उदारता से मिलती है आशीष (Note: The title is within 100 characters, symbols/asterisks/quotes removed, and captures the essence of the story.)
**2 कुरिन्थियों 9 पर आधारित बाइबल कहानी**
**शीर्षक: “उदारता का आशीष”**
एक समय की बात है, कुरिन्थ की कलीसिया के विश्वासियों ने यरूशलेम में रहने वाले गरीब मसीही भाइयों के लिए एक विशेष दान इकट्ठा करने का निर्णय लिया। प्रेरित पौलुस ने उन्हें इस सेवकाई के बारे में बताया था और उनकी उदारता की बहुत प्रशंसा की थी। परन्तु समय बीतने के साथ, कुछ लोगों का उत्साह कम होने लगा। पौलुस ने तीतुस और कुछ अन्य भाइयों को कुरिन्थ भेजा, ताकि वे इस दान को पूरा करने में उनकी सहायता कर सकें।
पौलुस ने कुरिन्थियों को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने उदारता के महत्व को समझाया। उन्होंने लिखा, **”हे भाइयों, तुम्हारी उदारता के विषय में मैं मकिदुनिया की कलीसियाओं को बताता हूँ, और इससे वे भी प्रोत्साहित होते हैं। परन्तु मैं चाहता हूँ कि तुम्हारा दान तैयार हो, ताकि यह मजबूरी में न हो, बल्कि तुम्हारी इच्छा से हो।”**
उस पत्र में पौलुस ने एक सुंदर उदाहरण दिया: **”जो कम बोता है, वह कम काटता है, और जो बहुत बोता है, वह बहुत काटता है। हर एक व्यक्ति जैसा मन में ठाने, वैसा ही दान दे; न कुढ़-कुढ़कर, न दबाव से, क्योंकि परमेश्वर हर्ष से देने वाले से प्रेम रखता है।”**
कुरिन्थ के विश्वासियों ने पौलुस के शब्दों को गंभीरता से लिया। उन्होंने अपने हृदयों की जाँच की और देखा कि कहीं उनकी उदारता में कोई कमी तो नहीं है। एक स्त्री, जिसका नाम मरियम था, ने अपने परिवार के साथ बैठकर विचार किया और कहा, **”हमारे पास जो कुछ भी है, वह परमेश्वर का दिया हुआ है। अगर वह हमें आशीष देता है, तो हमें दूसरों के साथ बाँटने में संकोच नहीं करना चाहिए।”** उसने अपने कीमती गहनों में से कुछ बेचकर दान में दिए।
एक युवक, स्तेफनास, जो एक कुम्हार था, ने अपनी मेहनत से बनाए हुए बर्तनों को बाजार में बेचा और उस धन को दान में दिया। उसने कहा, **”मेरे हाथों की मेहनत से जो कुछ मिला है, वह प्रभु की महिमा के लिए है।”**
जब पौलुस को इस बात का पता चला, तो वे बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कुरिन्थियों को फिर लिखा: **”परमेश्वर उस व्यक्ति को और अधिक देता है, जो उदारता से बाँटता है। वह तुम्हें हर प्रकार की भलाई के लिए पर्याप्त बनाएगा, ताकि तुम हर अच्छे काम में भरपूर रहो। जैसा लिखा है: ‘उसने दीन-हीनों को दान दिया, उसकी धार्मिकता सदा बनी रहती है।'”**
कुरिन्थियों की उदारता ने न केवल यरूशलेम के गरीबों की सहायता की, बल्कि अन्य कलीसियाओं के लिए भी एक मिसाल कायम की। मकिदुनिया और अखाइया के लोगों ने भी इससे प्रेरणा ली और उन्होंने भी अपने साधनों के अनुसार दान देना शुरू किया।
पौलुस ने अंत में लिखा: **”जो बीज बोने वाले को बीज देता है और भोजन देता है, वही तुम्हारे लिए बीज बढ़ाएगा और तुम्हारी धार्मिकता के फलों को बढ़ाएगा। तुम हर बात में सम्पन्न बनाए जाओगे, ताकि तुम हर उदार काम में भाग ले सको, जिससे परमेश्वर की महिमा हो।”**
इस प्रकार, कुरिन्थ की कलीसिया ने सीखा कि उदारता केवल धन देने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हृदय की एक अवस्था है जो परमेश्वर के प्रेम और विश्वास से उपजती है। उन्होंने देखा कि जब वे दूसरों के लिए देते हैं, तो परमेश्वर उन्हें और अधिक आशीष देता है—न केवल भौतिक रूप से, बल्कि आत्मिक आनन्द और संतुष्टि से भी।
**समाप्त।**