पवित्र बाइबल

मूसा और परमेश्वर की महिमा: सीनै पर्वत पर पवित्र वाचा

**नए नियम की एक अद्भुत कहानी: मूसा और परमेश्वर की महिमा**

चट्टानी पहाड़ों और उजड़े हुए मरुस्थल के बीच सीनै पर्वत अपनी विशालता में खड़ा था, जैसे स्वर्ग और पृथ्वी के बीच एक पवित्र सेतु। वहाँ का वातावरण आज भी पवित्र कंपन से भरा हुआ था, क्योंकि परमेश्वर ने अपनी उपस्थिति से उस स्थान को पवित्र कर दिया था। मूसा, इस्राएल के विनम्र नेता, एक बार फिर परमेश्वर के सामने खड़े होने के लिए तैयार थे। उनके हाथों में पत्थर की दो नई तख्तियाँ थीं, जिन पर परमेश्वर अपने नियमों को फिर से लिखने वाले थे। पहले की तख्तियाँ तोड़ दी गई थीं, क्योंकि इस्राएल ने सोने के बछड़े की पूजा करके अपने प्रभु को ठुकरा दिया था।

मूसा के हृदय में भारी उत्सुकता और श्रद्धा थी। वह जानता था कि परमेश्वर की महिमा उसके सामने प्रकट होने वाली है। उसने अपने चेहरे को घूँघट से ढक लिया, क्योंकि कोई भी मनुष्य परमेश्वर का पूर्ण तेज सहन नहीं कर सकता था। तभी, एक प्रचंड हवा चली, और बादलों ने पर्वत को घेर लिया। परमेश्वर की उपस्थिति एक जलते हुए झाड़ी की तरह प्रकट हुई, जो आग से जल रही थी, परन्तु भस्म नहीं हो रही थी।

और तब, परमेश्वर ने स्वयं को मूसा के सामने प्रकट किया। वह बादल में से होकर गुज़रा और अपनी महिमा की घोषणा करते हुए कहा, **”यहोवा, यहोवा, परमेश्वर दयालु और अनुग्रहकारी, विलम्ब से क्रोध करनेवाला, और अति करूणामय तथा सत्य। हजारों पर दया करनेवाला, अधर्म, और अपराध, और पाप का क्षमा करनेवाला, परन्तु दोषी को निर्दोष न ठहरानेवाला।”**

मूसा ने तुरंत भूमि पर मुँह के बल गिरकर उपासना की। उसका हृदय भय और आदर से भर उठा। परमेश्वर की आवाज़ गर्जन की तरह गूँज रही थी, और उसके वचनों में सृष्टि की सम्पूर्ण सत्ता समाई हुई थी।

फिर परमेश्वर ने मूसा से कहा, **”देख, मैं तेरे सामने एक वाचा बाँधता हूँ। मैं तेरी प्रजा के सामने अद्भुत काम करूँगा, जैसा पृथ्वी के किसी देश में कभी नहीं हुआ। सब लोग जिनके बीच तू रहता है, वे यहोवा का काम देखेंगे, क्योंकि जो मैं तेरे साथ करनेवाला हूँ, वह भयानक होगा।”**

मूसा ने धीरे से पूछा, **”हे प्रभु, यदि मैं तेरी दृष्टि में अनुग्रह पाया हूँ, तो कृपया हमारे बीच चल, क्योंकि यह लोग हठीले हैं, परन्तु हमारे अपराध और पापों को क्षमा कर, और हमें अपनी निज भक्ति समझ ले।”**

परमेश्वर ने उत्तर दिया, **”देख, मैं वाचा बाँधता हूँ। मैं तेरे सामने ऐसे अद्भुत काम करूँगा जिन्हें देखकर सारी पृथ्वी दंग रह जाएगी। परन्तु सावधान रहना—तू जिस देश में जा रहा है, वहाँ के निवासियों के साथ कोई वाचा न बाँधना। उनके देवताओं की पूजा मत करना, न ही उनके साथ मेलजोल रखना, क्योंकि वे तेरे लिए फन्दा बन जाएँगे।”**

फिर परमेश्वर ने मूसा को विस्तार से अपनी आज्ञाएँ दीं—विश्रामदिन का पालन करना, निर्धनों और परदेशियों के प्रति दया दिखाना, और सच्ची उपासना में लगे रहना। मूसा ने सारी बातें ध्यान से सुनीं और उन्हें अपने हृदय में संजो लिया।

अंत में, परमेश्वर ने मूसा से कहा, **”इन वचनों के अनुसार मैं तेरे साथ वाचा बाँधता हूँ और इस्राएल के साथ भी।”** और फिर, परमेश्वर ने मूसा को आज्ञा दी कि वह पत्थर की तख्तियों पर इन वचनों को लिखे। मूसा ने चालीस दिन और चालीस रात वहाँ बिताए, न कुछ खाया, न पानी पिया। उसका सम्पूर्ण अस्तित्व परमेश्वर की उपस्थिति में डूबा हुआ था।

जब मूसा पर्वत से उतरा, तो उसके चेहरे से एक अलौकिक प्रकाश निकल रहा था, इतना तेजस्वी कि लोग उसकी ओर देखने से भी डरते थे। इसलिए, मूसा ने जब तक परमेश्वर से बात नहीं की, तब तक अपना मुँह घूँघट से ढँक लिया।

इस्राएल के लोगों ने जब मूसा को देखा, तो वे समझ गए कि उनका नेता परमेश्वर के साथ वास्तविक सहभागिता में रहा था। उनके हृदय में पश्चाताप की भावना जागी, और उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वे अब परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करेंगे।

और इस प्रकार, परमेश्वर और उसकी प्रजा के बीच एक नई वाचा स्थापित हुई—एक वाचा जो दया, सच्चाई और अनन्त प्रेम पर आधारित थी।

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