दया की अपेक्षा रखता है। फिर परमेश्वर ने मूसा से कहा, **”तू न्याय में कपट न करना, और न ही निर्दोष या धर्मी को दण्ड देना, क्योंकि मैं दुष्ट को निर्दोष न ठहराऊँगा। तू घूस न लेना, क्योंकि घूस बुद्धिमानों की आँखों को अंधा कर देती है और धर्मियों के वचनों को बिगाड़ देती है।”**
मूसा ने लोगों को समझाया कि परमेश्वर की दृष्टि में सच्चाई और निष्ठा महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, **”तुम परदेशियों पर अत्याचार मत करना, क्योंकि तुम स्वयं मिस्र में परदेशी रहे हो। तुम जानते हो कि परदेशी का मन कैसा होता है।”**
फिर परमेश्वर ने विश्राम और उत्सवों के विषय में आज्ञा दी: **”छः दिन तो तू अपना काम करना, परन्तु सातवें दिन विश्राम करना, ताकि तेरे बैल और गधे आराम कर सकें, और तेरे दासों और परदेशियों को भी सुख मिले।”**
परमेश्वर ने तीन प्रमुख पर्वों का भी उल्लेख किया: **”अपनी भूमि की पहली उपज का पर्व मनाना, फसल काटने का पर्व, और फिर वर्ष के अंत में फसल इकट्ठा करने का पर्व। इन तीनों अवसरों पर सभी पुरुषों को मेरे सामने उपस्थित होना चाहिए।”**
अंत में, परमेश्वर ने एक महत्वपूर्ण वचन दिया: **”तू दूसरे देवताओं की पूजा न करना, न ही उनके नामों की चर्चा करना। तू उन्हें अपने मुँह से भी न लाना।”**
मूसा ने इन सभी आज्ञाओं को लिखा और इस्राएल के लोगों को सिखाया। लोगों ने प्रतिज्ञा की कि वे इन आज्ञाओं का पालन करेंगे और परमेश्वर के मार्ग पर चलेंगे। परमेश्वर ने उनसे वादा किया कि यदि वे उसकी आज्ञाओं का पालन करेंगे, तो वह उनके शत्रुओं को उनके सामने झुकाएगा और उन्हें उस देश में ले जाएगा जहाँ दूध और मधु की धाराएँ बहती हैं।
इस प्रकार, इस्राएल के लोगों ने परमेश्वर की व्यवस्था को ग्रहण किया और उसके मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।