**यिर्मयाह 32: एक विश्वास की परीक्षा**
प्राचीन यहूदा के दिनों में, यरूशलेम नगर घोर संकट में था। बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर की सेना ने नगर को घेर लिया था, और भुखमरी तथा युद्ध के भय से लोग त्रस्त थे। उस समय, यिर्मयाह नबी परमेश्वर का वचन सुनाने के कारण राजा सिदकिय्याह के कोप का पात्र बना हुआ था। उसे राजा ने कैद कर दिया था, क्योंकि वह सच्चाई बोलता था—यहूदा का पतन निश्चित था, और परमेश्वर का न्याय आने वाला था।
### **यिर्मयाह की कैद और परमेश्वर का आदेश**
यिर्मयाह यहूदा के राजभवन के प्रांगण में बंदी बना हुआ था। एक दिन, जब वह प्रार्थना कर रहा था, तब यहोवा का वचन उसके पास पहुँचा:
“तेरे चचेरे भाई हनमेल, शल्लूम का पुत्र, तेरे पास आकर कहेगा कि अनातोत में हमारी भूमि को मोल ले, क्योंकि तू ही उसे छुड़ाने का अधिकारी है।”
यिर्मयाह को आश्चर्य हुआ। अनातोत उसका गाँव था, जहाँ उसके पूर्वजों की भूमि थी। परंतु अब तो बाबुल की सेना ने सब कुछ घेर रखा था! जब हनमेल आया और उसने वैसा ही कहा, तब यिर्मयाह समझ गया कि यह परमेश्वर की इच्छा है।
### **भूमि की खरीद: एक असंभव आज्ञा**
यिर्मयाह ने हनमेल से उस भूमि को खरीदने का निश्चय किया। उसने चाँदी तौलकर सत्रह शेकेल देकर बिक्री-पत्र लिखवाया। फिर उसने साक्षियों के सामने उस पत्र पर मुहर लगवाई और उसकी एक प्रति खुली रखी, जैसा कि उन दिनों का नियम था। इसके बाद, उसने पत्र को मिट्टी के एक बर्तन में रख दिया, ताकि वह बहुत दिनों तक सुरक्षित रहे।
यह सब करते हुए, यिर्मयाह ने परमेश्वर से प्रार्थना की:
“हे प्रभु यहोवा! तूने अपनी महान शक्ति से इस्राएल को मिस्र से निकाला और उन्हें यह देश दिया। परंतु अब, उन्होंने तेरी आज्ञाओं को नहीं माना, इसलिए इस नगर पर विपत्ति आई है। फिर भी, हे प्रभु, तूने मुझसे यह भूमि खरीदने को कहा है, जबकि बाबुली सेना हमें घेरे हुए है!”
### **परमेश्वर का उत्तर: आशा की प्रतिज्ञा**
तब यहोवा ने यिर्मयाह से कहा:
“मैं सब प्राणियों का परमेश्वर हूँ। क्या मेरे लिए कोई काम असंभव है? सुन, यह नगर बाबुल के राजा के हाथ में दे दिया जाएगा, और मेरी प्रजा बंधुआई में जाएगी। परंतु मैं उन्हें फिर इकट्ठा करूँगा और इस देश में लौटाकर उन्हें शांति से बसाऊँगा। लोग फिर से घर, खेत, और दाख की बारियाँ खरीदेंगे।”
यिर्मयाह ने विश्वास से परमेश्वर की इस प्रतिज्ञा को सुना। जब सब कुछ नष्ट होता दिख रहा था, तब भी परमेश्वर ने उसके हृदय में आशा का दीपक जलाया। उस भूमि की खरीद एक चिह्न थी—एक दिन, परमेश्वर अपनी प्रजा को पुनः इस देश में लाएगा।
### **विश्वास की विजय**
यिर्मयाह ने बारूक, अपने सहायक, को बुलाकर कहा, “इन पत्रों को सुरक्षित रखना, क्योंकि परमेश्वर ने कहा है कि एक दिन इस देश में फिर घर और खेतों का क्रय-विक्रय होगा।”
इस प्रकार, यिर्मयाह ने अपने विश्वास को कार्य में दिखाया। जब सब कुछ अंधकारमय लग रहा था, तब उसने परमेश्वर के वचन पर भरोसा किया। उसकी यह कहानी हमें सिखाती है कि परमेश्वर की प्रतिज्ञाएँ कभी विफल नहीं होतीं, चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों।
**अंत।**