**2 तीमुथियुस 4: पौलुस की अंतिम शिक्षा और विरासत**
रोम की उस ठंडी, अंधेरी कोठरी में पौलुस बैठा था। उसकी जंजीरें खनकती थीं, पर उसका हृदय स्वतंत्र था—परमेश्वर के वचन से भरा हुआ। बाहर, रोम की भीड़ शोर मचा रही थी, लेकिन उसके मन में शांति थी। वह जानता था कि उसका समय निकट है। उसने अपने पास रखी हुई चर्म की पुस्तक उठाई और अपने प्रिय शिष्य तीमुथियुस को पत्र लिखने लगा।
**पौलुस का आत्मीय आह्वान**
“हे मेरे प्रिय पुत्र तीमुथियुस,” उसने लिखा, “मैं तुझे परमेश्वर और मसीह यीशु के सामने, जो जीवतों और मुर्दों का न्याय करेगा, उसके प्रगट होने और राज्य के विषय में शपथ देकर कहता हूँ—” उसकी कलम रुकी, उसकी आँखों में गंभीरता छा गई। “वचन का प्रचार कर! समय और असमय तैयार रह। सब प्रकार की सहनशीलता और शिक्षा के साथ उलाहना दो, डाँटो, और समझाओ।”
पौलुस ने गहरी साँस ली। वह जानता था कि समय बदल गया है। लोग सच्ची शिक्षा सुनने के लिए तैयार नहीं, बल्कि अपने कानों को खुजलाने के लिए अपने ही मन के अनुसार शिक्षकों को इकट्ठा करेंगे। वे सत्य से मुख मोड़कर कहानियों की ओर भागेंगे। पर तीमुथियुस को सावधान रहना था।
**एक विश्वासयोग्य सेवक का कर्तव्य**
“पर तू सब बातों में सावधान रह,” पौलुस ने लिखा, “कष्ट उठा, सुसमाचार प्रचारक का काम कर, और अपनी सेवा को पूरा कर।” उसने अपने जीवन के अंतिम दिनों को याद किया—उसकी लड़ाई लड़ी जा चुकी थी, उसकी दौड़ पूरी हो चुकी थी, विश्वास की रक्षा की जा चुकी थी। अब उसके लिए धर्म का मुकुट तैयार था।
पर उसके मन में तीमुथियुस की चिंता थी। वह जानता था कि उसके जाने के बाद, कई लोग उसे छोड़ देंगे। “क्योंकि दमस्कुस का अलेक्सन्द्र तो मुझे बहुत हानि पहुँचाना चाहता है,” उसने लिखा। “प्रभु उसे उसके कामों के अनुसार बदला देगा। तू भी उससे सावधान रहना, क्योंकि वह हमारे उपदेश का बहुत विरोधी रहा है।”
**पौलुस का एकाकीपन और परमेश्वर की सांत्वना**
पौलुस ने अपने चारों ओर देखा। उसके पहले के साथी—डिमास, क्रेस्केस, तीतुस—सब अपने-अपने मार्ग पर चले गए थे। केवल लूका उसके साथ था। “केवल लूका ही मेरे साथ है,” उसने लिखा। उसने तीमुथियुस से अनुरोध किया, “मार्कुस को साथ लेकर शीघ्र आना, क्योंकि सेवा के लिए वह मेरे बहुत काम का है।”
परमेश्वर की उपस्थिति उसे सांत्वना दे रही थी। “पर प्रभु मेरे साथ खड़ा रहा और मुझे सामर्थ्य दी,” उसने लिखा, “ताकि मेरे द्वारा प्रचार पूरा हो जाए और सब जातियाँ सुनें।” वह जानता था कि प्रभु उसे उसकी हर परीक्षा से बचाकर स्वर्गीय राज्य में सुरक्षित पहुँचाएगा।
**अंतिम आशीष और विदाई**
पत्र के अंत में, पौलुस ने कुछ व्यक्तिगत संदेश दिए। “प्रिस्का और अक्विला को और ओनेसिफोरुस के घराने को नमस्कार कहना।” उसने तीमुथियुस से कहा कि वह उसके आने से पहले उसका कोट और पुस्तकें—विशेषकर चर्मपत्र—साथ ले आए।
अंत में, उसने लिखा, “प्रभु तेरी आत्मा के साथ रहे। तुझ पर अनुग्रह हो।”
पौलुस ने पत्र को रोल करके बाँध दिया। उसने ऊपर देखा, जहाँ से एक संकरी खिड़की में रोशनी आ रही थी। वह जानता था कि उसकी मृत्यु निकट है, पर वह निडर था। उसने अपना जीवन परमेश्वर के हाथों में सौंप दिया था।
**और इस प्रकार, प्रेरित पौलुस ने अपनी अंतिम शिक्षा देकर, एक ऐसी विरासत छोड़ी जो आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बनी रहेगी।**