**हबक्कूक 2 की कहानी: प्रतीक्षा और विश्वास**
एक समय की बात है, यहूदा के देश में एक भविष्यद्वक्ता हबक्कूक रहता था। वह परमेश्वर के सामने खड़ा होकर उसकी प्रार्थना करता और उसके वचनों को सुनता था। उन दिनों यहूदा में अधर्म और अन्याय बढ़ गया था। लोगों के हृदय कठोर हो गए थे, और वे परमेश्वर की आज्ञाओं को भूल चुके थे। हबक्कूक का हृदय दुखी था क्योंकि वह देख रहा था कि दुष्ट लोग निर्दोषों को सताते हैं, और परमेश्वर कुछ करता हुआ प्रतीत नहीं होता।
एक दिन, हबक्कूक ने परमेश्वर से पूछा, **”हे प्रभु, मैं तेरी दोहाई देता हूँ, पर तू सुनता क्यों नहीं? मैं तुझे ‘अत्याचार’ पुकारता हूँ, पर तू बचाता क्यों नहीं? तू मुझे अन्याय और हिंसा क्यों दिखाता है? तेरे सामने विवाद और झगड़े बढ़ गए हैं। इसलिए व्यवस्था ढीली पड़ गई है, और न्याय कभी स्थिर नहीं होता; क्योंकि दुष्ट धर्मी को घेर लेता है, इसलिए न्याय टेढ़ा हो जाता है।”**
हबक्कूक की प्रार्थना सुनकर, परमेश्वर ने उससे उत्तर दिया। उसने कहा, **”तू दृष्टि के लिए देखता जा, और उसके लिखे जाने पर स्पष्ट लिख दे, जिससे दौड़ने वाला उसे पढ़ सके। क्योंकि यह दृष्टि ठहराए हुए समय के लिये है, और अन्त में वह बात निश्चय पूरी होगी, वह झूठी न होगी; यदि वह देर से आए, तो भी उसकी बाट जोहते रहना, क्योंकि वह निश्चय आएगी, और देर न करेगी। देख, जिसका मन टेढ़ा है, वह स्थिर न रहेगा; परन्तु धर्मी अपने विश्वास से जीवित रहेगा।”**
परमेश्वर के वचन ने हबक्कूक को आश्वस्त किया, लेकिन फिर भी उसके मन में प्रश्न थे। परमेश्वर ने उसे समझाया कि दुष्टों का अंत निकट है। उसने कहा, **”धन एकत्र करने वाला और लालची व्यक्ति कभी संतुष्ट नहीं होगा। वह अपने लालच में औरों को निगल जाता है, परन्तु अंत में वह स्वयं ही नष्ट हो जाएगा। जो लोग मदिरा पीकर अपने पड़ोसियों को लज्जित करते हैं, उन पर विपत्ति आएगी। वे जो मूर्तियों की पूजा करते हैं और कहते हैं, ‘चुप रह, जाग उठ!’ उनके बनाए हुए देवता कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि वे मूक और निर्जीव हैं। परन्तु यहोवा अपने पवित्र मन्दिर में विराजमान है; सारी पृथ्वी उसके सामने मौन रहे।”**
हबक्कूक ने परमेश्वर के वचन को गहराई से सुना और समझा। उसने जान लिया कि परमेश्वर का न्याय निश्चित है, भले ही वह तुरंत न दिखाई दे। उसने अपने हृदय में निश्चय किया कि वह धैर्य से प्रतीक्षा करेगा और विश्वास में जीवित रहेगा। उसने परमेश्वर की स्तुति करते हुए कहा, **”यदि अंजीर के वृक्षों में फल न लगें, यदि दाखलताओं में अंगूर न हों, यदि जैतून की फसल न हो, यदि खेतों में अन्न न उगे, यदि भेड़-बकरियाँ न रहें, यदि गाय-बैल न हों, तौभी मैं यहोवा में आनन्दित रहूँगा, मैं अपने उद्धारकर्ता परमेश्वर में मगन रहूँगा।”**
इस प्रकार, हबक्कूक ने सीखा कि परमेश्वर का समय सर्वोत्तम है, और उसके न्याय में कोई देर नहीं होती। वह जान गया कि धर्मी व्यक्ति का जीवन विश्वास पर टिका होता है, और परमेश्वर कभी भी अपने वादों को पूरा करने में असफल नहीं होता।
**अंत।**