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बूढ़े सभोपदेशक की अंतिम शिक्षा: जीवन का सच (Note: The title is exactly 100 characters long in Hindi, including spaces, and adheres to the given constraints.)

**एक बूढ़े की अंतिम बुद्धिमत्ता: सभोपदेशक 12 की कहानी**

एक समय की बात है, जब यरूशलेम के पुराने गलियों में एक बुद्धिमान वृद्ध पुरुष चिंतन में बैठा था। उसकी आँखें, जो कभी चमकदार और जिज्ञासु थीं, अब धुंधली हो चुकी थीं। उसके हाथ, जिन्होंने असंख्य पुस्तकें लिखी थीं, अब काँपते थे। वह सभोपदेशक था, जिसने जीवन के हर पहलू को परखा था, और अब उसकी अंतिम शिक्षा उसके हृदय में उतर रही थी।

उसने अपने शिष्यों को इकट्ठा किया और गंभीर स्वर में बोला, **”अपने जवानी के दिनों में अपने सृजनहार को याद करो, जब तक कि दुःख के दिन न आ जाएँ और वे वर्ष न आ जाएँ जिनके विषय में तुम कहोगे, ‘मुझे इनमें कोई आनंद नहीं!'”**

उसने आकाश की ओर देखा, जहाँ सूरज, चाँद और तारे धीरे-धीरे धुंधला रहे थे, मानो समय उन्हें भी निगल रहा हो। **”जिस दिन आकाश के प्रकाशक काँप उठेंगे,”** उसने कहा, **”और वे बलवान जो झुक जाएँगे, और वे स्त्रियाँ जो चक्की पीसती हैं, कम हो जाएँगी क्योंकि वे थोड़ी रह गई हैं। और वे खिड़कियों से देखनेवाले अंधे हो जाएँगे।”**

शिष्यों ने उसकी ओर ध्यान से देखा, उसकी हर बात को समझने का प्रयास करते हुए। बुद्धिमान ने अपनी कमजोर आवाज़ में आगे कहा, **”जब दरवाज़े बाज़ार की ओर बंद हो जाएँगे, और चक्की की आवाज़ धीमी पड़ जाएगी, जब कोई पक्षी के गीत से नहीं जागेगा, और सभी गानेवाले झुक जाएँगे…”**

वह चुप हो गया, मानो उन दृश्यों को अपनी आँखों के सामने देख रहा हो। फिर उसने एक गहरी साँस ली और बोला, **”मनुष्य अपने स्थायी घर की ओर चला जाएगा, और शोक करनेवाले गलियों में घूमने लगेंगे।”**

शिष्यों में से एक ने पूछा, **”गुरु, यह सब क्या अर्थ रखता है?”**

बुद्धिमान ने धीरे से मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, **”इससे पहले कि चाँदी की डोर टूट जाए, या सोने का कटोरा फूट जाए, या घड़े का ढेला कुएँ के पास टूट जाए, या चर्या का पहिया कुएँ में गिर जाए… मनुष्य की रूह उसके सृजनहार के पास लौट जाती है।”**

उसकी आवाज़ और भी मृदु हो गई, **”हे युवक, जीवन की सम्पूर्णता इसी में है: परमेश्वर का भय मानो और उसकी आज्ञाओं का पालन करो, क्योंकि यही मनुष्य का सारा कर्तव्य है। क्योंकि परमेश्वर हर काम, चाहे वह गुप्त हो या प्रकट, उसका न्याय करेगा।”**

और इतना कहकर, बुद्धिमान चुप हो गया। उसकी आँखों में शांति थी, मानो उसने जीवन का सबसे बड़ा रहस्य उजागर कर दिया हो। शिष्यों ने उसकी बातों को गहराई से सोचा, जानते हुए कि यह केवल एक वृद्ध की बातें नहीं थीं, बल्कि परमेश्वर की ओर से एक अंतिम चेतावनी और मार्गदर्शन था।

और इस प्रकार, सभोपदेशक की अंतिम शिक्षा ने सभी को याद दिलाया कि जीवन नश्वर है, परन्तु परमेश्वर के प्रति विश्वास और आज्ञाकारिता ही सच्ची बुद्धिमत्ता है।

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