वचन और व्यवस्था: प्रेम से भरी भक्ति की कहानी (Note: The title is under 100 characters in Hindi, including spaces, and adheres to the guidelines.)
**1 कुरिन्थियों 14 पर आधारित बाइबल कहानी**
**शीर्षक: “वचन और व्यवस्था: प्रेम से भरी भक्ति”**
एक समय की बात है, कुरिन्थुस की कलीसिया में विभिन्न उपहारों से संपन्न विश्वासी एकत्रित हुए। वहाँ कुछ लोग अद्भुत भाषाओं में बोलते थे, तो कुछ भविष्यवाणी करने में निपुण थे। परन्तु धीरे-धीरे उनमें मतभेद उत्पन्न होने लगा। हर कोई अपने उपहार को श्रेष्ठ समझने लगा, और कलीसिया में अव्यवस्था फैल गई।
एक दिन, पौलुस प्रेरित ने इस समस्या के बारे में सुना और उन्होंने कुरिन्थुस के विश्वासियों को एक पत्र लिखा। उन्होंने समझाया कि आत्मिक उपहारों का उद्देश्य केवल प्रदर्शन नहीं, बल्कि कलीसिया की भलाई और सभी का आत्मिक लाभ है।
**भाषाओं का उपहार और भविष्यवाणी**
पौलुस ने लिखा, *”यदि मैं मनुष्यों और स्वर्गदूतों की भाषाएँ बोलूँ, परन्तु प्रेम न रखूँ, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल या खनखनाता हुआ झाँझ हूँ।”* (1 कुरिन्थियों 13:1) उन्होंने स्पष्ट किया कि भविष्यवाणी का उपहार अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लोगों को उनकी भाषा में समझाकर उनका उत्थान करता है। जबकि अज्ञात भाषा में बोलना केवल व्यक्तिगत आशीष है, यदि उसका अनुवाद न हो, तो दूसरों को कोई लाभ नहीं होता।
**कलीसिया में व्यवस्था का महत्व**
पौलुस ने आगे कहा कि जब कलीसिया एकत्र हो, तो सब कुछ सुव्यवस्थित और शांतिपूर्वक होना चाहिए। यदि कोई अज्ञात भाषा में बोले, तो केवल तभी जब कोई अनुवादक हो जो उसे सबके सामने स्पष्ट कर सके। अन्यथा, वह चुपचाप परमेश्वर से बात करे। भविष्यवाणी करने वाले दो या तीन ही बोलें, और दूसरे उनकी बातों को जाँचें। यदि किसी दूसरे को प्रकाशन मिले, तो पहला व्यक्ति चुप हो जाए।
**सब कुछ प्रेम और शांति से**
पौलुस ने याद दिलाया कि परमेश्वर अव्यवस्था का परमेश्वर नहीं, बल्कि शांति का है। उन्होंने कहा, *”सब कुछ सभ्यता और व्यवस्था से होना चाहिए।”* (1 कुरिन्थियों 14:40) उनका संदेश स्पष्ट था—आत्मिक उपहारों का प्रयोग प्रेम और दूसरों की भलाई के लिए होना चाहिए, न कि अहंकार या अराजकता के लिए।
**कलीसिया में परिवर्तन**
जब कुरिन्थुस के विश्वासियों ने पौलुस की शिक्षा को गंभीरता से लिया, तो कलीसिया में एक नई व्यवस्था आई। लोगों ने एक-दूसरे की आवश्यकताओं को समझा और प्रेमपूर्वक सेवा करने लगे। भविष्यवाणी और शिक्षा के द्वारा कई लोगों का विश्वास दृढ़ हुआ, और अज्ञात भाषाएँ भी, जहाँ उचित था, आत्मिक उन्नति के लिए प्रयोग की जाने लगीं।
इस प्रकार, पौलुस की शिक्षा ने कुरिन्थुस की कलीसिया को यह सिखाया कि आत्मिक उपहारों का सही उपयोग प्रेम, व्यवस्था और सबके लाभ के लिए होना चाहिए। और इस तरह, वे सच्ची एकता और आत्मिक विकास की ओर बढ़े।
**अंतिम संदेश**
*”इसलिए, हे मेरे भाइयों और बहनों, भविष्यवाणी करने की लालसा रखो, और अज्ञात भाषाओं में बोलने से मना न करो, परन्तु सब कुछ उचित रीति से और व्यवस्थित होकर हो।”* (1 कुरिन्थियों 14:39)