**रुत की कहानी: विश्वास और प्रेम की मिसाल**
बहुत पहले की बात है, जब इज़राइल के न्यायियों के समय में एक भयंकर अकाल पड़ा। यहूदा के बेतलेहेम नगर में एक व्यक्ति रहता था, जिसका नाम एलीमेलेक था। उसकी पत्नी का नाम नाओोमी था, और उनके दो पुत्र थे—मह्लोन और किल्योन। अकाल के कारण परिवार को अपना घर छोड़कर मोआब देश में जाकर बसना पड़ा।
मोआब में एलीमेलेक की मृत्यु हो गई, और नाओमी अपने दोनों पुत्रों के साथ अकेली रह गई। समय बीतता गया, और नाओमी के पुत्रों ने मोआबी स्त्रियों से विवाह कर लिया। मह्लोन ने रुत से और किल्योन ने ओर्पा से शादी की। दस वर्ष तक वे मोआब में रहे, किंतु दुर्भाग्य से मह्लोन और किल्योन की भी मृत्यु हो गई। अब नाओमी बिना पति और बिना पुत्रों के रह गई।
एक दिन, नाओमी ने सुना कि यहोवा ने उसके देश पर दया की है और वहाँ फिर से अन्न उपज रहा है। उसने अपनी दोनों बहुओं से कहा, “मेरी पुत्रियो, अब मैं अपने देश यहूदा लौट रही हूँ। तुम दोनों अपने-अपने माता के घर वापस जाओ। यहोवा तुम पर कृपा करे, जैसे तुमने मेरे पुत्रों और मेरे साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार किया। मैं तुम्हारे लिए नए पति ढूँढने की आशा रखती हूँ, ताकि तुम्हारा जीवन सुखी हो।”
यह सुनकर रुत और ओर्पा जोर-जोर से रोने लगीं। ओर्पा ने नाओमी को चूमकर विदा किया, किंतु रुत नाओमी से चिपट गई। नाओमी ने उससे कहा, “देख, तेरी भाभी अपने लोगों और अपने देवताओं के पास लौट गई है। तू भी उसके पीछे-पीछे जा।”
किंतु रुत ने दृढ़ता से उत्तर दिया, “माता, मुझे तुझे छोड़ने के लिए मत कह। मैं तेरे साथ चलूँगी। जहाँ तू जाएगी, मैं जाऊँगी; जहाँ तू रहेगी, मैं रहूँगी। तेरा लोग मेरा लोग होगा, और तेरा परमेश्वर मेरा परमेश्वर होगा। जहाँ तू मरेगी, मैं मरूँगी और वहीं मेरी समाधि होगी। यदि मैं तुझे छोड़ दूँ, तो यहोवा मेरा भी त्याग करे!”
नाओमी ने देखा कि रुत का निश्चय अटल है, और वह उसे मनाने का प्रयास छोड़ दिया। इस प्रकार, दोनों स्त्रियाँ यहूदा की ओर चल पड़ीं। जब वे बेतलेहेम पहुँचीं, तो सारा नगर उनके आगमन से हलचल में आ गया। लोग पूछने लगे, “क्या यह नाओमी है?”
नाओमी ने उनसे कहा, “मुझे नाओमी (मीठी) न कहो, बल्कि मारा (कड़वी) कहो, क्योंकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने मुझे बहुत दुःख दिया है। मैं भरी-पूरी निकली थी, किंतु यहोवा मुझे खाली हाथ लौटा रहा है।”
फिर भी, नाओमी के साथ रुत की निष्ठा एक आशा की किरण बनकर उभरी। रुत ने न केवल नाओमी के देवता यहोवा को अपनाया, बल्कि उसके प्रति अपना प्रेम और सेवाभाव भी अडिग रखा। इस प्रकार, रुत की कहानी विश्वास, प्रेम और निष्ठा की एक अमर मिसाल बन गई।
**अंत**