**ज़कर्याह 5: एक रहस्यमय दर्शन**
उस रात जब नबी ज़कर्याह अपनी छत पर खड़ा था, आकाश में काले बादल छाए हुए थे, और हवा में एक अजीब सी गंभीरता थी। वह प्रभु की आवाज़ सुनने के लिए तैयार था, क्योंकि उसे पता था कि परमेश्वर उसे कुछ महत्वपूर्ण दिखाने वाला है। तभी अचानक उसकी आँखों के सामने एक विचित्र दृश्य प्रकट हुआ—एक विशाल उड़ने वाला पत्र, जो आकाश में तैर रहा था।
यह पत्र बीस हाथ लंबा और दस हाथ चौड़ा था, और यह पूरी तरह से खुला हुआ था, जैसे कि कोई विशाल किताब हो। ज़कर्याह ने ध्यान से देखा, तो उस पर लिखा हुआ था: **”शाप उन सब पर जो चोरी करते हैं और झूठी शपथ लेते हैं।”** ये शब्द आग की तरह चमक रहे थे, मानो परमेश्वर का न्याय स्पष्ट रूप से प्रकट हो रहा हो।
तभी एक दिव्य स्वर उसके कानों में गूंजा: **”यह शाप पत्र पूरे देश में फैल जाएगा, और जो कोई भी इन पापों में लिप्त है, वह इसके दण्ड से बच नहीं पाएगा।”** ज़कर्याह का हृदय काँप उठा, क्योंकि वह जानता था कि परमेश्वर पाप से घृणा करता है और उसका न्याय निष्पक्ष है।
लेकिन दर्शन यहीं समाप्त नहीं हुआ। अचानक, एक और अद्भुत दृश्य सामने आया—एक सीसा से बना हुआ एक बड़ा बर्तन, जो हवा में तैर रहा था। जब ज़कर्याह ने उसे देखा, तो उसमें से एक स्त्री प्रकट हुई। वह बहुत ही भयानक दिख रही थी, उसकी आँखें अंधकार से भरी हुई थीं, और उसके हाथों में पाप की शक्ति स्पष्ट दिखाई दे रही थी।
तभी एक शक्तिशाली स्वर्गदूत ने उस स्त्री को उस बर्तन में धकेल दिया और उसके ऊपर सीसा का ढक्कन लगा दिया। ज़कर्याह ने हैरान होकर पूछा, **”हे स्वामी, यह क्या है?”**
स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, **”यह दुष्टता की आत्मा है, जो पूरे संसार में फैली हुई है। इसे इस बर्तन में बंद किया जा रहा है, ताकि यह और अधिक अधर्म न फैला सके।”**
ज़कर्याह ने फिर देखा कि दो स्त्रियाँ, जिनके पंख सारस के पंखों की तरह थे, हवा में उड़ते हुए आईं और उस बर्तन को उठाकर ले गईं। स्वर्गदूत ने समझाया, **”वे इसे शिनार देश ले जा रही हैं, जहाँ इसके लिए एक मंदिर बनाया जाएगा। वहाँ यह स्थापित होगी, जब तक कि परमेश्वर का न्याय पूरा नहीं हो जाता।”**
ज़कर्याह समझ गया कि यह दर्शन परमेश्वर के न्याय और पाप के अंत की ओर संकेत कर रहा है। प्रभु ने उसे दिखाया था कि वह पाप को सहन नहीं करेगा, और एक दिन सारी दुष्टता का अंत होगा। उसकी आत्मा में शांति भर गई, क्योंकि वह जानता था कि परमेश्वर की योजना पवित्र और न्यायपूर्ण है।
इस तरह, ज़कर्याह के इस दर्शन ने उसे और सभी विश्वासियों को याद दिलाया कि परमेश्वर पवित्र है, और उसका न्याय निश्चित है। जो कोई भी पश्चाताप करेगा और सच्चे मन से उसकी ओर लौटेगा, उस पर दया होगी, लेकिन जो दुष्टता में बने रहेंगे, उनका अंत निश्चित है।
**अंत।**