# **राजा उज्जिय्याह की कहानी: गर्व और दंड**
## **उज्जिय्याह का राज्याभिषेक और प्रारंभिक वर्ष**
यहूदा के इतिहास में एक ऐसा समय आया जब राजा अमत्स्याह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र उज्जिय्याह सिंहासन पर बैठा। उज्जिय्याह केवल सोलह वर्ष का था जब उसे यहूदा का राजा बनाया गया। यरूशलेम के महानगर में उसका राज्याभिषेक हुआ, और लोगों ने आशा भरी नज़रों से इस युवा राजा की ओर देखा।
उज्जिय्याह ने अपने शासनकाल की शुरुआत परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करते हुए की। वह अपने पिता अमत्स्याह के विपरीत, एक धर्मनिष्ठ और परमेश्वर के प्रति समर्पित राजा बन गया। उसने जकर्याह नामक एक विवेकशील और परमेश्वर के वचनों को जानने वाले व्यक्ति की शिक्षा ग्रहण की। जब तक उज्जिय्याह परमेश्वर की खोज में लगा रहा, परमेश्वर ने उसे समृद्धि दी।
## **युद्ध और समृद्धि**
परमेश्वर की कृपा से उज्जिय्याह एक शक्तिशाली योद्धा बना। उसने पलिश्तियों के विरुद्ध युद्ध किया और उनके कई नगरों, जिनमें गत, यबने और अशदोद शामिल थे, को जीत लिया। उसने अम्मोनियों को भी पराजित किया, और उन्हें उसे कर देना पड़ा। उज्जिय्याह की कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई, यहाँ तक कि मिस्र के लोग भी उसके पराक्रम से परिचित हो गए।
उज्जिय्याह ने यरूशलेम की सुरक्षा के लिए मजबूत बुर्ज बनवाए और सैनिकों को आधुनिक हथियारों से सुसज्जित किया। उसने मरुस्थलीय क्षेत्रों में जलाशय खुदवाए ताकि उसकी सेना और पशुधन के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध रहे। उसने कृषि को बढ़ावा दिया और देश में समृद्धि लाई। उसका नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गया, क्योंकि परमेश्वर ने उसकी सहायता की थी।
## **गर्व का उदय और मंदिर में अतिक्रमण**
किंतु, जैसे-जैसे उज्जिय्याह की शक्ति बढ़ी, वैसे-वैसे उसका हृदय अहंकार से भरने लगा। उसने सोचा कि उसकी सफलताएँ उसके अपने बल और बुद्धि के कारण हैं, न कि परमेश्वर की कृपा के कारण। यही वह समय था जब उसने एक भयंकर गलती की।
एक दिन, उज्जिय्याह ने यहोवा के मंदिर में प्रवेश किया और धूप जलाने का निर्णय लिया। यह कार्य केवल याजकों, हारून के वंशजों के लिए ही था, परंतु उज्जिय्याह ने स्वयं को इस पवित्र कार्य के योग्य समझा। जब उसने धूप की वेदी के पास जाकर धूप जलानी चाही, तो अजर्याह नामक महायाजक और उसके साठ बहादुर याजकों ने उसका सामना किया।
अजर्याह ने उज्जिय्याह से कहा, **”हे राजा उज्जिय्याह, यहोवा के लिए धूप जलाना तेरे लिए नहीं है, बल्कि याजकों के लिए है, जो हारून के वंश से हैं और पवित्र किए गए हैं। इस पवित्र स्थान से बाहर निकल जा, क्योंकि तूने यहोवा की अवज्ञा की है, और इससे तेरी कोई महिमा नहीं होगी!”**
## **कोढ़ का दंड**
उज्जिय्याह याजकों के इन वचनों से क्रोधित हो गया। उसके हाथ में धूपदान था, और वह याजकों को डाँटने लगा। किंतु, जब वह क्रोध में भरकर याजकों से बहस कर रहा था, तभी यहोवा ने उसे दंड दिया।
अचानक, उज्जिय्याह के माथे पर कोढ़ के चिह्न प्रकट हो गए! याजकों ने देखा कि राजा का मुख कोढ़ से भर गया है। वे भयभीत होकर उसे वहाँ से हटाने लगे, क्योंकि अब वह अशुद्ध था। उज्जिय्याह स्वयं भी डर गया और जल्दी से मंदिर से बाहर निकल आया, क्योंकि यहोवा ने उसे मारा था।
## **अंतिम दिन और मृत्यु**
उस दिन के बाद से उज्जिय्याह जीवन भर कोढ़ी रहा। उसे राजमहल में अलग रहना पड़ा, और उसका पुत्र योताम राजकाज देखने लगा। उज्जिय्याह अब लोगों के सामने नहीं आ सकता था, क्योंकि वह अशुद्ध था। जब उसकी मृत्यु हुई, तो लोगों ने उसे कोढ़ियों के कब्रिस्तान में दफनाया, राजाओं की कब्रगाह में नहीं।
इस प्रकार, उज्जिय्याह का जीवन एक चेतावनी बन गया। उसने प्रारंभ में परमेश्वर की खोज की और आशीष पाई, किंतु गर्व ने उसके हृदय को भ्रष्ट कर दिया, और उसे दंड मिला। उसकी कहानी हमें सिखाती है कि **”गर्व पतन से पहले होता है, और अहंकार ठोकर से पहले”** (नीतिवचन 16:18)।
परमेश्वर हमें विनम्रता और आज्ञाकारिता के मार्ग पर चलने की सामर्थ्य दे!