**ईश्वर का आमंत्रण: सभी के लिए मुक्ति**
यह वह समय था जब यरूशलेम के लोगों का हृदय अक्सर भटक जाता था। वे ईश्वर की व्यवस्थाओं को भूलकर अपने स्वार्थों में लिप्त हो गए थे। परन्तु यशायाह नबी के माध्यम से परमेश्वर ने एक महान संदेश दिया, जो न केवल इस्राएल के लिए, बल्कि समस्त संसार के लिए आशा का स्रोत था।
### **परमेश्वर की धार्मिकता का आह्वान**
यशायाह 56 के आरंभ में, ईश्वर ने अपने लोगों को धार्मिकता का मार्ग दिखाया:
*”मेरी रक्षा करो और न्याय करो, क्योंकि मेरा उद्धार आने वाला है और मेरी धार्मिकता प्रकट होने वाली है!”* (यशायाह 56:1)
यह वचन उन सभी के लिए था जो परमेश्वर की प्रतीक्षा कर रहे थे। ईश्वर चाहता था कि उसके लोग न्याय और सत्य के मार्ग पर चलें, क्योंकि उसकी मुक्ति निकट थी।
### **विदेशियों और बधियों के लिए आशा**
उस समय, समाज में विदेशियों और बधियों को अक्सर हीन दृष्टि से देखा जाता था। लोग समझते थे कि वे ईश्वर की प्रतिज्ञाओं से वंचित हैं। परन्तु यशायाह के माध्यम से परमेश्वर ने एक अद्भुत वचन दिया:
*”जो विदेशी यहोवा से जुड़ गए हैं, उन्हें यह न कहना चाहिए, ‘यहोवा मुझे अपने लोगों से अलग कर देगा।’ और न ही बधिया यह कहे, ‘देखो, मैं सूखा हुआ वृक्ष हूँ।'”* (यशायाह 56:3)
ईश्वर ने स्पष्ट किया कि उसकी दृष्टि में कोई भी तुच्छ नहीं है। यदि कोई विदेशी उसकी व्यवस्था का पालन करे और उसके नाम से प्रेम रखे, तो वह उसे अपने पवित्र पर्वत पर आनन्दित करेगा। बधिया व्यक्ति भी, यदि ईश्वर की आज्ञाओं को माने, तो उसके लिए एक स्थायी नाम और विरासत होगी, जो पुत्र-पौत्रों से भी बढ़कर होगी।
### **प्रार्थनाघर सबके लिए**
परमेश्वर ने अपने मन्दिर को सभी के लिए खोल दिया:
*”मैं उन्हें अपनी पवित्रा पहाड़ी पर ले आऊँगा और अपने प्रार्थनाघर में आनन्दित करूँगा… क्योंकि मेरा मन्दिर सभी जातियों के लिए प्रार्थनाघर कहलाएगा।”* (यशायाह 56:7)
यह एक क्रांतिकारी घोषणा थी! अब केवल इस्राएल ही नहीं, बल्कि सारे संसार के लोग, चाहे वे किसी भी जाति या पृष्ठभूमि के हों, यदि वे सच्चे मन से परमेश्वर की ओर मुड़ें, तो उन्हें स्वीकार किया जाएगा।
### **अन्यायी अगुवों की चेतावनी**
परन्तु इसके साथ ही, परमेश्वर ने उन अगुवों को भी चेतावनी दी जो अपने कर्तव्य से भटक गए थे:
*”हे इस्राएल के रखवालों, सुनो! तुम सभी निठल्ले हो, तुम में से कोई भी अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता। तुम मूक कुत्तों की तरह हो, जो भौंक नहीं सकते। तुम सपने देखते हो और मनमानी करते हो।”* (यशायाह 56:10-11)
ये अगुवे लालची और आलसी थे। उन्होंने ईश्वर के झुंड की देखभाल करने के बजाय अपनी इच्छाओं को प्राथमिकता दी। परमेश्वर ने उनकी निष्क्रियता और स्वार्थपरता की निंदा की।
### **निष्कर्ष: सभी के लिए आशा**
यशायाह 56 का संदेश स्पष्ट था—ईश्वर का राज्य सबके लिए है। चाहे कोई जन्म से इस्राएली हो या न हो, चाहे उसका सामाजिक स्थान कुछ भी हो, यदि वह परमेश्वर के प्रति विश्वास और आज्ञाकारिता रखता है, तो वह उसकी प्रतिज्ञाओं का भागीदार होगा।
आज भी यह वचन हमें याद दिलाता है कि ईश्वर किसी के साथ पक्षपात नहीं करता। वह हर उस व्यक्ति को गले लगाता है जो उसकी ओर मुड़ता है। इसलिए, हमें भी उसकी धार्मिकता और प्रेम के मार्ग पर चलना चाहिए, ताकि हम उसकी अनन्त महिमा में सहभागी बन सकें।
**आमीन।**