**होशे की कहानी: परमेश्वर का विश्वासघाती लोगों के प्रति प्रेम**
प्राचीन समय में, जब इस्राएल के लोग परमेश्वर की आज्ञाओं को भूलकर मूर्तियों की पूजा करने लगे थे, तब परमेश्वर ने एक भविष्यद्वक्ता को चुना, जिसका नाम था होशे। होशे यहोवा के एकनिष्ठ सेवक थे, जो उसकी आवाज़ सुनकर लोगों तक उसका संदेश पहुँचाते थे। परन्तु इस बार, परमेश्वर ने होशे के जीवन को ही एक जीवित दृष्टान्त बना दिया, ताकि इस्राएल को समझाया जा सके कि उनका विश्वासघात कितना गहरा घाव कर रहा है।
एक दिन, जब होशे प्रार्थना में लीन थे, तब यहोवा का वचन उनके पास आया: **”जा, तू एक व्यभिचारिणी स्त्री से विवाह कर और उससे व्यभिचार के सन्तान उत्पन्न कर, क्योंकि यह देश यहोवा का त्यागकर व्यभिचार कर रहा है।”**
होशे के हृदय में तूफान उठ खड़ा हुआ। एक पवित्र परमेश्वर का भविष्यद्वक्ता होने के नाते, उसके लिए एक अनैतिक स्त्री से विवाह करना कितना कठिन था! परन्तु उसने परमेश्वर की आज्ञा को सर्वोपरि माना और गोमर नामक एक स्त्री से विवाह किया, जो कि व्यभिचार में लिप्त थी।
कुछ समय बाद, गोमर ने एक पुत्र को जन्म दिया। तब यहोवा ने होशे से कहा: **”इसका नाम यिज्रेल रख, क्योंकि थोड़े ही दिनों में मैं यिज्रेल के लहू का बदला येहू के घराने से लूँगा और इस्राएल के राज्य का अन्त कर दूँगा।”** यिज्रेल नाम का अर्थ था “परमेश्वर बोयेगा,” जो इस्राएल के न्याय और पुनर्स्थापना दोनों की ओर संकेत करता था।
कुछ और समय बीतने पर, गोमर ने एक पुत्री को जन्म दिया। परमेश्वर ने होशे से कहा: **”इसका नाम लो-रूहामा रख, क्योंकि मैं इस्राएल के घराने पर फिर दया न करूँगा, उन्हें कभी क्षमा नहीं करूँगा।”** लो-रूहामा का अर्थ था “जिस पर दया नहीं की गई।” यह नाम इस्राएल के विद्रोह के कारण परमेश्वर के न्याय को दर्शाता था।
फिर गोमर ने एक और पुत्र को जन्म दिया। परमेश्वर ने आज्ञा दी: **”इसका नाम लो-अम्मी रख, क्योंकि तुम मेरी प्रजा नहीं हो और मैं तुम्हारा परमेश्वर नहीं हूँ।”** लो-अम्मी का अर्थ था “मेरी प्रजा नहीं।” यह शब्द इस्राएल के साथ परमेश्वर के वाचा के टूटने का प्रतीक था।
होशे का हृदय दुख से भर गया। उसने देखा कि कैसे उसका अपना परिवार इस्राएल के पाप और परमेश्वर के न्याय का प्रतीक बन गया था। परन्तु फिर भी, परमेश्वर की कृपा का संदेश समाप्त नहीं हुआ था। यहोवा ने होशे से कहा:
**”किन्तु एक दिन, इस्राएल की सन्तान बालू के किनकों के समान अनगिनत होगी, और मैं उनसे फिर कहूँगा: ‘तुम मेरी प्रजा हो,’ और वे उत्तर देंगे: ‘तू हमारा परमेश्वर है!'”**
इस प्रकार, होशे के जीवन के माध्यम से, परमेश्वर ने इस्राएल को दिखाया कि उनका पाप कितना गंभीर था, परन्तु उसकी दया और प्रेम उसके न्याय से भी बड़ा था। होशे ने गोमर से प्रेम किया, जैसे परमेश्वर ने विश्वासघाती इस्राएल से प्रेम किया था। और जिस प्रकार होशे को आज्ञा दी गई थी कि वह फिर से अपनी पत्नी को ग्रहण करे, वैसे ही परमेश्वर एक दिन अपने लोगों को पुनः अपनाएगा।
इस कहानी में हम देखते हैं कि परमेश्वर का प्रेम कितना अटल है। वह हमारे पापों से दुखी होता है, परन्तु फिर भी हमें छोड़ता नहीं। जैसे होशे ने गोमर से प्रेम किया, वैसे ही यहोवा हमसे प्रेम करता है और चाहता है कि हम उसकी ओर लौटें।