पवित्र बाइबल

विश्वास की परीक्षा और परमेश्वर की स्तुति

**भजन संहिता 44 पर आधारित एक विस्तृत कहानी**

**शीर्षक: “विश्वास की परीक्षा और परमेश्वर की स्तुति”**

प्राचीन काल में, इस्राएल के लोगों के हृदय में परमेश्वर के प्रति गहरी श्रद्धा और विश्वास था। वे अपने पूर्वजों की कहानियाँ सुनकर बड़े हुए थे—कैसे परमेश्वर ने उनके लिए महान कार्य किए थे, कैसे उन्हें शत्रुओं से छुड़ाया था, और कैसे उन्हें विजय दिलाई थी। भजन संहिता 44 के शब्दों की तरह, वे गाते थे:

*”हे परमेश्वर, हमने अपने कानों से सुना है, हमारे पुरखाओं ने हमें बताया है कि तू ने उनके दिनों में, पुराने समय में क्या-क्या काम किए।”*

उन दिनों में, राजा दाऊद के वंशजों में से एक धर्मी राजा हुआ, जिसका नाम था योशिय्याह। वह परमेश्वर की व्यवस्था से प्रेम करता था और उसके मार्ग पर चलता था। उसके शासनकाल में, इस्राएल ने शांति और समृद्धि का अनुभव किया, क्योंकि परमेश्वर उनके साथ था। लोग प्रतिदिन मिलकर परमेश्वर की स्तुति करते, उसके अनुग्रह के लिए धन्यवाद देते।

लेकिन समय बदला। योशिय्याह के बाद, उसके पुत्रों ने परमेश्वर की आज्ञाओं को त्याग दिया और मूर्तिपूजा में लिप्त हो गए। परमेश्वर का क्रोध भड़का, और शत्रु राष्ट्रों ने इस्राएल पर आक्रमण कर दिया। अश्शूर और बाबुल की सेनाओं ने उनके नगरों को घेर लिया, उनके मंदिरों को नष्ट कर दिया, और बहुतों को बंदी बना लिया। इस्राएल के लोग दुखी होकर रोने लगे। वे भजन संहिता 44 के शब्दों को दोहराते:

*”परन्तु तू ने हमें तोड़ दिया है, तू हमें भेड़ों की नाईं मार डालता है, और जाति-जाति में हमें बिखरा देता है।”*

उस समय, एक युवक था जिसका नाम एलीआजर था। वह एक लेवीय परिवार से था और परमेश्वर की सेवा में समर्पित था। जब उसने देखा कि उसका देश पीड़ा में है, तो उसका हृदय विचलित हो उठा। वह मंदिर के खंडहरों में जाकर प्रार्थना करने लगा:

*”हे प्रभु, हमें त्याग क्यों दिया गया है? क्या हमारे पाप इतने बड़े हैं कि तू हमसे मुख मोड़ ले? परन्तु हमने तो तेरा नाम नहीं छोड़ा, हमने तेरी वाचा को नहीं तोड़ा।”*

एक रात, जब एलीआजर गहरी प्रार्थना में लीन था, तो परमेश्वर ने उसके हृदय में एक आवाज़ दी: *”मेरे लोगों, मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुम्हारी परीक्षा तुम्हारे विश्वास को शुद्ध करेगी। मैं तुम्हें फिर से उठाऊँगा।”*

यह सुनकर एलीआजर के मन में नई आशा जागी। उसने लोगों को इकट्ठा किया और उन्हें समझाया: *”हमारे पूर्वजों ने हमें बताया था कि परमेश्वर विश्वासयोग्य है। वह हमें कभी नहीं छोड़ेगा। चाहे हम कितनी भी कठिन परिस्थितियों में हों, उसकी स्तुति करते रहें!”*

धीरे-धीरे, लोगों ने फिर से परमेश्वर की ओर मुड़ना शुरू किया। उन्होंने मूर्तियों को तोड़ दिया और सच्चे परमेश्वर की आराधना की। और तब, परमेश्वर ने उन पर दया की। उसने उन्हें बंधुआई से छुड़ाया और उन्हें फिर से अपनी भूमि पर बसने दिया।

भजन संहिता 44 का अंतिम भाग सच हो गया:

*”उठ! हमारी सहायता कर, और हमें तेरे प्रेम के कारण छुड़ा ले!”*

एलीआजर और उसके साथियों ने गाते हुए परमेश्वर की महिमा की: *”तू हमारा राजा है, हे परमेश्वर! तू ही इस्राएल की विजय दिलाता है!”*

और इस प्रकार, परमेश्वर ने अपने लोगों को सिखाया कि विपत्ति के समय भी उस पर भरोसा रखना चाहिए, क्योंकि वह सदैव उनके साथ है।

**समाप्त।**

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