पवित्र बाइबल

परमेश्वर की वाचा: आशीष और चेतावनी (लैव्यव्यवस्था 26)

**कहानी: परमेश्वर की वाचा और उसकी चेतावनी (लैव्यव्यवस्था 26)**

एक समय की बात है, जब इस्राएल के लोग सीनै के जंगल में खड़े थे और परमेश्वर ने मूसा के द्वारा उनसे बातें कीं। वह स्थान पवित्र था, जहाँ धरती और आकाश मिलते प्रतीत होते थे। परमेश्वर की उपस्थिति बादलों और आग के बीच प्रकट हुई, और उसकी आवाज़ गर्जनाओं के समान गूँजी। उसने अपने लोगों से कहा:

**”हे मेरे लोगो, यदि तुम मेरी आज्ञाओं का पालन करोगे और मेरे नियमों को मानोगे, तो मैं तुम्हें आशीषों से भर दूँगा।”**

परमेश्वर ने विस्तार से बताया कि उनकी आज्ञाकारिता का फल क्या होगा:

**”मैं तुम्हें समय पर वर्षा दूँगा, जिससे तुम्हारी भूमि अन्न और फलों से लद जाएगी। तुम्हारे खेत गेहूँ, जौ, अंगूर और जैतून से भर जाएँगे। तुम्हारे पेड़ इतने फलदार होंगे कि तुम नए फल काटते समय पुराने अभी तक समाप्त नहीं कर पाओगे। तुम्हारी भूमि इतनी उपजाऊ होगी कि तुम्हें भोजन की कभी कमी नहीं होगी।”**

लोगों ने आश्चर्य से सुना कि परमेश्वर उन्हें केवल भौतिक आशीषें ही नहीं, बल्कि शांति और सुरक्षा भी देगा:

**”मैं तुम्हारे देश में शांति बनाए रखूँगा। तुम चैन से सोओगे, और कोई तुम्हें डराएगा नहीं। मैं हिंसक जानवरों को दूर रखूँगा, और तुम्हारी सीमाओं में कोई युद्ध नहीं होगा। तुम्हारे शत्रु तुम्हारे सामने भाग खड़े होंगे, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ।”**

परमेश्वर ने यह भी कहा कि वह उनके बीच निवास करेगा:

**”मैं तुम्हारे मध्य चलता-फिरता रहूँगा। मैं तुम्हारा परमेश्वर बनूँगा, और तुम मेरे लोग बनोगे। मैंने तुम्हें दासत्व से छुड़ाया है, और अब तुम्हें स्वतंत्रता और सम्मान दूँगा।”**

किन्तु परमेश्वर ने उन्हें चेतावनी भी दी:

**”परन्तु यदि तुम मेरी बात नहीं मानोगे और मेरी आज्ञाओं को तुच्छ जानोगे, तो मैं भी तुम्हारे विरुद्ध हो जाऊँगा। तुम्हारी भूमि अन्न नहीं देगी, और आकाश तुम पर वर्षा रोक लेगा। तुम्हारे बोए हुए खेत बेकार हो जाएँगे, और तुम्हारे शत्रु तुम पर शासन करेंगे।”**

उसने विस्तार से समझाया कि अवज्ञा का परिणाम कितना भयानक होगा:

**”यदि तुम फिर भी नहीं सुनोगे, तो मैं तुम्हें सात गुना अधिक दण्ड दूँगा। तुम्हारे पाप तुम्हारी हड्डियों तक को सुखा देंगे। तुम भूख से व्याकुल होकर अपने ही बच्चों का मांस खाओगे। मैं तुम्हारे मूर्ति-स्थानों को ढहा दूँगा, और तुम्हारे शहर खंडहर बन जाएँगे।”**

परमेश्वर की आवाज़ में दुख और गंभीरता थी, क्योंकि वह नहीं चाहता था कि उसके लोग दण्ड पाएँ। फिर भी, उसने उन्हें आशा का सन्देश दिया:

**”किन्तु यदि तुम पश्चाताप करोगे और मेरी ओर लौटोगे, तो मैं तुम्हें क्षमा कर दूँगा। यदि तुम्हारे पूर्वजों के पापों के कारण तुम देश से निकाल दिए गए, किन्तु तुमने अपने हृदय को नम्र किया, तो मैं तुम्हें फिर से अपनी भूमि पर ले आऊँगा। मैं कभी अपनी वाचा को नहीं तोड़ूँगा।”**

इस प्रकार, परमेश्वर ने इस्राएल के सामने दो मार्ग रखे—आशीष और श्राप, जीवन और मृत्यु। उसने उनसे प्रेमपूर्वक कहा:

**”आज तुम्हारे सामने जीवन और मृत्यु, आशीष और अभिशाप रख दिए गए हैं। इसलिए जीवन को चुनो, ताकि तुम और तुम्हारी संतानें जीवित रहो।”**

और इस्राएल के लोगों ने उस दिन गहराई से सोचा कि उन्हें किस मार्ग पर चलना चाहिए।

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