**मत्ती 8: यीशु की सामर्थ्य और करुणा**
गलील की झील के किनारे पर्वत से उतरकर यीशु के पीछे एक बड़ी भीड़ चली आ रही थी। सूरज की किरणें पानी पर चमक रही थीं, और मछुआरे अपनी नावों में लौट रहे थे। तभी एक कोढ़ी, जिसका चेहरा और हाथ रोग से जर्जर हो चुके थे, भीड़ को चीरता हुआ आगे आया। उसकी आँखों में आशा और डोनों का मिश्रण था। उसने यीशु के सामने घुटने टेके और गिड़गिड़ाते हुए कहा, “हे प्रभु, यदि तू चाहे, तो मुझे शुद्ध कर सकता है।”
यीशु ने उसकी ओर देखा। उनकी आँखों में करुणा उमड़ पड़ी। उन्होंने अपना हाथ बढ़ाया और धीरे से उसके क्षत-विक्षत कंधे को छुआ। भीड़ में से कुछ लोगों ने सिसकियाँ भर लीं—कोढ़ी को छूना नियम के विरुद्ध था! परन्तु यीशु ने दृढ़ता से कहा, “मैं चाहता हूँ, शुद्ध हो जा।”
उसी क्षण, कोढ़ी के चेहरे का मांस नया हो गया। उसकी त्वचा एक नन्हे बच्चे की तरह कोमल और स्वच्छ हो उठी। वह आश्चर्य से अपने हाथों को देखने लगा, फिर यीशु के चरणों में गिर पड़ा। परन्तु यीशु ने उसे सावधान किया, “देख, किसी से कुछ न कहना, परन्तु जाकर याजक को दिखा और मूसा की आज्ञा के अनुसार भेंट चढ़ा, ताकि लोगों के लिए गवाही हो।”
जब यीशु कफरनहूम में पहुँचे, तो एक सूबेदार उनके पास आया। वह एक रोमी था, परन्तु उसने यहूदियों के लिए एक आराधनालय बनवाया था। उसका प्रिय सेवक लकवे से पीड़ित था और अत्यंत पीड़ा में था। यहूदी बुजुर्गों ने यीशु से विनती की, “वह इस योग्य है कि तू उसके लिए यह कृपा करे।”
यीशु उनके साथ चल पड़े। परन्तु जब वे सूबेदार के घर के निकट पहुँचे, तो उसने अपने मित्रों को भेजकर कहलवाया, “हे प्रभु, मैं योग्य नहीं कि तू मेरी छत के नीचे आए, केवल एक बात कह दे, और मेरा सेवक अच्छा हो जाएगा। मैं भी अधिकार के अधीन हूँ, और सैनिकों के अधीन हूँ। मैं एक से कहता हूँ ‘जा,’ तो वह जाता है, और दूसरे से ‘आ,’ तो वह आता है।”
यीशु ने इस विश्वास पर चकित होकर भीड़ की ओर मुड़कर कहा, “मैं तुमसे कहता हूँ, मैंने इतना बड़ा विश्वास इस्राएल में भी नहीं पाया!” फिर उन्होंने सूबेदार के मित्रों से कहा, “जाओ, जैसा तुमने विश्वास किया है, वैसा ही तुम्हारे लिए हो।” और उसी घड़ी सेवक चंगा हो गया।
शाम होते ही लोग अनेक रोगियों को यीशु के पास लाए। उनमें से कई दुष्टात्माओं से ग्रस्त थे। यीशु ने केवल एक वचन से उन्हें स्वस्थ किया, जिससे यशायाह भविष्यद्वक्ता की यह वाणी पूरी हुई: “उसने हमारी निर्बलताएँ अपने ऊपर ले लीं और हमारे रोगों को सह लिया।”
अगले दिन, जब यीशु नाव पर चढ़ने लगे, तो एक शिष्य ने कहा, “गुरु, मैं तेरे पीछे चलूँगा, पर पहले मुझे अपने पिता को दफ़नाने दो।” यीशु ने उत्तर दिया, “मुर्दों को अपने मुर्दों को दफ़नाने दो, तू मेरे पीछे चल।”
तभी एक भयंकर आँधी उठी। नाव लहरों में डगमगाने लगी, और शिष्य भयभीत हो गए। परन्तु यीशु नाव के पिछले भाग में सो रहे थे। वे दौड़कर उनके पास गए और चिल्लाए, “हे प्रभु, हमें बचा, हम नाश होते हैं!”
यीशु ने उठकर आँधी को डाँटा, “चुप हो जा, शान्त हो जा!” और वहीँ समुद्र शान्त हो गया। शिष्य अचम्भे में पड़ गए और कहने लगे, “यह कौन है कि हवाएँ और समुद्र भी इसकी आज्ञा मानते हैं?”
इस प्रकार, मत्ती अठवें अध्याय में यीशु की सामर्थ्य और करुणा प्रकट होती है—वह रोगों को चंगा करता है, विश्वास को महत्व देता है, और प्रकृति पर भी अधिकार रखता है। वह सचमुच परमेश्वर का पुत्र है!