**2 इतिहास 5: एक विस्तृत कथा**
सुलैमान ने यहोवा के भवन के निर्माण का कार्य पूरा कर लिया था। यह भव्य मंदिर, जिसका नक्शा स्वयं परमेश्वर ने दाऊद को दिया था, अब अपनी पूर्णता में खड़ा था। सोने, चाँदी, बहुमूल्य पत्थरों और नक्काशीदार लकड़ी से सज्जित यह मंदिर, इस्राएल के परमेश्वर की महिमा का प्रतीक था। अब समय आ गया था कि परमेश्वर की वाचा के साक्षी, पवित्र सन्दूक को इस भवन में स्थापित किया जाए।
### **सन्दूक को लाने की तैयारी**
सुलैमान ने इस्राएल के सभी प्रमुखों, गोत्रों के अगुआओं और पुरोहितों को यरूशलेम में एकत्र होने का आह्वान किया। यह एक ऐतिहासिक क्षण था—वह दिन जब परमेश्वर का निवास स्थायी रूप से अपने भवन में विराजमान होगा। सातवें महीने, अर्थात् एथानीम महीने के पर्व के समय, सभी इस्राएली यरूशलेम में जमा हुए।
लेवीय पुरोहितों ने पवित्र सन्दूक को उठाया। सन्दूक, जिसमें दो पत्थर की पट्टियाँ रखी हुई थीं—जिन पर परमेश्वर ने स्वयं अपनी अँगुली से दस आज्ञाएँ लिखी थीं—अब धीरे-धीरे सिय्योन के गढ़ से नए मंदिर की ओर ले जाया जा रहा था। साथ ही, मिलाप का तम्बू और उसके सभी पवित्र पात्र भी पुरोहितों द्वारा लाए जा रहे थे।
### **महिमामय जुलूस**
राजा सुलैमान और सारा इस्राएल समुदाय सन्दूक के सामने-सामने चल रहा था। पुरोहितों ने सफेद वस्त्र धारण किए हुए थे, और लेवीय गायक अपने सुरीले वाद्यों—सारंगियों, वीणाओं और झाँझों—के साथ परमेश्वर की स्तुति कर रहे थे। वे एक स्वर में गा रहे थे:
*”यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह भला है;
उसकी करुणा सदा के लिए बनी रहती है!”*
आकाश गूँज उठा था उनके भजनों से। भीड़ में खड़े हर व्यक्ति का हृदय आनंद और भक्ति से भर उठा था। बलिदान की भेंटें इतनी अधिक थीं कि उन्हें गिनना असंभव था—बकरे, मेढ़े और बछड़ों की संख्या अनगिनत थी।
### **सन्दूक का प्रवेश और परमेश्वर की महिमा**
जब पुरोहितों ने पवित्र सन्दूक को मंदिर के अति पवित्र स्थान में रखा, तो वे करूबों के पंखों के नीचे उसकी स्थापना करने लगे। करूबों की विशाल मूर्तियाँ, जो सोने से मढ़ी हुई थीं, अपने पंख फैलाए सन्दूक को ढके हुए थीं। यह दृश्य अद्भुत था—सोने की चमक, धूप की सुगंध और पवित्रता की गंभीरता ने सम्पूर्ण स्थान को स्वर्गिक आभा से भर दिया।
जैसे ही सन्दूक अपने स्थान पर रखा गया, पुरोहितों ने पवित्र स्थान से बाहर आकर सभा को आशीर्वाद दिया। उसी क्षण, परमेश्वर की महिमा—एक घने बादल के रूप में—मंदिर में भर गई। यहोवा की उपस्थिति इतनी प्रबल थी कि पुरोहित उसके सामने खड़े नहीं रह सके और सेवा करने में असमर्थ हो गए।
सुलैमान ने ऊँचे स्वर में घोषणा की: *”हे यहोवा, तूने कहा था कि तू घने बादल में निवास करेगा। आज, मैंने तेरे नाम के लिये एक भव्य भवन बनवाया है, जहाँ तू सदैव अपनी महिमा प्रकट करेगा!”*
और तब, सम्पूर्ण इस्राएल ने भूमि पर मुख के बल गिरकर यहोवा की आराधना की। उन्होंने बलिदान चढ़ाए और आनंद मनाया, क्योंकि उनका हृदय जानता था कि परमेश्वर ने उनके मध्य अपना स्थान बना लिया था।
### **उपसंहार**
इस प्रकार, सुलैमान के समय में परमेश्वर का मंदिर पूर्ण हुआ और उसकी महिमा ने उसे भर दिया। इस्राएल ने देखा कि यहोवा अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार उनके साथ था। और जब तक वे उसकी आज्ञाओं में चलते रहे, उसकी आशीषें उन पर बरसती रहीं।
यह कहानी हमें सिखाती है कि परमेश्वर अपने वचन के प्रति सच्चा है। जब हम उसके नाम की महिमा के लिए अपना जीवन समर्पित करते हैं, तो वह हमारे बीच अपनी उपस्थिति से हमें आशीष देता है।