पवित्र बाइबल

भजन 108: दाऊद का विश्वास और विजय का गीत

**भजन संहिता 108 की कहानी: विजय और विश्वास**

एक समय की बात है, जब राजा दाऊद अपने महल की छत पर खड़ा होकर दूर तक फैले हुए यरूशलेम के दृश्य को निहार रहा था। आकाश में सुनहरी किरणें फैल रही थीं, और सुबह की शीतल हवा उसके चेहरे को छू रही थी। उसका हृदय परमेश्वर के प्रति आभार और विजय के गीतों से भरा हुआ था। वह जानता था कि उसकी सारी जीतें, सारी सफलताएँ केवल परमेश्वर की कृपा से ही संभव हुई हैं। उसने अपने वीणा को उठाया और मधुर स्वर में गाने लगा:

**”हे परमेश्वर, मेरा हृदय दृढ़ है; मैं गीत गाऊँगा और स्तुति करूँगा! हे मेरी आत्मा, जाग उठ! वीणा और सारंगी, मैं भोर को जगाऊँगा!”**

दाऊद के शब्दों में विश्वास और उत्साह था। वह जानता था कि परमेश्वर उसके साथ है और उसकी स्तुति केवल धरती तक ही सीमित नहीं है, बल्कि स्वर्ग के सिंहासन तक पहुँचती है। उसने अपनी आँखें आकाश की ओर उठाईं और प्रार्थना की:

**”हे यहोवा, मैं जन-जन में तेरा धन्यवाद करूँगा; मैं देश-देश में तेरी स्तुति गाऊँगा! क्योंकि तेरी करुणा महान है, आकाश से भी ऊँची, और तेरी सच्चाई बादलों तक पहुँचती है!”**

दाऊद ने अपनी वीणा पर और भी जोर से प्रेमभरे स्वर निकाले। उसे याद आया कि कैसे परमेश्वर ने उसे अनेक संकटों से बचाया था—शाऊल के हाथों से, फिलिस्तीनियों के हमलों से, और अपने ही पुत्र अबशालोम के विद्रोह से। हर बार, परमेश्वर ने उसकी सुन ली थी। उसकी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया था।

तभी उसके मन में एक नई ललक जागी। वह जानता था कि इज़राइल के दुश्मन अभी भी मौजूद हैं। एदोम, मोआब, और फिलिस्तीन जैसे राष्ट्र उनके विरुद्ध षड्यंत्र रचते रहते थे। लेकिन दाऊद का विश्वास अडिग था। उसने परमेश्वर से प्रार्थना की:

**”हे परमेश्वर, अपनी पवित्रता में हमें उत्तर दो! हमें विजय दिलाओ, ताकि तेरे प्रिय लोग बचाए जाएँ। अपने दाहिने हाथ से हमें सहारा दो और हमें सुनो!”**

दाऊद को याद आया कि कैसे परमेश्वर ने अतीत में इज़राइल को विजय दी थी। उसने सीखा था कि मानवीय शक्ति और हथियारों से बड़ी परमेश्वर की सामर्थ्य है। उसने घोषणा की:

**”परमेश्वर ने अपने पवित्र स्थान से कहा है—’मैं उल्लासित होऊँगा, मैं शकेम को बाँटूँगा, और सुक्कोत की घाटी को नापूँगा। गिलाद मेरा है, मनश्शे भी मेरा है; एप्रैम मेरे सिर का सुरक्षा कवच है, और यहूदा मेरा राजदंड है। मोआब मेरा पात्र है, एदोम पर मैं अपना जूता फेंकूँगा, और फिलिस्तीन पर मैं जयघोष करूँगा!'”**

दाऊद का हृदय विश्वास से भर गया। वह जानता था कि परमेश्वर ही सच्चा विजेता है। मनुष्य का बल व्यर्थ है, लेकिन जो परमेश्वर पर भरोसा रखता है, उसे विजय अवश्य मिलती है। उसने अपना गीत समाप्त किया:

**”कौन मुझे गढ़वाले नगर तक पहुँचाएगा? कौन मुझे एदोम तक ले जाएगा? क्या तू ही नहीं, हे परमेश्वर, जिसने हमें त्याग दिया? क्या तू अब हमारे साथ नहीं चलेगा? हमें संकट में सहायता दो, क्योंकि मनुष्य की सहायता व्यर्थ है। परमेश्वर के द्वारा हम बहादुरी से काम करेंगे, क्योंकि वही हमारे दुश्मनों को रौंदेगा!”**

दाऊद का यह भजन केवल एक गीत नहीं था, बल्कि एक प्रार्थना, एक विजय घोषणा, और एक विश्वास की अभिव्यक्ति थी। उसने सिखाया कि जब हमारा हृदय परमेश्वर की स्तुति से भरा होता है, तो हमारी आशा अजेय हो जाती है। परमेश्वर की करुणा और सच्चाई हमेशा हमारे साथ रहती है, और वही हमारी सच्ची शक्ति है।

इस प्रकार, भजन 108 हमें यह याद दिलाता है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, परमेश्वर की स्तुति और विश्वास हमें विजय की ओर ले जाते हैं। जैसे दाऊद ने अपने जीवन में अनुभव किया, वैसे ही हम भी जान सकते हैं कि **”यहोवा हमारा झंडा और शक्ति है, और वही हमारा उद्धारकर्ता है!”**

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