पवित्र बाइबल

2 थिस्सलुनीकियों 3: विश्वास और परिश्रम की शिक्षा

**2 थिस्सलुनीकियों 3 की कहानी: विश्वास और परिश्रम**

उन दिनों थिस्सलुनीका की कलीसिया में कुछ लोगों ने यह सोचना शुरू कर दिया था कि प्रभु यीशु मसीह का दूसरा आगमन बहुत निकट है, इसलिए उन्होंने अपना सारा काम-धंधा छोड़ दिया और केवल प्रभु के आने की प्रतीक्षा करने लगे। वे दिन-रात बैठे रहते, दूसरों के घरों में जाकर खाते-पीते और अपने जीवन का कोई उद्देश्य नहीं रखते थे। उनकी इस आदत ने कलीसिया में अशांति फैला दी थी।

पौलुस, सीलास और तीमुथियुस ने जब यह सुना, तो उन्होंने थिस्सलुनीकियों के नाम एक और पत्र लिखने का निश्चय किया। पौलुस ने कलम उठाई और प्रेम तथा आत्मिक अधिकार के साथ लिखना शुरू किया:

**”प्रिय भाइयों और बहनों, हम तुम्हारे लिए प्रार्थना करते हैं कि प्रभु का वचन तुम्हारे हृदय में बढ़ता जाए और तुम उसकी महिमा के लिए जीवन जीओ। हमें तुम पर गर्व है कि तुम विश्वास में दृढ़ हो, परंतु हमें यह समाचार मिला है कि कुछ लोग व्यर्थ की बातों में समय बिता रहे हैं और दूसरों पर बोझ बन गए हैं।”**

पौलुस ने अपने शब्दों में दृढ़ता भरते हुए आगे लिखा, **”याद रखो, हमने तुम्हारे बीच रहते हुए कभी निष्क्रिय जीवन नहीं बिताया। हमने दिन-रात परिश्रम किया ताकि किसी पर बोझ न बनें। हमें यह अधिकार था कि तुमसे सहायता लें, पर हमने ऐसा नहीं किया, बल्कि यह उदाहरण दिया कि परिश्रम करना हर मसीही का कर्तव्य है।”**

उसने स्पष्ट किया, **”यदि कोई काम करने को तैयार नहीं है, तो उसे खाने का भी अधिकार नहीं। हम सुनते हैं कि कुछ लोग व्यस्त तो हैं, पर दूसरों के काम में हस्तक्षेप करने में। ऐसे लोगों से सावधान रहो और उन्हें समझाओ कि शांतिपूर्वक काम करके अपनी रोटी कमाएँ।”**

पौलुस ने पत्र के अंत में प्रोत्साहन दिया, **”भाइयों, भले कार्यों में थकना मत। प्रभु यीशु स्वयं तुम्हारे साथ है और तुम्हें शक्ति देगा। हर उस व्यक्ति से सावधान रहो जो इस शिक्षा को नहीं मानता। परंतु उसे शत्रु की तरह न समझो, बल्कि भाई की तरह समझाकर सही मार्ग दिखाओ।”**

जब यह पत्र थिस्सलुनीका पहुँचा, तो कलीसिया के बुजुर्गों ने इसे सभी के सामने पढ़ा। कुछ लोगों के चेहरे शर्म से झुक गए, जबकि अन्य प्रोत्साहित हुए। धीरे-धीरे, जो लोग आलसी हो गए थे, उन्होंने काम करना शुरू किया। वे समझ गए कि विश्वास केवल प्रतीक्षा करने का नाम नहीं, बल्कि परिश्रम और ईमानदारी से जीवन जीने का भी है।

कलीसिया में फिर से शांति और उत्साह का वातावरण बन गया। सभी ने पौलुस की शिक्षा को गंभीरता से लिया और प्रभु की सेवा में जुट गए, यह जानते हुए कि परिश्रम भी परमेश्वर की आराधना का एक तरीका है।

**”प्रभु शांति का स्रोत है, वह तुम्हें हर समय और हर तरह से शांति दे। प्रभु तुम सभी के साथ रहे।”** (2 थिस्सलुनीकियों 3:16)

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