पवित्र बाइबल

एलीहू की ज्ञानपूर्ण शिक्षा: अय्यूब और सत्य का मार्ग

**एलीहू का उद्भव: धैर्य और ज्ञान की कहानी**

यह वह समय था जब अय्यूब अपने दुःखों के बीच अपने तीन मित्रों—एलीपज, बिलदद और सोफर—के साथ बैठा था। वे दिनों से बहस कर रहे थे, पर कोई समाधान नहीं निकल रहा था। अय्यूब अपने निर्दोष होने पर अड़ा था, और उसके मित्र उसे यह समझाने की कोशिश कर रहे थे कि उसके दुःखों का कारण उसका कोई पाप अवश्य है। वार्तालाप बढ़ता गया, कटुता बढ़ती गई, पर सत्य अभी भी अनछुआ था।

तभी वहाँ एक युवक खड़ा हुआ, जिसका नाम एलीहू था। वह बूज का पुत्र और बारकेल का वंशज था, और वह अब तक चुपचाप सब कुछ सुन रहा था। उसके हृदय में ज्ञान की ज्वाला धधक रही थी, क्योंकि वह देख रहा था कि अय्यूब और उसके मित्रों के तर्कों में कोई न्याय नहीं है। एलीहू ने देखा कि अय्यूब अपने मुँह से परमेश्वर को दोष दे रहा था, और उसके मित्र उसे दोषी ठहराने में लगे थे, पर किसी के पास सच्चा उत्तर नहीं था।

एलीहू का क्रोध भड़क उठा, न क्योंकि वह अधीर था, बल्कि इसलिए कि सत्य को दबाया जा रहा था। वह युवा था, और उसने सम्मान के कारण पहले बोलने से परहेज किया था, क्योंकि वह जानता था कि बुजुर्गों को पहले बोलने का अधिकार है। पर अब धैर्य का बाँध टूट गया। उसने अपने हृदय में परमेश्वर की प्रेरणा को महसूस किया और उठकर बोला:

**”हे अय्यूब, और हे तुम तीनों मित्रों, मुझे बोलने दो! मैं अभी तक चुप रहा, क्योंकि तुम मेरे से बड़े हो। परन्तु अब मैं देखता हूँ कि तुममें से किसी ने भी अय्यूब को सही उत्तर नहीं दिया। तुमने केवल उसे दोषी ठहराने की कोशिश की, परन्तु परमेश्वर के न्याय को नहीं समझा।”**

एलीहू की आवाज़ में दृढ़ता थी, पर क्रोध नहीं। उसने कहा, **”मैं नवयुवक हूँ, परन्तु ज्ञान केवल बुढ़ापे में नहीं आता। यह परमेश्वर की देन है, जो वह किसी को भी देता है। मैंने धैर्य से सुना, परन्तु अब मेरा हृदय ज्ञान से भर उठा है, और मैं चुप नहीं रह सकता!”**

उसने अय्यूब की ओर देखा और कहा, **”तुम कहते हो कि तुम निर्दोष हो, और परमेश्वर ने तुम्हें अन्यायपूर्ण दुःख दिया है। परन्तु क्या तुमने कभी सोचा कि परमेश्वर का ज्ञान हमारी समझ से परे है? वह हमें दुःख देता है, परन्तु उसका उद्देश्य हमें शुद्ध करना होता है, न कि हमें नष्ट करना।”**

फिर उसने तीनों मित्रों से कहा, **”और तुम लोगों ने अय्यूब को दोषी ठहराकर परमेश्वर के न्याय को सीमित कर दिया। क्या तुम नहीं जानते कि परमेश्वर मनुष्य से बढ़कर है? उसके मार्ग अगम्य हैं, और उसकी योजनाएँ हमारी समझ से ऊपर!”**

एलीहू ने अपनी बात जारी रखी, **”परमेश्वर बोलता है—कभी स्वप्न में, कभी पीड़ा में, कभी अपने दूतों के द्वारा—ताकि मनुष्य को उसकी गलती का बोध हो। वह चाहता है कि हम अहंकार छोड़कर उसकी ओर मुड़ें। अय्यूब, तुम्हारा दुःख तुम्हें सिखा रहा है कि परमेश्वर पर भरोसा रखो, न कि अपनी धार्मिकता पर घमण्ड करो!”**

एलीहू के शब्दों में सच्चाई थी, और उसकी बातें अय्यूब और उसके मित्रों के हृदय में गूँज रही थीं। वह परमेश्वर की ओर से बोल रहा था, और उसके वचनों में वह ज्ञान था जो पहले किसी के पास नहीं था।

अंत में, एलीहू ने कहा, **”परमेश्वर महान है, और हम उसे पूरी तरह नहीं समझ सकते। परन्तु वह न्यायी है, और वह उन्हें बचाता है जो उसकी ओर मुड़ते हैं। अय्यूब, अपने हृदय को खोलो, और परमेश्वर की स्तुति करो, क्योंकि वही सब कुछ जानता है!”**

और इस प्रकार, एलीहू ने सत्य का मार्ग दिखाया, जिससे अय्यूब और उसके मित्र चुप हो गए। अब वे समझने लगे थे कि परमेश्वर का ज्ञान मनुष्य की समझ से ऊपर है, और उसके मार्ग सिद्ध हैं।

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