**भजन संहिता 97 पर आधारित कहानी: प्रभु का राज्य और उसकी महिमा**
एक समय की बात है, जब धरती के कोने-कोने में अंधकार छाया हुआ था। लोग मूर्तियों की पूजा करते थे और झूठे देवताओं के आगे झुकते थे। उनके हृदय अहंकार, लालच और पाप से भरे हुए थे। परन्तु उस समय, स्वर्ग के सिंहासन पर सर्वशक्तिमान प्रभु विराजमान थे, जिनकी महिमा और न्याय सदा बना रहता है।
एक दिन, प्रभु ने अपने स्वर्गदूतों को बुलाया और कहा, “मैं पृथ्वी पर अपना न्याय और राज्य स्थापित करने जा रहा हूँ। मेरी प्रजा को मेरी महिमा का ज्ञान हो, और वे जानें कि मैं ही सच्चा परमेश्वर हूँ।”
इतने में ही, स्वर्ग के आकाश में बादल छा गए और बिजली चमकने लगी। प्रभु की उपस्थिति आग के समान प्रकट हुई, जिसने सारी पृथ्वी को प्रकाशित कर दिया। पहाड़ उसके सामने पिघलने लगे, मानो मोम हो। समुद्र गरज उठा, और आकाश में गड़गड़ाहट हुई। सारी सृष्टि काँप उठी, क्योंकि प्रभु का भयानक तेज सब पर प्रकट हो रहा था।
जो लोग मूर्तियों की पूजा करते थे, वे शर्मिंदा हो गए। उनके बनाए हुए देवता, जो न तो बोल सकते थे, न सुन सकते थे, धूल में मिल गए। प्रभु ने उन्हें दिखा दिया कि उनके झूठे देवता कुछ नहीं कर सकते। केवल वही सच्चा परमेश्वर है, जो आकाश और पृथ्वी का निर्माता है।
धरती के सभी लोगों ने प्रभु की महिमा देखी। जो धर्मी थे, वे आनन्दित हुए और उसके न्याय में मग्न हो गए। उनके हृदय में खुशी की लहर दौड़ गई, क्योंकि प्रभु ने उन्हें बचाया था। उसकी कृपा उन पर बरस रही थी, और वे जान गए कि उसके राज्य में कोई भी उन्हें हानि नहीं पहुँचा सकता।
प्रभु ने अपने संतों से कहा, “बुराई से घृणा करो और धार्मिकता से प्रेम रखो। मैं तुम्हारा रक्षक हूँ और तुम्हें दुष्टों के हाथ से बचाऊँगा।” उसने अपने स्वर्गदूतों को आज्ञा दी कि वे धर्मियों की रक्षा करें और उन्हें सभी संकटों से बचाएँ।
जो लोग प्रभु के नाम पर गर्व करते थे और उसकी आज्ञाओं का पालन करते थे, उन पर प्रकाश बरसा। उनके जीवन में आशीषें उमड़ पड़ीं, और वे सदा के लिए प्रभु की स्तुति करने लगे। परन्तु जो दुष्ट और अहंकारी थे, वे प्रभु के क्रोध की आग में झुलस गए। उनका अंत अंधकारमय हुआ, क्योंकि उन्होंने सत्य को ठुकरा दिया था।
इस प्रकार, प्रभु का राज्य स्थापित हुआ। उसकी महिमा सारी पृथ्वी पर फैल गई, और सभी राष्ट्रों ने उसकी स्तुति की। संतों ने गाना गाया, “हे प्रभु, तू ही सर्वोच्च है! तेरा न्याय सच्चा है, और तेरी करुणा अनन्तकाल तक बनी रहेगी!”
और इस तरह, भजन संहिता 97 का वचन पूरा हुआ: **”प्रभु राज्य करता है, पृथ्वी मग्न हो, द्वीप आनन्दित हों! बादल और अन्धकार उसके चारों ओर हैं, धर्म और न्याय उसके सिंहासन की नींव हैं।”**
प्रभु की जय हो!