**विश्वास की नींव: शमा की कहानी**
प्राचीन समय में, जब इस्राएली मिस्र की गुलामी से मुक्त होकर मूसा के नेतृत्व में वादा किए गए देश की ओर बढ़ रहे थे, तब मोआब के मैदानों में एक छोटा-सा गाँव बसा हुआ था। इस गाँव में एक बूढ़ा व्यक्ति, एलियाकीम, अपने पोते शमा के साथ रहता था। एलियाकीम इस्राएल के उन बुजुर्गों में से था जिन्होंने मिस्र से निकलने की महान घटना को अपनी आँखों से देखा था। अब वह अपने जीवन के अंतिम दिनों में परमेश्वर की शिक्षाओं को अपनी अगली पीढ़ी तक पहुँचाने का प्रयास कर रहा था।
एक शाम, जब सूरज धीरे-धीरे पहाड़ों के पीछे छिप रहा था और आकाश में सुनहरी लालिमा फैली हुई थी, शमा अपने दादा के पास बैठा हुआ था। उसकी आँखों में जिज्ञासा चमक रही थी। “दादाजी, आप हमेशा परमेश्वर की आज्ञाओं के बारे में बात करते हैं, लेकिन मुझे समझ नहीं आता कि यह हमारे लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है?”
एलियाकीम ने गहरी साँस ली और अपने पोते की ओर मुस्कुराते हुए देखा। उसने अपनी लाठी को एक तरफ रखा और धीरे से कहा, “शमा, मेरे बच्चे, सुनो। हमारा परमेश्वर, जिसने हमें मिस्र की दासता से छुड़ाया, वह एकमात्र सच्चा परमेश्वर है। उसने हमें यह आज्ञा दी है: ‘तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन, और अपने सारे प्राण, और अपनी सारी शक्ति से प्रेम रखना।’ यही हमारे विश्वास की नींव है।”
शमा ने सिर हिलाया, लेकिन उसके मन में अभी भी प्रश्न थे। “लेकिन दादाजी, हम इसे कैसे याद रखें? कैसे जानें कि हम सही रास्ते पर चल रहे हैं?”
एलियाकीम ने अपने हाथ से ज़मीन पर एक रेखा खींची और कहा, “परमेश्वर ने हमें यह भी सिखाया है कि हम उसकी आज्ञाओं को अपने हृदय में रखें। उन्हें अपने बच्चों को सिखाएँ, घर में बैठे और मार्ग पर चलते हुए, सुबह और शाम, उन पर चिंतन करें।” उसने एक पत्थर उठाया और उसे रेखा के एक छोर पर रख दिया। “यह पत्थर हमारी याद दिलाता है कि परमेश्वर हमारे साथ है। हमें उसके वचनों को अपने दरवाज़ों और फाटकों पर लिखकर रखना चाहिए, ताकि हम कभी न भूलें।”
शमा ने ध्यान से सुना और फिर पूछा, “क्या परमेश्वर की आज्ञाएँ केवल नियम हैं, या इनका कोई गहरा अर्थ है?”
एलियाकीम की आँखें चमक उठीं। “बहुत अच्छा प्रश्न, शमा। परमेश्वर की आज्ञाएँ केवल नियम नहीं हैं, बल्कि वे हमारे और उसके बीच एक प्रेम का बंधन हैं। जब हम उसकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, तो हम उसके साथ अपना संबंध मज़बूत करते हैं। यह हमारे पूर्वजों—इब्राहीम, इसहाक और याकूब—के साथ उसकी वाचा का प्रमाण है।”
उस रात, जब चाँदनी गाँव पर छा गई और सभी लोग सो चुके थे, शमा अपने दादा की बातों पर मनन करता रहा। उसने महसूस किया कि परमेश्वर की आज्ञाएँ केवल शब्द नहीं हैं, बल्कि वे जीवन का मार्गदर्शन करने वाली ज्योति हैं।
कुछ वर्षों बाद, जब एलियाकीम इस संसार से चला गया, शमा ने अपने दादा की शिक्षाओं को आगे बढ़ाया। उसने अपने बच्चों को भी यही सिखाया कि परमेश्वर की आज्ञाओं को हृदय में बसाना और उन पर चलना ही सच्ची बुद्धिमानी है। इस प्रकार, व्यवस्थाविवरण 6 की शिक्षा पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ती गई, और इस्राएल के लोगों को यह याद दिलाती रही कि उनका परमेश्वर ही एकमात्र सच्चा परमेश्वर है, और उसके प्रेम में बने रहना ही उनकी सच्ची विरासत है।
**समाप्त।**