पवित्र बाइबल

भजन संहिता 150: प्रभु की महिमा का महान उत्सव

**भजन संहिता 150: प्रभु की स्तुति का महान उत्सव**

एक समय की बात है, यरूशलेम नगर में एक अद्भुत और पवित्र उत्सव मनाया जा रहा था। राजा दाऊद ने प्रभु के मंदिर में सभी लोगों को इकट्ठा होने का आह्वान किया था, क्योंकि वह चाहता था कि सारी सृष्टि अपने सृजनहार की महिमा गाए। सूर्य की स्वर्णिम किरणें मंदिर के सुनहरे शिखरों पर पड़ रही थीं, और हवा में प्रभु के नाम का सुगंध फैला हुआ था।

मंदिर का आँगन विशाल था, और उसमें हज़ारों लोग जमा हुए थे—युवा, वृद्ध, बच्चे, स्त्रियाँ, याजक, और संगीतकार। सभी के हृदय प्रभु के प्रेम से भरे हुए थे। तब राजा दाऊद ने ऊँचे स्वर में घोषणा की, **”प्रभु की स्तुति करो! उसकी महिमा गाओ! उसकी प्रशंसा उसके पवित्र धाम में करो!”**

और फिर एक अद्भुत संगीत की ध्वनि गूँज उठी। याजकों ने तुरहियाँ बजाईं, उनकी ऊँची आवाज़ आकाश तक पहुँच गई, मानो स्वर्गदूत भी उनके साथ जुड़ गए हों। वीणा और सितार बजने लगे, उनकी मधुर तान सुनकर लोगों के मन प्रफुल्लित हो उठे। ढोल और नगाड़ों की गड़गड़ाहट से पृथ्वी काँप उठी, मानो प्रकृति स्वयं प्रभु के सामने नृत्य कर रही हो।

तब दाऊद ने अपने हाथों से मंजीरे उठाए और उन्हें झंकृत किया। उसकी आँखों में आनंद के आँसू थे, क्योंकि वह जानता था कि प्रभु ही सब कुछ है—सृष्टिकर्ता, पालनहार, और मुक्तिदाता। उसने गाया, **”हर एक साँस लेने वाला प्रभु की स्तुति करे! जो कुछ भी है, वह उसकी महिमा गाए!”**

लोगों ने नाचना शुरू कर दिया। उनके पैरों की थाप और हाथों की तालियाँ एक दिव्य लय बना रही थीं। कोई ऊँचे स्वर में भजन गा रहा था, तो कोई मौन होकर प्रभु के सामने श्रद्धा से झुका हुआ था। बच्चे फूल बिखेर रहे थे, और याजक धूप जला रहे थे, जिसकी सुगंध स्वर्ग तक पहुँच रही थी।

तभी एक बूढ़ा व्यक्ति, जिसके बाल सफेद हो चुके थे और चेहरे पर झुर्रियाँ थीं, आगे बढ़ा। उसने अपना हाथ आकाश की ओर उठाया और कहा, **”हे प्रभु, तू महान है! तेरी करुणा अनंत है, और तेरा प्रेम अटल! मैं जीवन भर तेरी सेवा करता आया हूँ, और आज मैं देख रहा हूँ कि तेरी महिमा सारी सृष्टि में व्याप्त है!”**

उसकी बात सुनकर सभी की आँखें नम हो गईं। राजा दाऊद ने उस बूढ़े व्यक्ति को गले लगाया और कहा, **”हाँ, प्रभु हमारे जीवन का आधार है। उसकी स्तुति करना हमारा कर्तव्य है, क्योंकि वही हमारा सब कुछ है।”**

और फिर से संगीत भर गया। इस बार और भी अधिक उत्साह के साथ। लोगों ने अपने-अपने वाद्ययंत्र बजाए, अपनी-अपनी आवाज़ें उठाईं, और प्रभु के सामने अपने हृदय खोल दिए। वह उत्सव पूरी रात चलता रहा, मानो समय ही ठहर गया हो।

जब सुबह हुई, तो सूर्य की पहली किरण ने मंदिर को सोने की तरह चमकाते हुए देखा। लोग थके हुए थे, परन्तु उनके चेहरों पर एक अद्भुत शांति और आनंद था। राजा दाऊद ने अंत में आशीर्वाद दिया, **”प्रभु तुम सबको आशीष दे। उसकी स्तुति सदा तक होती रहे, और हर एक प्राणी उसकी महिमा गाता रहे!”**

और इस प्रकार, भजन संहिता 150 का यह महान स्तुति गीत यरूशलेम की गलियों में गूँजता रहा, और आज भी हर उस व्यक्ति के हृदय में बसता है जो प्रभु की महिमा गाने का साहस करता है।

**”हर एक साँस लेने वाला यहोवा की स्तुति करे! यहोवा की स्तुति करो!”** (भजन 150:6)

LEAVE A RESPONSE

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *