पवित्र बाइबल

यीशु द्वारा नाईन के बेटे को जिलाना और पापिनी को क्षमा

**यीशु का नाईन के बेटे को जिलाना और स्त्री के पापों की क्षमा**

*(लूका 7 की कहानी विस्तार से)*

कफरनहूम के पास एक छोटा-सा गाँव था, जहाँ रोमी सैनिकों का एक शतपति (सेनापति) रहता था। वह एक विदेशी था, परन्तु उसने इस्राएल के परमेश्वर में विश्वास किया था। वह यहूदी लोगों से प्रेम करता था और उनके लिए एक आराधनालय भी बनवाया था। उसका एक प्रिय दास था, जो बीमार पड़ गया और मरने के कगार पर था।

जब सेनापति ने सुना कि यीशु नासरत से आया है और बीमारों को चंगा करता है, तो उसने यहूदियों के कुछ बुजुर्गों को यीशु के पास भेजा। वे यीशु के पास पहुँचे और विनती करने लगे, “हे प्रभु, हमारा सेनापति आपके लायक है, क्योंकि वह हमारी जाति से प्रेम करता है और उसने हमारे लिए आराधनालय बनवाया है।”

यीशु उनके साथ चल पड़े। जब वे गाँव के निकट पहुँचे, तो सेनापति ने अपने कुछ मित्रों को भेजकर यीशु से कहलवाया, “हे प्रभु, मैं योग्य नहीं हूँ कि आप मेरे घर में प्रवेश करें, इसलिए मैंने स्वयं आपके पास आने का साहस नहीं किया। केवल एक वचन कह दीजिए, और मेरा दास अवश्य चंगा हो जाएगा। मैं भी अधिकार के अधीन हूँ, और मेरे अधीन सैनिक हैं। जब मैं किसी से कहता हूँ ‘जा,’ तो वह जाता है, और ‘आ,’ तो वह आता है। मेरे दास से कहता हूँ ‘यह कर,’ तो वह करता है।”

यीशु ने यह सुनकर आश्चर्य किया और अपने पीछे आने वाली भीड़ की ओर मुड़कर कहा, “मैं तुमसे कहता हूँ, मैंने इस्राएल में भी ऐसा विश्वास नहीं पाया!” जब सेनापति के दूत घर लौटे, तो उन्होंने दास को पूर्णतः स्वस्थ पाया।

**नाईन की विधवा का पुत्र जिलाया जाता है**

इसके बाद यीशु अपने चेलों और बड़ी भीड़ के साथ नाईन नामक एक छोटे शहर की ओर चले। जैसे ही वे नगर के फाटक के पास पहुँचे, वहाँ से एक अंत्येष्टि जुलूस निकल रहा था। नगर की एक विधवा का इकलौता पुत्र मर चुका था, और बहुत से लोग उसके साथ थे।

प्रभु यीशु ने उस विधवा को देखा, और उस पर तरस खाया। उसने उससे कहा, “मत रो।” फिर वह आगे बढ़ा और शव को छूने वाली चारपाई को छू लिया। जुलूस रुक गया। यीशु ने कहा, “हे जवान, मैं तुझसे कहता हूँ, उठ!”

मरा हुआ युवक बैठ गया और बोलने लगा। यीशु ने उसे उसकी माँ को सौंप दिया। सब लोग डर गए और परमेश्वर की महिमा करते हुए कहने लगे, “हमारे बीच में एक महान भविष्यद्वक्ता उठ खड़ा हुआ है!” और “परमेश्वर ने अपनी प्रजा पर दृष्टि की है!” यह बात सारे यहूदिया और आसपास के क्षेत्रों में फैल गई।

**पापी स्त्री द्वारा यीशु के पैर धोना**

फरीसियों में से शमौन नामक एक व्यक्ति ने यीशु को भोजन के लिए आमंत्रित किया। यीशु उसके घर में भोजन करने बैठे ही थे कि नगर की एक पापी स्त्री, जिसे सब जानते थे कि वह कैसी है, यह जानकर कि यीशु फरीसी के घर भोजन कर रहे हैं, एक संदूक में इत्र लेकर वहाँ आई।

वह यीशु के पीछे उनके पैरों के पास खड़ी होकर रोने लगी। उसके आँसुओं से यीशु के पैर भीग गए, और उसने अपने बालों से उन्हें पोंछा। फिर उसने उनके पैरों को चूमा और इत्र से उनका अभिषेक किया।

शमौन फरीसी ने मन ही मन सोचा, “यदि यह भविष्यद्वक्ता होता, तो जानता कि यह कौन स्त्री है जो उसे छू रही है, क्योंकि यह पापिनी है।”

यीशु ने उसके विचार जान लिए और उससे कहा, “हे शमौन, मैं तुझसे कुछ कहना चाहता हूँ।”

शमौन ने कहा, “हे गुरु, कहिए।”

यीशु ने कहा, “एक साहूकार के दो ऋणी थे। एक पाँच सौ दीनार का, और दूसरा पचास का। जब उनके पास चुकाने को कुछ न था, तो उसने दोनों को क्षमा कर दिया। अब बताओ, उन दोनों में से कौन उससे अधिक प्रेम करेगा?”

शमौन ने उत्तर दिया, “मैं समझता हूँ कि जिसे अधिक क्षमा किया गया।”

यीशु ने कहा, “तूने ठीक न्याय किया।” फिर उसने उस स्त्री की ओर देखकर शमौन से कहा, “क्या तूने इस स्त्री को देखा? मैं तेरे घर में आया, पर तूने मेरे पैर धोने को पानी नहीं दिया। पर इसने मेरे पैर आँसुओं से धोए और अपने बालों से पोंछा। तूने मुझे चूमा नहीं, पर इसने जब से मैं आया हूँ, मेरे पैर चूमना नहीं छोड़ा। तूने मेरे सिर पर तेल नहीं डाला, पर इसने मेरे पैरों पर इत्र डाला। इसलिए मैं तुझसे कहता हूँ कि इसके बहुत से पाप क्षमा हुए, क्योंकि इसने बहुत प्रेम किया। पर जिसे थोड़ा क्षमा किया जाता है, वह थोड़ा प्रेम करता है।”

फिर उसने स्त्री से कहा, “तेरे पाप क्षमा हुए।”

जो लोग भोजन कर रहे थे, वे मन ही मन सोचने लगे, “यह कौन है जो पापों को भी क्षमा करता है?”

परन्तु यीशु ने स्त्री से कहा, “तेरे विश्वास ने तुझे बचाया है; शांति से जा।”

और वह स्त्री शांति और आनंद से भरकर चली गई, क्योंकि उसके हृदय से पाप का बोझ उतर चुका था।

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