**भजन संहिता 65 पर आधारित एक विस्तृत कहानी**
**शीर्षक: “धरती की संपूर्णता का गीत”**
वर्षों पहले, यरूशलेम के पास एक छोटे से गाँव में एक बूढ़ा किसान रहता था, जिसका नाम एलीआव था। वह प्रतिदिन सुबह जल्दी उठकर परमेश्वर की स्तुति करता और अपने खेतों में काम करने जाता। एक बार, जब सारा देश भयंकर सूखे से जूझ रहा था, तब भी एलीआव का विश्वास अडिग था। वह भजन संहिता 65 को दोहराता रहता: *”हे परमेश्वर, सिय्योन में तुझे मन्नतें पूरी की जाएंगी; लोग तेरी सुनेंगे, हे प्रार्थनाओं के सुनने वाले…”*
एक दिन, गाँव के लोग चिंतित होकर इकट्ठा हुए। उनके खेत सूख रहे थे, नदियाँ सूख चुकी थीं, और आकाश बादलों से खाली लग रहा था। सभी ने फैसला किया कि वे परमेश्वर से प्रार्थना करेंगे। एलीआव ने उन्हें भजन 65 की याद दिलाई: *”तू पहाड़ों को अपने बल से कमर कसे हुए है, तू ही समुद्र की गर्जना, लहरों की गर्जना और जातियों के कोलाहल को शांत करता है।”*
उसी रात, आकाश में बादल छा गए। गरज के साथ मूसलाधार वर्षा होने लगी। लोग खुशी से झूम उठे। एलीआव ने अपने घर के सामने खड़े होकर परमेश्वर का धन्यवाद किया: *”हे प्रभु, तू ही धरती को जल से सींचता है और उसे समृद्ध करता है। तेरी नदियाँ कभी खाली नहीं रहतीं!”*
कुछ ही दिनों में, सूखी धरती हरी-भरी हो गई। खेतों में फसलें लहलहाने लगीं, पहाड़ों पर हरियाली छा गई, और मैदानी इलाकों में फूल खिल उठे। गाँव वालों ने एक विशाल उत्सव मनाया। वे सभी मिलकर भजन गाने लगे: *”तू ही धरती को तैयार करता है, उसको आशीष देता है और उसे अधिक फलदायी बनाता है।”*
एलीआव ने सभा में खड़े होकर कहा, “भाइयो और बहनो, परमेश्वर ने हमारी प्रार्थनाएँ सुनी हैं। वह न केवल हमारी आवश्यकताओं को पूरा करता है, बल्कि हमें उसकी महिमा का गवाह भी बनाता है। देखो, यह धरती उसकी करुणा से भरपूर है!”
उस वर्ष, फसल इतनी अधिक हुई कि गाँव के लोगों ने अपने भंडार भर लिए। उन्होंने यरूशलेम की ओर एक तीर्थयात्रा की और मंदिर में जाकर परमेश्वर को धन्यवाद दिया। याजक ने भजन 65 का पाठ किया: *”तू ही धरती को उसकी उपज से तृप्त करता है। तेरे मार्ग आनंद से भरे हैं, तेरे चरणों की छाप धन्य है!”*
गाँव वाले समझ गए कि परमेश्वर की करुणा सदा बनी रहती है। वह न केवल उनकी आत्मिक प्यास बुझाता है, बल्कि धरती को भी जीवन देता है। एलीआव ने अपने जीवन के अंतिम दिनों तक इस सच्चाई को लोगों को सिखाया: *”जब हम परमेश्वर की महिमा गाते हैं, तो समस्त सृष्टि हमारे साथ जुड़ जाती है।”*
और इस प्रकार, भजन 65 की यह कहानी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलती रही, यह याद दिलाते हुए कि परमेश्वर की आशीषें कभी समाप्त नहीं होतीं।