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एलीपज का उपदेश और अय्यूब की निर्दोषता की कहानी

**कहानी: एलीपज का उपदेश और अय्यूब की निर्दोषता**

एक समय की बात है, जब अय्यूब गहरे कष्ट में थे। उनके सब बच्चे मर चुके थे, उनकी संपत्ति नष्ट हो गई थी, और उनका शरीर दर्द से भरा हुआ था। फिर भी, अय्यूब ने परमेश्वर के प्रति अपनी निष्ठा नहीं छोड़ी। उनके तीन मित्र—एलीपज, बिलदद और सोफर—उनके दुख में सांत्वना देने आए, लेकिन धीरे-धीरे उनका सांत्वना उलाहना बन गया।

एलीपज, जो तेमानी था और बुद्धिमान माना जाता था, ने अय्यूब से कहा, **”क्या परमेश्वर के साम्हने कोई मनुष्य धर्मी ठहर सकता है? क्या वह जो सर्वशक्तिमान है, उसके कामों में कोई दोष निकाल सकता है?”**

उसने अपनी बात जारी रखी, **”हे अय्यूब, तू अपने ही पापों के कारण दंड भोग रहा है। क्या तू सचमुच सोचता है कि परमेश्वर निर्दोष को दंड देगा? नहीं! उसकी दृष्टि में कोई भी पूर्ण नहीं है।”**

एलीपज ने अय्यूब पर आरोप लगाते हुए कहा, **”तूने निर्धनों का शोषण किया, भूखों को भोजन नहीं दिया, विधवाओं को खाली हाथ लौटाया, और अनाथों की सहायता नहीं की। इसीलिए तेरे चारों ओर संकट छा गया है। परमेश्वर न्यायी है, वह बेकसूर को नहीं सताता।”**

अय्यूब ने एलीपज की बातें सुनीं, लेकिन उनके हृदय में शांति नहीं थी। वह जानते थे कि उन्होंने कभी जानबूझकर पाप नहीं किया। उन्होंने सदैव परमेश्वर का भय माना और दीन-दुखियों की सहायता की थी। फिर भी, उनके मित्र उन्हें दोषी ठहरा रहे थे।

एलीपज ने आगे कहा, **”यदि तू सचमुच पश्चाताप करे और परमेश्वर के पास लौटे, तो वह तेरी सुनेंगे। उसकी आज्ञाओं को मान, उसके वचन को अपने हृदय में रख, तब तू फिर से समृद्ध होगा। परमेश्वर निर्दोषों को उद्धार देता है, और जो शुद्ध हाथों से उसकी उपासना करते हैं, वे उसकी कृपा पाते हैं।”**

अय्यूब ने धैर्य से सुना, लेकिन उनका विश्वास अडिग था। वह जानते थे कि मनुष्य की समझ सीमित है, और परमेश्वर के मार्ग अगम्य हैं। उन्होंने कहा, **”मैं निर्दोष हूँ, और मैं परमेश्वर से न्याय की आशा रखता हूँ। यदि वह मुझे सुनेंगे, तो मैं उनके सामने अपनी बात रखूंगा।”**

अंत में, परमेश्वर ने अय्यूब के विश्वास को देखा और उन्हें उनके धैर्य के लिए आशीर्वाद दिया। एलीपज का उपदेश, हालाँकि धार्मिकता से भरा था, परन्तु वह अय्यूब की परीक्षा के सच्चे कारण को नहीं समझ पाया। परमेश्वर ने अय्यूब की निर्दोषता को स्वीकार किया और उन्हें उनके दुख के बाद अधिक आशीषें दीं।

**सीख:**
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य का न्याय अधूरा होता है। परमेश्वर के मार्ग हमारी समझ से परे हैं, और वही सच्चा न्यायी है। अय्यूब की तरह, हमें भी विपत्ति में धैर्य रखना चाहिए और परमेश्वर पर अटूट विश्वास बनाए रखना चाहिए।

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