उत्पीड़न से विजय तक: भजन संहिता 129 की प्रेरणा (Note: The title is within 100 characters, symbols and quotes are removed, and it captures the essence of the story.)
**भजन संहिता 129 पर आधारित एक विस्तृत कहानी**
**शीर्षक: “उत्पीड़न से विजय तक”**
प्राचीन समय में यरूशलेम के पास एक छोटे से गाँव में यिशाई नाम का एक बूढ़ा व्यक्ति रहता था। वह अपने परिवार के साथ एक साधारण जीवन जीता था, परन्तु उसका हृदय परमेश्वर के प्रति गहरी भक्ति से भरा हुआ था। यिशाई अक्सर भजन संहिता का पाठ करता था, विशेषकर भजन 129, जो उसे उसके पूर्वजों के संघर्षों की याद दिलाता था।
भजन 129 की पहली पंक्तियाँ कहती हैं—
*”बाल्यकाल से ही वे मुझे बहुत सताते आए हैं, इसे इस्राएल अब भी कह सकता है। बाल्यकाल से ही वे मुझे बहुत सताते आए हैं, परन्तु वे मुझ पर प्रबल नहीं हो सके।”*
यिशाई जब अपने पोते दाऊद को यह भजन सुनाता, तो वह उसे समझाता कि कैसे इस्राएल का इतिहास उत्पीड़न और परमेश्वर की सुरक्षा की गाथाओं से भरा है। वह बताता कि मिस्र की दासता से लेकर बाबुल की बंधुआई तक, इस्राएल ने अनेक कठिनाइयाँ झेली थीं, परन्तु परमेश्वर ने उन्हें कभी नहीं छोड़ा।
एक दिन, गाँव पर एक क्रूर सामंत का आक्रमण हुआ। उसने लोगों के खेत जला दिए, घरों को लूट लिया, और कई लोगों को बंदी बना लिया। यिशाई और उसका परिवार भी इस विपत्ति से बच नहीं पाया। उन्हें भी कष्ट सहने पड़े। परन्तु यिशाई ने हिम्मत नहीं हारी। वह प्रतिदिन भजन 129 का पाठ करता और परमेश्वर से प्रार्थना करता—
*”हे यहोवा, तू धर्मी है। दुष्टों के बन्धनों को तूने तोड़ दिया है।”*
कुछ समय बाद, परमेश्वर ने उसकी सुन ली। एक रात, जब सामंत और उसके सैनिक मदिरापान करके गहरी नींद में सो रहे थे, तब यिशाई और गाँव के अन्य लोगों ने एक योजना बनाई। वे चुपचाप अपने बंधुओं को छुड़ा लाए और दूर एक सुरक्षित स्थान पर चले गए।
भजन 129 की अगली पंक्तियाँ सच साबित हुईं—
*”जोतने वालों ने मेरी पीठ पर जोतने की लकीरें बना दीं, परन्तु यहोवा ने दुष्टों के बन्धनों को तोड़ दिया है।”*
यिशाई ने अपने पोते दाऊद से कहा, “देखो, बेटा, परमेश्वर ने हमें फिर से बचा लिया है। जैसे हमारे पूर्वजों को उनके शत्रुओं से छुटकारा मिला, वैसे ही आज हमें भी मिला है। दुष्ट हमें नष्ट नहीं कर सकते, क्योंकि यहोवा हमारे साथ है।”
कुछ वर्षों बाद, जब दाऊद बड़ा हुआ, तो उसने अपने दादा की शिक्षाओं को याद रखा। वह जानता था कि परमेश्वर की सच्चाई और न्याय सदैव विजयी होते हैं। भजन 129 की अंतिम पंक्तियाँ उसके हृदय में गूँजती रहतीं—
*”जो तुझ पर शाप देता है, वह शापित हो, और जो तुझ से प्रसन्न है, वह धन्य हो।”*
इस प्रकार, यिशाई और उसके परिवार ने अपने विश्वास के द्वारा उत्पीड़न से विजय प्राप्त की, और परमेश्वर की महिमा सदैव उनके जीवन में प्रकट होती रही।
**अंत।**