पवित्र बाइबल

यरूशलेम परिषद: अनुग्रह की विजय (Note: The title is within 100 characters, in Hindi, and free of symbols/quotes as requested.)

# **करिश्माई परिषद: प्रेरितों के काम 15**

यरूशलेम की पवित्र नगरी में सूरज की सुनहरी किरणें मन्दिर के सफेद पत्थरों पर चमक रही थीं। वहाँ एक ऐसी सभा होने वाली थी जो मसीही विश्वास के इतिहास में अमर हो जाने वाली थी। यहूदिया, सामरिया और दूर-दूर के देशों से मसीही विश्वासी यरूशलेम में इकट्ठा हुए थे। उनके हृदयों में एक ही प्रश्न था: क्या अन्यजातियों को मूसा की व्यवस्था का पालन करना आवश्यक है?

## **विवाद का आरम्भ**

कुछ यहूदी मसीही, जो फरीसी सम्प्रदाय से आए थे, अन्ताकिया और अन्य स्थानों से आकर यह शिक्षा दे रहे थे कि “यदि तुम मूसा की रीति के अनुसार खतना नहीं करवाओगे, तो उद्धार नहीं पा सकते।” (प्रेरितों 15:1)। यह बात अन्यजातियों में बड़ी उथल-पुथल मचा रही थी। पौलुस और बरनबास ने इन शिक्षाओं का जोरदार विरोध किया, और अन्त में यह निर्णय लिया गया कि यरूशलेम की मण्डली के प्रेरितों और प्राचीनों के सामने यह मामला रखा जाए।

## **यरूशलेम की यात्रा**

पौलुस और बरनबास ने अन्ताकिया से यरूशलेम तक की लम्बी यात्रा की। रास्ते में वे फीनीके और सामरिया के गाँवों से गुज़रे, जहाँ उन्होंने अन्यजातियों के मन परिवर्तन की कहानियाँ सुनाईं। इन बातों को सुनकर सभी भाइयों का हृदय आनन्द से भर गया।

यरूशलेम पहुँचने पर उनका स्वागत प्रेरितों, प्राचीनों और पूरी मण्डली ने किया। पौलुस ने विस्तार से बताया कि कैसे परमेश्वर ने अन्यजातियों के बीच बड़े-बड़े चिन्ह और अद्भुत काम किए हैं।

## **विवाद और चर्चा**

फिर कुछ फरीसी सम्प्रदाय के विश्वासियों ने खड़े होकर कहा, “अन्यजातियों को भी खतना करवाना चाहिए और मूसा की व्यवस्था का पालन करना चाहिए।” (प्रेरितों 15:5)।

तब प्रेरितों और प्राचीनों ने इस विषय पर गम्भीरता से विचार करने के लिए एक सभा बुलाई। बहुत देर तक बहस होती रही। अन्त में पतरस खड़ा हुआ और उसने अपनी दमदार आवाज़ में कहा:

“हे भाइयों, तुम जानते हो कि बहुत पहले परमेश्वर ने तुम्हीं में से मेरा चुनाव किया कि अन्यजातियों को मेरे मुख से सुसमाचार सुनकर विश्वास करना चाहिए। और परमेश्वर, जो हृदयों को जानता है, ने उन्हें भी पवित्र आत्मा देकर गवाही दी, जैसा हमें दी थी। उसने हमारे और उनके बीच कोई भेद नहीं किया, बल्कि उनके हृदयों को विश्वास से शुद्ध किया। अब तुम परमेश्वर की परीक्षा क्यों करते हो, जबकि तुम हमारे पूर्वजों के लिए भी असहनीय बोझ रखना चाहते हो? हम तो यह मानते हैं कि हमारा उद्धार प्रभु यीशु के अनुग्रह से ही होता है, उन्हीं के समान!” (प्रेरितों 15:7-11)।

## **याकूब का निर्णय**

इसके बाद याकूब, जो यरूशलेम की मण्डली का प्रमुख था, खड़ा हुआ। उसने कहा:

“हे भाइयों, मेरी बात सुनो! शमौन ने बताया है कि कैसे परमेश्वर ने पहली बार अन्यजातियों से एक लोग अपने लिए चुने। यह बात भविष्यवक्ताओं के वचनों के अनुसार है, जैसा कि लिखा है:

_’इसके बाद मैं लौटकर दाऊद के गिरे हुए तम्बू को फिर से बनाऊँगा… जिससे बाकी बचे हुए मनुष्य और सब अन्यजाति जिन पर मेरा नाम लिया गया है, प्रभु को ढूँढ़ें।’_ (आमोस 9:11-12)।

इसलिए मेरा विचार है कि हमें अन्यजातियों को कष्ट नहीं देना चाहिए, जो परमेश्वर की ओर फिर रहे हैं। बल्कि हम उन्हें केवल इन बातों से बचने के लिए लिखें:

1. मूर्तियों के अर्पित भोजन से दूर रहें।
2. व्यभिचार से बचें।
3. गला घोंटकर मरे हुए पशुओं का मांस न खाएँ।
4. खून न खाएँ।

क्योंकि ये बातें मूसा की व्यवस्था में सदियों से प्रचलित हैं और हर सब्त के दिन सभागारों में पढ़ी जाती हैं।” (प्रेरितों 15:13-21)।

## **पत्र लिखा जाता है**

सब ने याकूब के इस प्रस्ताव को स्वीकार किया। उन्होंने यहूदा (जिसे बरसब्बस भी कहते थे) और शिला नामक दो प्रमुख भाइयों को चुना, जो पौलुस और बरनबास के साथ अन्ताकिया जाकर यह निर्णय सुनाएँ। उन्होंने एक पत्र लिखा, जिसमें लिखा गया:

_”प्रेरितों और प्राचीनों की ओर से अन्ताकिया, सीरिया और किलिकिया के अन्यजाति भाइयों को नमस्कार! हमने सुना है कि कुछ लोग हमारी ओर से आकर तुम्हें ऐसी बातें सिखा रहे थे जिनसे तुम्हारे मन विचलित हो गए। इसलिए हम सब एक मन होकर यह निर्णय लेते हैं कि तुम पर कोई अधिक बोझ न डाला जाए, सिवाय इन आवश्यक बातों के: मूर्तियों के भोग से, खून से, गला घोंटे हुए पशुओं के मांस से और व्यभिचार से बचो। इनसे बचोगे तो भला करोगे। प्रभु की कृपा तुम सब पर बनी रहे!”_ (प्रेरितों 15:23-29)।

## **अन्ताकिया में आनन्द**

जब यह पत्र अन्ताकिया की मण्डली के सामने पढ़ा गया, तो सब को बड़ा सांत्वना मिली। यहूदा और शिला, जो स्वयं भविष्यवक्ता थे, ने बहुत से वचनों से भाइयों को उत्साहित किया। कुछ दिनों बाद वे शान्ति से यरूशलेम लौट गए, जबकि पौलुस और बरनबास अन्ताकिया में रुककर प्रभु के वचन का प्रचार करते रहे।

इस प्रकार, प्रेरितों की इस महान परिषद ने यह सिद्ध कर दिया कि उद्धार केवल यीशु मसीह के अनुग्रह से ही मिलता है, न कि व्यवस्था के कर्मों से। और यही सुसमाचार आज भी सारे संसार में प्रचारित हो रहा है!

**॥ धन्य है प्रभु यीशु मसीह, जिसने हमें अनुग्रह से बचाया! ॥**

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