पवित्र बाइबल

कांसे का सांप और परमेश्वर की कृपा

**कहानी: कांसे का सांप और परमेश्वर की कृपा**

इस्राएलियों का एक बड़ा समूह मूसा के नेतृत्व में मरुभूमि में भटक रहा था। वर्षों की यात्रा ने उनके धैर्य को तोड़ दिया था। वे थके हुए, भूखे और प्यासे थे, और उनके मन में शिकायतें भर गईं। उन्होंने अपने पूर्वजों की भूमि मिस्र को याद किया, जहाँ उनके पास भोजन और पानी की कोई कमी नहीं थी। अब, इस निर्जन मरुस्थल में, उनकी आत्माएँ विद्रोह से भर उठीं।

एक दिन, लोगों ने मूसा और परमेश्वर के विरुद्ध बड़बड़ाना शुरू कर दिया। “हमें इस बेकार रोटी से तो मृत्यु ही अच्छी!” वे चिल्लाए, “परमेश्वर ने हमें इस मरुभूमि में लाकर मार डालने का षड्यंत्र रचा है! यहाँ न तो भोजन है और न ही पानी, और इस तुच्छ मन्ना से हमारी आत्मा घृणा करती है!”

परमेश्वर ने उनकी इस अविश्वासपूर्ण शिकायत को सुना और उनके पाप के प्रति क्रोधित हुआ। उसने उनके बीच विषैले सांपों को भेज दिया, जो लोगों को काटने लगे। अनेक लोग मरने लगे। जब लोगों ने देखा कि उनके पापों का दंड मिल रहा है, तो वे मूसा के पास पश्चाताप करते हुए आए।

“हमने पाप किया है!” वे रोते हुए बोले, “हमने परमेश्वर और तुम्हारे विरुद्ध बड़बड़ाया। कृपया परमेश्वर से प्रार्थना करो कि वह हमसे ये सांप हटा ले!”

मूसा ने लोगों के लिए परमेश्वर से प्रार्थना की। तब परमेश्वर ने मूसा को एक उपाय बताया: “एक कांसे का सांप बनाकर उसे एक डंडे पर लगा दो। जो कोई भी काटा जाएगा और उस सांप को देखेगा, वह जीवित रहेगा।”

मूसा ने वैसा ही किया। उसने कांसे का एक सांप बनाया और उसे एक ऊँचे डंडे पर चढ़ा दिया। अब, जब भी किसी को सांप काटता, वह डंडे पर लटके कांसे के सांप की ओर देखता और तुरंत ठीक हो जाता। यह एक चमत्कार था—एक साधारण दृष्टि के माध्यम से परमेश्वर की कृपा प्रकट हो रही थी।

इस घटना ने लोगों को सिखाया कि परमेश्वर की आज्ञा मानने और उस पर विश्वास रखने में ही उद्धार है। उन्होंने अपनी शिकायतों को त्याग दिया और परमेश्वर की महानता को स्वीकार किया। कांसे का सांप उनके लिए एक चिन्ह बन गया—न केवल उनके पाप का, बल्कि परमेश्वर की दया और उद्धार का भी।

**सीख:**
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि परमेश्वर पाप से घृणा करता है, लेकिन वह पश्चाताप करने वालों पर दया भी करता है। जिस प्रकार कांसे के सांप को देखने से इस्राएली बच गए, उसी प्रकार आज हमें भी परमेश्वर के प्रावधान पर विश्वास करना चाहिए। यीशु मसीह ने भी इस घटना की ओर संकेत करते हुए कहा कि जैसे मूसा ने सांप को डंडे पर ऊँचा किया, वैसे ही मनुष्य का पुत्र भी ऊँचा किया जाएगा, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह अनंत जीवन पाए (यूहन्ना 3:14-15)।

इस प्रकार, यह कहानी न केवल इस्राएलियों के इतिहास का हिस्सा है, बल्कि हमारे लिए भी एक आध्यात्मिक सबक है—विश्वास और आज्ञाकारिता के माध्यम से उद्धार पाने का।

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