पवित्र बाइबल

इस्राएल का पतन और अश्शूरियों की बंधुआई

**2 राजाओं 17 की कहानी: इस्राएल का पतन और अश्शूरियों की बंधुआई**

उत्तरी इस्राएल के राज्य में अंधकार छा रहा था। समय के साथ, राजाओं ने परमेश्वर की आज्ञाओं को तुच्छ जानकर मूर्तिपूजा और अशुद्ध कर्मों को अपना लिया था। होशे, इस्राएल का अंतिम राजा, नौ साल तक शासन किया, लेकिन उसके दिन बुराई और अवज्ञा से भरे हुए थे। वह यहोवा की दृष्टि में वह सब करता रहा जो बुरा था। उसने सोने के बछड़ों की पूजा जारी रखी, जिसकी शुरुआत यरोबाम ने की थी, और असीरिया के राजा को कर देना बंद कर दिया।

इस्राएल की जिद और अवज्ञा ने परमेश्वर का धैर्य समाप्त कर दिया। यहोवा ने अपने भविष्यवक्ताओं के माध्यम से बार-बार चेतावनी दी थी: “मेरी आज्ञाओं का पालन करो और मूर्तियों की पूजा छोड़ दो, नहीं तो तुम्हें दण्ड मिलेगा।” लेकिन इस्राएल ने नहीं सुना। वे झूठे देवताओं के पीछे भागते रहे, न्याय को ताक पर रख दिया, और अनाथों-विधवाओं का शोषण किया।

अंततः, परमेश्वर का न्याय आया। असीरिया का शक्तिशाली राजा शल्मनेसर ने इस्राएल पर आक्रमण किया। उसकी विशाल सेना ने शोमरोन को घेर लिया, और तीन वर्षों के घेराव के बाद, नगर गिर गया। होशे को बंदी बना लिया गया, और असीरियाओं ने इस्राएल के लोगों को बंधुआ बनाकर अपने देश ले जाना शुरू कर दिया। वे हलाख और हाबोर नदी के किनारे, तथा मादी के नगरों में बसा दिए गए। इस्राएल का राज्य समाप्त हो गया, जैसा कि परमेश्वर ने चेतावनी दी थी।

**असीरियाओं का आक्रमण और इस्राएल का विस्थापन**

असीरियाओं ने न केवल इस्राएल के लोगों को बंधक बनाया, बल्कि वे अन्य जातियों के लोगों को इस्राएल की भूमि में लाकर बसा दिए। ये नए लोग समरिया के नगरों में रहने लगे, लेकिन वे यहोवा के मार्ग को नहीं जानते थे। इसलिए, परमेश्वर ने उन पर सिंहों को छोड़ दिया, जो उन्हें मारने लगे। असीरिया के राजा ने सुना कि यह इसलिए हो रहा है क्योंकि नए निवासी इस भूमि के परमेश्वर की आराधना नहीं करते, तो उसने एक इस्राएली याजक को वापस भेजा ताकि वह उन्हें यहोवा की पूजा का तरीका सिखाए।

याजक ने बेत-एल में रहकर उन्हें परमेश्वर के नियम बताए, लेकिन वे लोग अपनी मूर्तिपूजा भी नहीं छोड़ते थे। वे यहोवा की आराधना करते, पर साथ ही अपने-अपने देवताओं की मूर्तियों की भी पूजा करते रहे। उन्होंने ऊंचे स्थानों पर मंदिर बनाए और मूर्तियों की पूजा करते रहे। यह मिश्रित धर्म बना रहा, और इस्राएल की भूमि में परमेश्वर के प्रति अवज्ञा की परंपरा जारी रही।

**परमेश्वर की चेतावनी और सबक**

इस पूरी घटना ने एक गहरा सबक दिया: परमेश्वर अपने वचन में स्थिर रहता है। उसने इस्राएल से वाचा बाँधी थी, लेकिन जब उन्होंने उसका त्याग कर दिया, तो उन्हें दण्ड मिला। यहूदा के लोगों को भी चेतावनी दी गई कि वे इस्राएल के मार्ग पर न चलें, नहीं तो उनका भी यही हश्र होगा। परमेश्वर दयालु है, लेकिन वह पवित्र भी है और अवज्ञा को सहन नहीं करेगा।

इस प्रकार, इस्राएल का राज्य समाप्त हो गया, और उसकी जगह विदेशी लोगों ने ले ली, जो न तो पूरी तरह से यहोवा के थे और न ही पूरी तरह से मूर्तिपूजक। यह एक दुखद अध्याय था, जो हमें सिखाता है कि परमेश्वर की आज्ञाकारिता ही सच्ची जीवन की राह है।

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